'चौकीदार' तय करेगा किसके पास होगी दिल्ली की सत्ता की चाबी?

विकास सिंह
खबर का शीर्षक पढ़कर आप कुछ सोच में पड़ गए होंगे। आप सोच रहे होंगे कि 'चौकीदार' और दिल्ली की सत्ता दोनों एक-दूसरे से कैसे जुड़े हैं और 'चौकीदार' के पास सत्ता की चाबी कैसे हो सकती है तो इसको समझने के लिए आपको पूरी खबर को पढ़ना होगा। आपके घर, कॉलोनी या मोहल्ले में रहने वाले चौकीदार को तो आप जानते ही होंगे, लेकिन पिछले दो दिनों में आप अचानक से कई लोगों के नाम के आगे 'चौकीदार' शब्द देख रहे होंगे। सोशल मीडिया पर ऐसे चौकीदारों की बाहर है। आपने ऐसे कई नाम देखे होंगे जिनके नाम के आगे चौकीदार जुड़ गया है। असल में ये सभी 'चौकीदार' चुनावी  हैं। चुनाव में चौकीदार अब एक मुद्दा बन गया है जो धीमे-धीमे जोर पकड़ रहा  है। देश में 'चौकीदार' पर जमकर सियासत हो रही है और जिस तरह चौकीदार चुनावी कैंपेन बनता जा रहा है उससे ये अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार यही 'चौकीदार' का मुद्दा तय करेगा कि किसके पास देश की सत्ता की चाबी होगी।

'चौकीदार' बना चुनावी कैंपेन : चुनाव के समय नारे वोटरों के बीच नेताओं की छवि बनाने या बिगाड़ने में कितनी अहम भूमिका निभाते हैं इसको सियासी दल अच्छी तरह समझते हैं। सियासी दल जानते हैं कि नारे लोगों से भावनात्मक लगाव बना देते हैं और यही भावनात्मक लगाव वोट में बदलकर सरकार बना और   बिगाड़ भी देते हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में ठीक पहले कांग्रेस ने मोदी सरकार पर अटैक करने के लिए 'चौकीदार चोर है' का चुनावी कैंपेन लांच किया तो अब बीजेपी ने काउंटर अटैक करते हुए 'मैं भी चौकीदार' चुनावी कैंपेन लांच कर दिया है। मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राफेल सौदे को बड़ा घोटाला बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी को इसमें शामिल बताते हुए अपने हर चुनावी मंच से 'चौकीदार चोर है' के नारे रैली में आए लोगों से लगवा रहे हैं। कांग्रेस ने 'चौकीदार चोर है' को अपना मुख्य कैंपेन बना लिया है। कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि अगर बीजेपी को हराना है तो उससे पहले मोदी को हराना होगा यानी 2014 में मोदी ने जो छवि लोगों के सामने पेश की थी उसको तोड़ना होगा।

इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सीधे 'चौकीदार चोर है' के नारे से मोदी की छवि पर हमला कर रहे हैं। वहीं अब बीजेपी इस पूरे मुद्दे को भावनात्मक मोड़ देने में जुट गई है। बीजेपी जानती है कि आज भी लोग मोदी से भावनात्मक लगाव रखते हैं, इसलिए पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने टि्वटर अकाउंट से पूरे देश में 'मैं भी चौकीदार' मुहिम शुरू की तो रविवार को प्रधानमंत्री ने अपने ऑफिशियल टि्वटर हैंडल पर अपना नाम बदलकर चौकीदार नरेंद्र मोदी रख लिया रखा। उसके बाद देखते ही देखते बीजेपी नेताओं और लोगों में अपना नाम बदलने की होड़ सी लग गई। टि्वटर पर भी 'चौकीदार फिर से' ट्रेंड करने लगा।

अब जब लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों एक'दूसरे को घेरने के लिए 'चौकीदार' का सहारा ले रहे हैं। दोनों ही पार्टियों ने 'चौकीदार' को चुनावी कैंपेन बना दिया और अब ये तय है कि जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आएंगी 'चौकीदार' को लेकर दोनों ही पार्टियां एक-दूसरे पर हमलावर होंगी और जो पार्टी अपने 'चौकीदार' के कैंपेन को भुना ले जाएंगी। उसका 'चौकीदार' अपनी पार्टी को दिल्ली की सत्ता तक ले जाएगा।

'चौकीदार चोर है बनाम मैं भी चौकीदार' : लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए कांग्रेस ने 'चौकीदार चोर है' को अपना मुख्य चुनावी कैंपेन बनाया था। राहुल गांधी अपने हर चुनावी मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते हुए कहते हैं कि देश का चौकीदार चोर है। राफेल से लेकर देश के भगौड़े विजय माल्या और मेहुल चौकसी को देश से भागने के लिए राहुल गांधी नरेंद्र मोदी पर चौकीदार शब्द के जरिए लगातार हमला कर रहे थे। इसके बाद अब जिस तरह बीजेपी ने प्रधानमंत्री की अगुवाई में 'चौकीदार' को मुहिम बनाया है। उसे कांग्रेस की मुहिम का काउंटर अटैक माना जा रहा है।

इतिहास में भी नारों ने बनाई-बिगाड़ी सरकार : लोकतंत्र में चुनाव और चुनाव में नारों की अहम भूमिका होती रही है। चुनावी स्लोगन और नारे पूरे चुनाव की दिशा पलट देने में अहम भूमिका भी निभाते आए है। नारों ने कभी सरकार बनाई तो कभी सरकार गिराने में महती भूमिका भी निभाई। पार्टियां भी चुनावी नारों को लेकर काफी मेहनत करती हैं। नारों को गढ़ने और बनाने में राजनीतिक पार्टियों में मंथन होता है। अगर भारतीय राजनीति के इतिहास पर नजर डालें तो ऐसे कई नारों हुए हैं जो लोगों के दिलों-दिमाग में आज भी छाए हुए हैं। जैसे 1965 में कांग्रेस की ओर से दिया गया नारा 'जय जवान, जय किसान, 1971 का गरीबी हटाओ,  इंदिरा हटाओ देश बचाओ, इमरजेंसी के दौरान दिया गया नारा सिंहासन खाली करो कि जनता आती है, सेना खून बहाती  है, सरकार कमीशन खाती है, अटल बिहारी वाजपेयी के समय का इंडिया शाइनिंग, 2014 में अच्छे दिन आने वाले हैं, अबकी बार मोदी सरकार जैसे नारे आए। जिन्होंने सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई।

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