Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

संस्कृत साहित्य का महत्व

हमें फॉलो करें gaytri mantra
येषां न विद्या, न तपो, न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
 ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ।।
 
जो विद्या के लिए प्रयत्न नहीं करते, न तप करते हैं, न दान देते हैं, न ज्ञान के लिए यत्न करते हैं, न शील हैं और न ही जिनमें और कोई गुण हैं, न धर्म है (सही आचरण है), ऐ से लोग मृत्युलोक में इस धरती पर बोझ ही हैं, मनुष्य रुप में वे वास्तव में जानवर ही हैं।
 
* संस्कृत साहित्य का महत्व
 
संसार की समस्त प्राचीनतम भाषाओं में संस्कृत का सर्वोच्च स्थान है। विश्व-साहित्य की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद संस्कृत में ही रची गई है। संपूर्ण भारतीय संस्कृति, परंपरा और महत्वपूर्ण राज इसमें निहित है। अमरभाषा या देववाणी संस्कृत को जाने बिना भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाना नहीं जा सकता। 


 
संस्कृत भाषा से ही कई भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। दूसरे शब्दों में इसे भारतीय भाषाओं की मां माना गया है। 
 
देश-विदेश के कई बड़े विद्वान संस्कृत के अनुपम और विपुल साहित्य को देखकर चकित रह गए हैं। कई विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक रीति से इसका अध्ययन किया और गहरी गवेषणा की है। समस्त भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी यदि कोई भाषा है तो वह संस्कृत ही है।
 
भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, दार्शनिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन एवं विकास के सोपानों की संपूर्ण व्याख्या संस्कृत वाङ्मय में उपलब्ध है। 
 
संस्कृत को देव भाषा कहा जाता है। वेबदुनिया का टीम का यह विनम्र प्रयास है कि इस अति प्राचीन भाषा संस्कृत में रचे श्लोक-सुभाषित-व्याकरण को एक साथ एक स्थान पर प्रस्तुत किया जाए। संस्कृत भाषा के प्रशंसक, विद्वान और विशेषज्ञों से निवेदन है कि भाषा को सहेजने और संवारने के इस प्रयास में हमारे साथ जुड़ें। जो भी संस्कृत संबंधी विशिष्ट और दुर्लभ ज्ञान हमारे साथ बांटना चाहे उनका स्वागत है। 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi