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लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं झारखंड के 3 पूर्व मुख्‍यमंत्री

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रांची। सियासी गलियारे की चकाचौंध सियासतदानों को कभी थकने नहीं देती, तभी तो झारखंड के तीन पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन एक बार फिर संसद भवन के दर मत्था टेकने के लिए चुनावी डगर पर चल पड़े हैं।

बिहार से 15 नवंबर 2000 में अलग अस्तित्व पाने वाले झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और तीन-तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा एवं शिबू सोरेन के लिए संसद भवन तक पहुंचने का रास्ता नया नहीं है। वे इससे पहले भी कई बार सांसद रह चुके हैं। इतने लंबे राजनीतिक सफर के बावजूद उनके चेहरे पर थकान नहीं है और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जोश-ओ-खरोश के साथ मैदान में हैं।

इस बार के चुनाव में मरांडी अपने चिर-परिचित कोडरमा से तो सोरेन दुमका से जबकि मुंडा ने खूंटी संसदीय क्षेत्र से संसद भवन तक का सफर शुरू कर दिया है। देखना दिलचस्प होगा कि इन तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों को मंजिल मिलेगी या वे सफर में ही रह जाएंगे।

मरांडी 15 नवंबर 2000 से 17 मार्च 2003 तक झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे और इसके बाद उन्हें यह पद नसीब नहीं हुआ। इससे पूर्व उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गढ़ बन चुके अविभाजित बिहार के दुमका में वर्ष 1998 के आम चुनाव में इस सीट से चार बार के सांसद और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को 12556 मतों के अंतर से चित कर पहली बार भारतीय जनता पार्टी का परचम लहराया।

मरांडी ने 1999 के चुनाव में भी ‘चाची जी’ के नाम से मशहूर सोरेन की पत्नी एवं झामुमो उम्मीदवार रूपी सोरेन किस्कू को 4648 मतों से पराजित कर दिया।  इसके बाद 15 नवंबर 2000 को मरांडी नए राज्य झारखंड के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने राजधानी रांची पर जनसंख्या और संसाधनों का दबाव कम करने के लिए ग्रेटर रांची स्थापित करने की योजना का खाका खींचा था, लेकिन सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की गद्दी अर्जुन मुंडा के लिए छोड़नी पड़ी।

उन्होंने वर्ष 2004 के आम चुनाव में भाजपा के टिकट पर सांसद बनने के लिए कोडरमा से चुनाव लड़ा और झामुमो प्रत्याशी चंपा वर्मा को 154944 मतों के भारी अंतर से पराजित किया। इस चुनाव में मरांडी झारखंड से जीतने वाले अकेले भाजपा उम्मीदवार थे जबकि यशवंत सिन्हा जैसे कद्दावर नेता और धनबाद से चार बार सांसद रहीं भाजपा प्रत्याशी प्रो. रीता वर्मा को भी हार का सामना करना पड़ा था। इस दौरान उनके राज्य प्रभारियों से मतभेद बढ़ते गए और वे सार्वजनिक तौर पर राज्य सरकार की आलोचना करने लगे।

मरांडी ने वर्ष 2006 में लोकसभा और भाजपा की सदस्यता दोनों से त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद 24 सितंबर 2006 को उन्होंने अपनी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) पार्टी का गठन कर लिया। इसी वर्ष कोडरमा लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मरांडी निर्दलीय लड़े और जीत हासिल की। उन्होंने वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव झाविमो के टिकट से कोडरमा सीट से लड़ा और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के राजकुमार यादव को 48520 मतों से पराजित किया।

लेकिन वर्ष 2014 के आम चुनाव में मरांडी ने अपने पुरानी दुमका सीट का रुख किया लेकिन त्रिकोणीय मुकाबले में 158122 वोट लेकर वे तीसरे स्थान पर रहे। इस चुनाव में मोदी लहर में झाविमो एक भी सीट नहीं जीत सकी। 17वें लोकसभा चुनाव (2019) में मरांडी सातवीं बार कोडरमा से संसद भवन के सफर पर निकल पड़े हैं। इस राह में उनका मुकाबला राष्ट्रीय जनता दल (राजद) छोड़ भाजपा में शामिल हुईं अन्नपूर्णा देवी और भाकपा (माले) उम्मीदवार राजकुमार यादव से है।

इस सीट के लिए पांचवें चरण में 6 मई 2019 को चुनाव होगा। लेकिन मरांडी के लिए इस बार की डगर सीधी नहीं लग रही क्योंकि कोडरमा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा क्षेत्र में से पांच कोडरमा, बरकट्ठा, बगोदर, जमुआ (सुरक्षित) और गांडेय पर भाजपा का और एक सीट धनवार पर भाकपा-माले का कब्जा है।

इन सीटों पर गौर करने वाली बात यह है कि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में बरकट्ठा से झाविमो उम्मीदवार जानकी प्रसाद यादव ने भाजपा उम्मीदवार अमित कुमार यादव को 8207 मतों से हराया लेकिन बाद में जानकी यादव दल बदलकर भाजपा में शामिल हो गए। वहीं धनवार सीट पर झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी भाकपा-माले उम्मीदवार राजकुमार यादव से 10712 मतों से पराजित हो गए।

