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भारतीय राजनीति के 10 बाहुबली जिन्होंने मचाई सियासत में खलबली!

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विकास सिंह

, शुक्रवार, 29 मार्च 2024 (16:18 IST)
उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल के सबसे बड़े माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद एक बार फिर सियासत में बाहुबलियों की सक्रियता की चर्चा तेज हो गई है। मुख्तार अंसारी की मौत के साथ उत्तरप्रदेश में माफिया साम्राज्य के एक अध्याय का अंत हो गया है। आइए उत्तर प्रदेश और बिहार के 10 ऐसे बाहुबली नेताओं की बात करतेे है जिन्होंने अपराध की दुनिया से सियासत में अपना कदम रखा।

1-मुख्तार अंसारी अपराध से सियासत तक- मुख्तार अंसारी के खौफ का आंतक पूरे पूर्वांचल में था। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, जौनपुर व बनारस में मुख्तार अंसारी के खौफ का आतंक इस कदर था कि उसके खिलाफ दर्ज मामलों में पीड़ित गवाही देने से भी डरते थे। मुख्तार अंसारी के खौफ का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राजनीतिक पार्टियां पूर्वांचल में अपनी जड़े मजबूत करने के लिए उसके शरण में आती थी। मुख्तार का अपराध पार्टियों के लिए मायने नहीं रखता। अपराध की दुनिया के बेताज बदशाह मुख्तार अंसारी का राजनीतिक रसूख कम नहीं था। मुख्तार अंसारी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि वह बिना राजनीतिक संरक्षण के अपनी अपराध की दुनिया नहीं चला सकता है। यहीं कारण है कि उसने  अपराध के साथ-साथ सियासत की सीढ़ियां भी चढ़ने लगा। पहली बार मुख्तार अंसारी 1986 में पहली बार विधायक चुना गया। विधायक बनने के बाद मुख्तार अंसारी ने अपनी छवि बदलने की कोशिश की। उसने पूर्वांचल की राजनीति में अपनी छवि रॉबिनहुड बनाने की कोशिश की।

मुख्तार अंसारी ने समय के अनुसार पार्टिया भी खूब बदली। मुख्तार एक समय में समाजवादी पार्टी के आला नेताओं की आंख का तारा बना तो फिर उसे मायावती की पार्टी बसपा का खुला संरक्षण मिला। मुख्तार अंसारी के साथ  उसके भाई अफजाल अंसारी भी सियासी मैदान में कूदे और अफजाल अंसारी वर्तमान में गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद भी है। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अफजाल अंसारी को गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा है। मुख्तार अंसारी की सियासी रसूख और उसकी सियासी महत्वाकांक्षा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने कौमी एकता दल के नाम से खुद की अपनी पार्टी भी बनाई थी।  
 
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2-बाहुबली बृजेश सिंह का खौफ अब भी कायम –मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उत्तर प्रदेश में एक अन्य बाहुबली बृजेश सिंह के नाम की चर्चा फिर होने लगी है। बृजेश सिंह को मुख्तार अंसारी का दुश्मन नंबर-1 माना जाता है। पूर्वांचल की सियासत में बाहुबली बृजेश सिंह के अपराधी बनने की कहानी पूरी फिल्मी है। पिता की मौत का बदला लेने के लिए सभी आरोपियों को मौत के घाट उतारक बृजेश सिंह अपराध की दुनिया में अपने कदम रखता है। 27 अगस्त 1984 को बृजेश सिंह के पिता रविंद्र नाथ सिंह की हत्या कर दी जाती है। पिता की हत्या के बाद बृजेश सिंह ने पिता के हत्या के आरोपी हरिहर सिंह के साथ गांव के सरंपच को भी मौत के घाट उतार दिया। अप्रैल 1986 बृजेश सिंह ने चंदौली के गांव सिकरौरा के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव समेत साच लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया।

