नामों का भी एक जमाना होता है। किसी एक समय में एक तरह के नाम चलते हैं, जमाना बदलने के साथ ही नामों के चलन में भी फर्क आ जाता है। कम से कम हमारे हिन्दुस्तान में तो ऐसा ही होता है। एक समय था, जब औरतों के नाम, ग्यारसी, घीसी, फूली, विश्वम्बरी, कौशल्या, भागवंती, लक्ष्मी आदि होते थे। फिर कमला, विमला, उर्मिला जैसे नाम आए। लक्ष्मी, सरस्वती, नर्मदा जैसे नाम तब भी चलते रहे।
इसके बाद साठ के दशक में जन्म लेने वाली लड़कियों के नाम सुषमा, कविता,किरण रखे जाने लगे। फिर एक जमाना आया जब नेहा, पूजा, टीना, पारूल जैसे नाम फैशनेबल समझे जाने लगे। इस काल तक पुरुषों में भी रमेश, सुरेश, महेश जैसे नाम प्रचलन से बाहर होने लगे थे। पीयूष, सुरम्य, सार्थक ऐसे नाम चलने लगे थे। इनमें से किसी बच्चे के दादा का नाम दगडूमल था भी तो उन्होंने डी. एम. कर लिया होगा।
अब इस काल में बच्चों के नाम यूं ही रख देने का प्रचलन बंद हो गया था। न ही तुक में नाम रखे जाते थे जैसे कि सीता, नीता, गीता। अतः खूब सलाह-मशविरा करके, ढूंढ-ढूंढकर नाम रखे जाने लगे। नामों की किताबें भी मिलने लगीं। बच्चे की राशि के हिसाब से नाम का पहला अक्षर रखने का प्रचलन तब भी रहा, मगर नामों में नवीनता की दरकार बहुत बढ़ गई।
एक्सक्लूसीव नाम रखने के चक्कर में ऊंची हिन्दी के ऐसे-ऐसे शब्द नामों के रूप में रखे जाने लगे, जो बहुत क्लिष्ट हो या जो संज्ञा हो ही नहीं। इस जमाने में लोगों ने लड़कियों के नाम प्रत्यंचा, कनिष्ठा, व्याख्या और लड़कों के नाम विधमान, प्रत्युत्तर टाइप के भी रख दिए! अमिताभ बच्चन के घर पुत्र जन्म के और उस पुत्र का नामकरण अभिषेक होने के बाद काफी घरों में लड़कों का नाम अभिषेक हुआ।
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इस वक्त तक जिस लड़की की दादी का नाम मीठीबाई रहा हो, हो सकता है उस पोती का नाम स्वीटी रख दिया गया हो। मतलब दोनों का ही मीठा-मधुर होगा पर जमाने ने इसी अर्थ को अलग शब्द दिए। कल्पना कीजिए यह दादी अपनी पोती का नाम कैसे उच्चारती होंगी? स्वीटी यदि वे नहीं कह पाती होंगी तो सीटी कहकर पुकारती होंगी!
इसके बाद जमाना आया है अजीबो-गरीब नाम का। काजोल एवं अजय देवगन की बेटी का नाम नायसा है। वहीं रानी मुखर्जी के भाई राजा की बेटी का नाम मायसा है। है न अजीब बात! मगर बात तो तब भी अजीब ही थी, जब भाई का नाम राजा और बहन का नाम रानी रखा गया। सामाजिकता के हिसाब से तो राजा और रानी जोड़े का नाम है।
खैर! नामों का चक्कर है ही ऐसा। डॉ. हरिवंशराय बच्चन के दोनों पुत्रों के नाम अजिताभ और अमिताभ सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ने रखे थे। अमिताभ बच्चन ऐसा साहित्यिक नाम था कि फिल्मी दुनिया ने तो पहले पहल यही कहा था कि यह नाम यहां नहीं चलेगा। मगर चला और खूब चला। और अब तो अमिताभ बच्चन कुछ इस तरह मीडिया और प्रशंसकों की नजर में हैं कि उनकी पोती का नाम क्या होगा या क्या रखा गया है इस बारे में पन्नों के पन्नों अटकलों से भरे जा रहे हैं।
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नाम रखा न जाए तब तक के लिए लोगों ने बच्ची का नाम बेटी-बी रख भी लिया है। कहा जा रहा है कि न्यूमरॉलॉजी, ज्योतिष आदि देख विचार कर बेटी-बी का नाम आराध्या रख लिया गया है। बच्चन परिवार में घटते साहित्यिक रुझान, प्रगतिशीलता व बढ़ते अंधविश्वास, कर्मकांडों को देखते हुए इन बातों पर थोड़ा यकीन भी किया जा सकता है। वैसे भी फिल्मी दुनिया भविष्यवक्ताओं के चक्कर में इतनी उलझी है कि लोग ज्योतिषी से पूछकर अपने नामों की स्पेलिंग बदल लेते हैं या कुछ तो नाम ही बदल लेते हैं।
कहावत तो ये है कि जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। मगर हमारे फिल्मी लोगों के लिए यह भी कहा जा सकता है कि जो है नाम वाला वही तो डरपोक है। अब यह न कहिएगा नाम में क्या रखा है। यहां तो नाम ही में सब कुछ रखा है। नाम से ही दाम है। नाम गुम जाएगा तो सब कुछ बदल जाएगा।