क्या कांग्रेस का खोया हुए वैभव लौटा पाएंगी प्रियंका?

अनिल जैन
बुधवार, 20 मार्च 2019 (17:22 IST)
कांग्रेस की संकट मोचक के तौर पर राजनीति के मैदान में उतारी गईं प्रियंका गांधी औपचारिक तौर पर अपनी पार्टी के लिए चुनाव अभियान पर निकल पडी हैं। कांग्रेस को प्रियंका से सबसे बडी उम्मीद यही है कि वे देश के सबसे बडे सूबे में पार्टी को उसका वह वैभव लौटाने में कामयाब होंगी, जो फिलहाल देश के राजनीतिक इतिहास की किताबों में दर्ज है या फिर पुरानी पीढ़ी के लोगों की यादों के झरोखों में। लेकिन प्रियंका ने जिस तरह से धार्मिक प्रतीकों के सहारे अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की है वह बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं जगाता है, क्योंकि धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक इस्तेमाल करने में जो महारत भाजपा को हासिल है, उसकी बराबरी न तो कांग्रेस कर सकती है और न ही कोई अन्य पार्टी। 
 
प्रियंका के अभियान की शुरुआत इलाहाबाद में संकट मोचक कहे जाने वाले हनुमान के मंदिर से हुई। अपने पहले अभियान में वे गंगा यात्रा कर रही हैं। संगम से शुरू हुई उनकी गंगा यात्रा बनारस के अस्सी घाट पर समाप्त हुई। इस मौके पर उन्होंने गंगा की बात भी की और गंगा-जमुनी तहजीब की भी। ऐसा कहते हुए वे उस पूरे इलाके से रूबरू थीं, जो कभी कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ था। कांग्रेस ने देश को जितने प्रधानमंत्री दिए, उनमें से ज्यादातर इसी इलाके से देश की संसद में पहुंचे थे। लेकिन अब दो-तीन लोकसभा क्षेत्रों को छोड दें तो शायद कांग्रेस सबसे ज्यादा कमजोर भी यहीं नजर आती है। अपनी इस यात्रा के दौरान प्रियंका ने विभिन्न मंदिरों के किए और सुरक्षा बलों के शहीद जवानों के परिजनों से भी मुलाकात की।
प्रियंका की यह पहली चुनावी यात्रा उस बनारस में खत्म हुई, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निर्वाचन क्षेत्र है। वहां से अभी तक जो भी ग्राउंड रिपोर्ट्‍स और विश्लेषण सामने आए हैं, वे यही बताते हैं कि मोदी की स्थिति वहां काफी मजबूत है, बावजूद इसके कि वहां कई मंदिर और मकान विकास और स्मार्ट सिटी की भेंट चढ़ गए हैं। नतीजा जो भी हो, अपने पहले ही अभियान में प्रियंका गांधी सबसे कठिन चुनौती से मुखातिब रहीं।
 
अपने इस अभियान के शुरुआत भाषण में प्रियंका ने गंगा, गंगा-जमुनी तहजीब और प्रधानमंत्री मोदी के प्रतिवर्ष दो करोड़ लोगों को रोजगार देने के वायदे की चर्चा भी की, लेकिन बेहद ठंडे और शिथिल अंदाज में। उनके भाषण में वह आक्रामकता सिरे से नदारद थी, जिसकी अपेक्षा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं रखते हैं। उन्हें सुनने के लिए भीड़ भी कोई बहुत बड़ी नहीं थी। लेकिन बुधवार को बनारस पहुंचते-पहुंचते वे उनके तेवर आक्रामक हो गए। मोदी को उनके चुनाव क्षेत्र में सीधे निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को लोगों को बेवकूफ समझना बंद कर देना चाहिए और उन्हें यह जान लेना चाहिए कि लोग सब समझ रहे हैं।
 
वैसे ज्यादातर खबरों में यही बताया जा रहा है कि प्रियंका गांधी देशभर में कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगी, लेकिन उन्हें घोषित तौर पर जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है, वह है पूर्वी उत्तर प्रदेश में पार्टी के अभियान की अगुवाई करना। यानी उनके जिम्मे जो 40 सीटें हैं, उनमें से ज्यादातर पर पार्टी को बहुत पापड़ बेलने होंगे। वह भी तब, जब समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के विपक्षी गठबंधन ने कांग्रेस को पूरी तरह अलग-थलग कर दिया है।
 
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को सिर्फ भाजपा से नहीं बल्कि इस गठबंधन की चुनौती से भी निबटना है। सोमवार को जब प्रियंका गांधी ने अपना चुनाव अभियान शुरू किया, तब तक बसपा सुप्रीमो मायावती का वह ट्वीट भी काफी चर्चित हो चुका था, जिसमें उन्होंने चुनौती भरे अंदाज में कांग्रेस को सूबे की सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की सलाह दी। उन्होंने कांग्रेस की खिल्ली उड़ाने के अंदाज में कहा कि उनका (सपा-बसपा-रालोद) गठबंधन भाजपा को हराने के लिए काफी है और कांग्रेस को गठबंधन के लिए सीटें छोड़ने की जरूरत नहीं है। मायावती के इस ट्वीट आशय साफ है कि अब उनके गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने की संभावना खत्म हो चुकी है। 
 
कांग्रेस के लिए चुनौती कितनी कठिन है, यह बात प्रियंका गांधी भी अच्छी तरह समझ रही होंगी। प्रियंका गांधी अपने तीन दिन के इस पहले अभियान में समाज के विभिन्न तबकों के लोगों से मिलने के साथ ही नौजवानों से भी मिली हैं। युवा वर्ग को पार्टी से जोड़े बिना किसी भी राजनीतिक दल का उद्धार संभव नहीं है। हालांकि कांग्रेस ही नहीं, समूचे विपक्ष की सबसे बड़ी चुनौती इस समय कुछ और है।
 
पुलवामा और उसके बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक से भाजपा राष्ट्रवाद का जो एक नैरेटिव कम से कम उत्तर भारत में देने में तो काफी हद तक कामयाब रही है। आम चुनाव के शुरुआती दौर में हम जहां खडे हैं, वहां विपक्ष की दिक्कत यह है कि उसका कोई मजबूत जवाबी नैरेटिव फिलहाल जोर पकड़ता नजर नहीं आता। विपक्षी दलों की सफलता की अब इस बात में ही निहित है कि वे चुनाव अभियान के दौरान कोई ऐसा मुद्दा खड़ा करें, जो लोगों को को आंदोलित करे। यही चुनौती प्रियंका गांधी के सामने भी है, पूरे देश में भी और उत्तर प्रदेश में भी। 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)

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