इसके बाद बृजेश सिंह अपराध की दुनिया का बड़ा नाम बन गया और उसने उस वक्त पैसे की खान माने जाने वाले रेलवे के ठेके हथियाने शुरु कर दिए। रेलवे और शराब के ठेके में वर्चस्व की लड़ाई ने बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी को एक दूसरे का दुश्मन बना दिया। उत्तर प्रदेश में जब बसपा और समाजवादी पार्टी की सरकार में मुख्तार अंसारी की तूती बोल रही थी तब बृजेश सिंह अंडरग्राउंड हो गए हलांकि इस बीच बृजेश सिंह की मौत की खूब अटकलें लगाई गई है। लेकिन 2008 में ओडिशा से ब्रजेश सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया और वह वर्तमान में जेल में है।

अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह  बृजेश सिंह जान चुका था कि अगर उसको अपना वजूद कायम रखना है तो राजनीतिक रसूख भी बढ़ाना होगा। बृजेश सिंह ने विधानपरिषद के रास्ते सियासत में दाखिल हुए। उन्होंने बड़े भाई उदयनाथ सिंह को दो बार एमएलसी बनवा दिया और पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को भी एमएलसी बनवा लिया। जबकि भतीजे सुशील सिंह चंदौली से तीसरी बार एमएलए बने हैं.
 
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3-बाहुबली अतीक अहमद का खौफनाक अंत- उत्तर प्रदेश की सियासत में अपराधा के खौफ के सहारे एंट्री करने वाले अतीक अहमद का खौफनाक अंत हुआ। जिस प्रयागराज में अतीक अहमद की तूती बोलती थी उसी प्रयागराज में उसे और उसके भाई को सरेआम मौत के घाट उतार दिया गया। मीडिया कर्मियों के भेष में आए 3 हमलावरों ने माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज मेडिकल कॉलेज के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी।

अतीक अहमद ने मात्र 17 साल की उम्र में अपराध की दुनिया में कदम रख दिया था। अतीक एक तांगे वाले का अनपढ़ बेटा था। लेकिन पैसों की जरुरत उसे अपराध की दुनिया में ले आई। अतीक के गुनाहों की सूची भी लंबी है तो सियासत में उसकी उपलब्‍धियां भी कम नहीं हैं। वो विधायक और सांसद रहने के साथ ही यूपी में आतंक का दूसरा नाम था। गैंगस्‍टर, हिस्ट्रीशीटर अतीक 5 बार विधायक और एक बार उस फूलपुर सीट से सांसद भी रहा।  अतीक ने 1989 में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर चुनाव लड़ा और वो विधायक बन गया। इसके बाद वह इलाहाबाद सिटी वेस्ट की इसी सीट से 1991, 1993, 1996 और 2002 में भी लगातार जीत हासिल करता रहा।

अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ ने जनवरी 2005 को प्रयागराज में शहर के धूमनगंज इलाके में विधायक राजूपाल की दिन दहाड़े हत्या कर दी गईं। विधायक राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक और अशरफ पर लगा। इस मामले में दोनों भाइयों को जेल भी जाना पड़ा। इसके बाद राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की उसके बेटे असद ने गुलाम और गुड्डू इस्लाम जैसे शूटर्स के साथ मिलकर हत्या कर दी।

4-राजनीति के अपराधीकरण के पितामह हरिशंकर तिवारी-उत्तर प्रदेश की पूर्वांचल की राजनीति में हरिशंकर तिवारी उस शख्स का नाम था जिसने राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत की थी। हरिशंकर तिवारी 1985 में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार वे गोरखपुर की चिल्लूपार विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बने थे। ये चुनाव उन्होंने जेल में रहते हुए जीता था। हरिशंकर तिवारी ने जब चिल्लूपार विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की, उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे और उनका भी राजनीतिक क्षेत्र गोरखपुर ही था। हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा सीट से अलग-अलग राजनीतिक दलों से लगातार 22 वर्षों तक (1985 से 2007) तक विधायक रहे। अपने लंबे सियासी सफ़र में वो कल्याण सिंह, मायावती और मुलायम सिंह यादव की सरकारों में मंत्री रहे।