मरांडी के बाद 18 मार्च 2003 को झारखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बने अर्जुन मुंडा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खूंटी सीट से दूसरी बार संसद पहुंचने की तैयारी में हैं। इससे पूर्व वह 2009 में जमशेदपुर संसदीय सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और झामुमो की प्रत्याशी सुमन महतो को 119660 मतों के भारी अंतर से पराजित किया था।

मुंडा ने 11 सितंबर 2010 को तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके बाद 2011 में जमशेदपुर सीट के लिए हुए उप चुनाव में झाविमो के टिकट पर डॉ. अजय कुमार सांसद चुने गए। मुंडा इससे पूर्व 12 मार्च 2005 से 14 सितंबर 2006 तक दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

मुंडा सतरहवें आम चुनाव में भाजपा के निवर्तमान सांसद करिया मुंडा का गढ़ रहे खूंटी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। झारखंड पार्टी सुप्रीमो एनोस एक्का के एक पारा शिक्षक की हत्या के मामले में जेल जाने के कारण इस सीट पर मुंडा का सीधा मुकाबला झारखंड सरकार में मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा के अग्रज एवं कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा से है।

सोलहवें आम चुनाव (2014) में एक्का 176937 मत प्राप्त कर दूसरे एवं कालीचरण मुंडा 147017 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। इस संसदीय क्षेत्र की खास बात है इसके सभी छह विधानसभा क्षेत्र सुरक्षित हैं। इनमें से दो खूंटी और सिमडेगा पर भाजपा, खरसावां एवं तोरपा पर झामुमो, तमाड़ पर ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और कोलिबेरा पर पहले झारखंड पार्टी और पिछले वर्ष हुए उप चुनाव में कांग्रेस का कब्जा हो गया।

इतना ही नहीं बाबूलाल मरांडी की तरह अर्जुन मुंडा भी खरसावां सीट से झामुमो उम्मीदवार दशरथ गगरई के हाथों 11968 मतों के अंतर से वर्ष 2014 का विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में पांचवें चरण में 6 मई को होने वाले चुनाव में मुंडा को खूंटी जीतने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को इस रास्ते पर चलने की ऐसी आदत हो गई है कि वह दुमका से नौवीं बार संसद भवन पहुंचने की जिद में हैं। ‘दिशोम गुरु’ के नाम से लोकप्रिय झामुमो अध्यक्ष एवं झारखंड को अलग राज्य बनाने के आंदोलन के अग्रणी नेताओं में शुमार सोरेन 2 मार्च 2005 से 12 मार्च 2005 तक मात्र दस दिन के मुख्यमंत्री बनने से पूर्व अविभाजित बिहार की दुमका सीट से पहली बार वर्ष 1980 में निर्दलीय चुनाव लड़े और विजयी हुए।

इसके बाद वर्ष 1984, 1998 और 1999 में हुए लोकसभा चुनाव को छोड़कर करीब 39 वर्ष से इस सीट पर उनका ही दबदबा कायम है। इस बीच केवल वर्ष 1984 में कांग्रेस के पृथ्वीचंद किस्कू तथा 1998 और 1999 में दो बार भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी इस सीट से विजयी हो पाए।

सोरेन ने झारखंड का गठन होने के बाद वर्ष 2002 के उप चुनाव में दुमका सीट से ही भाजपा के रमेश हेम्ब्रम को 92825 मतों से, 2004 में भाजपा के सोनेलाल हेम्ब्रम को 115015, वर्ष 2009 में भाजपा के सुनील सोरेन को 18812 और 2014 के आम चुनाव में भाजप प्रत्याशी सुनील सोरेन को ही 39030 मतों के अंतर से पराजित किया।

17वें लोकसभा चुनाव में भी शिबू सोरेन का सीधा मुकाबला भाजपा के सुनील सोरेन से है। इसी बीच वह 27 अगस्त 2008 से 18 जनवरी 2009 तक चार माह 22 दिन तथा 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक मात्र पांच महीने एक दिन के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे।

छह विधानसभा सीट वाले दुमका संसदीय क्षेत्र में तीन शिकारीपाड़ा (सु), जामा (सु) और नाला पर झामुमो, दुमका (सु) पर भाजपा, जामताड़ा पर कांग्रेस और सारथ पर झाविमो का कब्जा है। झामुमो का अभेद किला मानी जाने वाली दुमका सीट से नौवीं बार सांसद बनने की शिबू सोरेन की जिद पूरी होने में खास मुश्किल नहीं मानी जा रही है।

वैसे भी सीधे मुकाबले में सोरेन का पलड़ा हमेशा भारी रहा है। मरांडी के कोडरमा का रुख करने से वर्ष 2019 में सोरेन का भाजपा उम्मीदवार से सीधा मुकाबला है। इस सीट पर सातवें और अंतिम चरण में 19 मई को मतदान होगा।

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