पूर्वांचल के गोरखपुर शहर से आने वाले हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही की सियासी अदावत किसी से छिपी नहीं थी। साल 1997 में उत्तर प्रदेश की राजधानी में वीरेंद्र शाही की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। वीरेंद्र शाही की हत्या का आरोप हरिशंकर तिवारी पर लगा। बताया जाता है कि अस्सी के दशक में हरिशंकर तिवारी का इतना दबदबा था कि गोरखपुर मंडल के जो भी ठेके इत्यादि होते थे वो बिना हरिशंकर तिवारी की इच्छा के किसी को नहीं मिलते थे। उनके ख़िलाफ़ दो दर्जन से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज थे, लेकिन सज़ा दिलाने लायक़ मज़बूती किसी मुक़दमे में नहीं दिखी। लिहाज़ा उनके ख़िलाफ़ लगे सारे मुक़दमे ख़ारिज हो गए। हरीशंकर तिवारी के निधन तक उनकी धमक पूरे उत्तर प्रदेश की सियासत में सुनाई देती रही।
 
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5-बृजभूषण शरण सिंह- रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष और बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह भी पिछले  दिनों खूब सुर्खियों में रहे। वर्तमान में बहराइच जिले की कैंसरगज लोकसभा सीट से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह की छवि एक बाहुबली नेता की है और उनका अपना एक साम्राज्य है। 6 बार के सांसद बृजभूषण शरण सिंह मूल  रूप से उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के रहने वाले है और वर्तमान में बहराइच जिले की कैसरगंज लोकसभा सीट से भाजपा के सांसद है। उत्तर प्रदेश और खासकर पूर्वांचल की सियासत में बृजभूषण शरण सिंह की धाक और वर्चस्व का अंदाज इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वह वह तीन अलग-अलग जिलों गोंडा, बलरामपुर और बहराइच जिले की कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद रह चुके है।

बृजभूषण शरण सिंह के सियासी कद का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वह 5 बार भाजपा और एक बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुने जा चके है। बृजभूषण शरण सिंह की सियासी पारी का सफर भी राममंदिर आंदोलन के साथ परवान चढ़ा। 1991 मे पहली बार सांसद चुने जाने वाले बृजभूषण शऱण सिंह बाबरी विंध्वस केस में लालकृष्ण आडवाणी के साथ आऱोपी बनाए गए बाद में कोर्ट ने उन्हें मामले बरी कर दिया। राममंदिर आंदोलन से निकले बृजभूषण शरण सिंह लालकृष्ण आडवाणी के बेहद करीब माने जाते है। हवाला कांड और टाडा के आरोपियों को पनाह देने के वजह से बृजभूषण शरण सिंह काफी विवादों मे रहे।

6-धनंजय सिंह- पूर्वांचल की राजनीति में धनजंय सिंह एक ऐसे बाहुबली का नाम जिसकी सियासी धमक की गूंज आज भी सुनाई देती है। पूर्वांचल के जौनपुर जिले से आने वाले धनजंय सिंह छात्र राजनीति से अपराध की दुनिया में छाए। धनजंय सिंह ने छात्र राजनीति में अपना दबदबा बनाने के बाद 2009 में पहली बार मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जौनपुर से सांसद चुने गए। सांसद बनने के बाद धनंजय सिंग ने अपने पिता राजदेव सिंह को विधायक बनवा दिया। मलहानी विधानसभा सीट से विधायक बनवा दिया। धनजंय सिंह के खिलाफ 41 से अधिक अपराधिक मामले दर्ज है। जिसमें हत्या, फिरौती, हत्या के प्रयास जैसे गंभीर मामले हैं।
 
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7-बिहार के सिवान में बाहुबली शहाबुद्दीन– बिहार के सिवान में तीन दशक से अधिक समय तक अपनी सामानंतर सरकार चलाने वाले शहाबुद्दीन के खौफ का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वह तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट चुका था।  तीन दशक से अधिक लंबे समय तक सिवान में अपनी सामानांतर सरकार चलाने वाला शहाबुद्दीन का उदय भी बिहार के अन्य बाहुबलियों की तरह 1990 के विधानसभा चुनाव से होता है। जेल में बंद रहकर अपनी सियासी पारी की शुरुआत करने वाला शहाबुद्दीन 1990 में पहली बार निर्दलीय विधायक चुना जाता है। पहली बार का विधायक बनने वाला शहाबुद्दीन रातों-रात पहली बार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का करीबी बन जाता है और वह लालू सेना(पार्टी) का सदस्य बन जाता है। दो बार का विधायक और चार बार का सांसद चुना जा चुका शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। शहाबुद्दीन लालू यादव का कितना करीबी रह चुका है कि एक बार शहाबुद्दीन के नाराज होने पर खुल लालू उसको मनाने पहुंचे थे।  

दो दशक तक अगर बिहार में की पहचान देश ही नहीं विदेश में एक ऐसे राज्य के रूप में होती थी जहां कानून का राज न होकर जंगलराज कहा जाता था तो उसका बड़ा कारण अपराध की दुनिया का बेताज बदशाह शहाबुद्दीन ही था। दूसरे शब्दों में कहे कि शहाबुद्दीन बिहार में जंगलराज का ब्रांड एम्बेडर था तो गलत नहीं होगा। मई 2021 में शहाबुद्दीन की मौत के साथ उसके साम्राज्य का भी अंत हो गया।
 
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8-पूर्णिया से लेकर दिल्ली तक पप्पू यादव की धमक- लोकसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद कांग्रेस में शामिल होने वाले बिहार के बाहुबली नेता पप्पू यादव के पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें लगाई जा रही है। हलांकि पिछले विधानसभा चुनाव में मधेपुरा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में कूदे पप्पू यादव को जनता ने बुरी तरह नाकार दिया था। पप्पू यादव हत्या-अपहरण जैसे 31 केसों में आरोपी है। बिहार के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अब कांग्रेस में शामिल हो गए है। पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।

लगभग साढ़े तीन दशक पहले 1990 में बिहारा के मधेपुरा के सिंहेश्वर विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले पप्पू यादव की गिनती बिहार के उस बाहुबली नेता के तौर पर होती है जिसके नाम का खौफ एक जमाने में बिहार से लेकर दिल्ली तक नेता खाते थे।

9-अनंत सिंह- बिहार के बाहुबली अनंत सिंह की सियासी धमक तीन दशक से अधिक समय से सुनाई दे रही है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह एक बार मोकामा विधानसभा सीट से चुनाव जीत गए। पांचवी बार विधायक चुने गए अनंत सिंह पर कुल 38 केस दर्ज है। बेऊर जेल में बंद आरजेडी के उम्मीदवार अनंत सिंह ने बड़ी जीत हासिल करते हुए जेडीयू उम्मीदवार राजीव लोचन नारायण सिंह को 20,194 मतों से हराया। जेल में रहकर चुनाव लड़ने वाले अनंत सिंह को 38123 वोट हासिल हुए वहीं जेडीयू उम्मीदवार राजीव लोचन नारायण सिंह को 17929 वोट हासिल की है। बाहुबली अनंत सिंह का पूरा चुनाव प्रबंधन उनकी पत्नी संभाल रही थी। 

10-आनंद मोहन सिंह- बिहार की राजनीति में बाहुबल को एक ब्रांड वैल्यू के रूप में स्थापित करने वाले आनंद मोहन सिंह अपने परिवार के सहारे अपना सियासी रसूख बचाने की कोशिश में आधे कामयाब हो गए। गोपालगंज कलेक्टर की हत्या के आरोप में करीब दो दशक से जेल की सलाखों पीछे रहने वाले आनंद मोहन सिंह की पत्नी और बेटा विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे।शिवहर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले बेटे चेतन आनंद ने जीत हासिल की है वहीं बाहुबली आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद सहरसा विधानसभा सीट से चुनाव हार गई है। बिहार में पिछले दिनों सियासी घटनाक्रम के बाद चेतन आनंद अब जेडीयू के साथ है और शहाबुद्दीन की पत्नी लवली आनंद को जेडीयू ने शिवहर लोकसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है।


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