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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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वर्तमान में भविष्य का पूर्वाभास

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आमतौर पर हमें वर्तमान की, अपने आसपास की घटनाओं की जानकारी होती है। भविष्य अथवा पूर्वजन्मों की घटनाओं का हमें ज्ञान नहीं होता है। परंतु यह भी एक वास्तविकता है कि यदा-कदा हरेक के जीवन में एक न एक ऐसी घटना घट जाती है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य में कोई विलक्षण शक्ति कार्य कर रही है, जो भूत, भविष्य अथवा वर्तमान में झाँकने की क्षमता रखती है।

भविष्य में होने वाली घटना का पहले से संकेत मिलना ही पूर्वाभास है। कुछ लोगों में यह अतीन्द्रिय ज्ञान काफी विकसित होता है। सामान्यतः हम पाँच ज्ञानेन्द्रियों के जरिए वस्तु या दृश्यों का विवेचन कर पाते हैं, परंतु कभी-कभी या किसी में बहुधा छठी इन्द्रिय जागृत हो जाती है। इस कपोल-कल्पित इन्द्रिय को विज्ञान ने अतीन्द्रिय ज्ञान (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन) का नाम देते हुए अपनी बिरादरी में शामिल कर लिया है।

पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अतीन्द्रिय क्षमताओं को चार वर्गों में बाँटा है :
परोक्ष दर्शन- अर्थात वस्तुओं और घटनाओं की वह जानकारी, जो ज्ञान प्राप्ति के बिना ही उपलब्ध हो जाती है।

भविष्य ज्ञान- यानी बिना किसी मान्य आधार के भविष्य के गर्भ में झाँककर घटनाओं को घटित होने से पूर्व जान लेना।

  भविष्य अथवा पूर्वजन्मों की घटनाओं का हमें ज्ञान नहीं होता है। परंतु यह सत्य है कि जीवन में एक न एक ऐसी घटना घट जाती है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य में कोई विलक्षण शक्ति कार्य कर रही है, जो भूत, भविष्य, वर्तमान में झाँकने की क्षमता रखती है      


भूतकालिक ज्ञान- बिना किसी साधन के अतीत की घटनाओं की जानकारी।

टेलीपैथी- अर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुँचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इसके अलावा साइकोकाइनेसिस, सम्मोहन, साइकिक फोटोग्राफी आदि को भी परामनोविज्ञानियों ने अतीन्द्रिय शक्ति में शुमार किया है।

विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है- 'हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह अपनी अन्तर्प्रज्ञा को जगाकर भविष्य काल को वर्तमान की तरह दर्पण में देख ले।' केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक भौतिकी विद्वान एड्रियन डॉन्स ने फरमाया था, 'भविष्य में घटने वाली हलचलें वर्तमान में मानव मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं, जिन्हें साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा जा सकता है।

इन तरंगों की स्फुरणाओं को मानव मस्तिष्क के स्नायुकोष (न्यूरान्स) पकड़ लेते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भविष्य-कथन में सफल होता है। उनके मुताबिक मस्तिष्क की अल्फा तरंगों तथा साइट्रॉनिक तरंगों की आवृत्ति एक-सी होने के कारण सचेतन स्तर पर जागृत मस्तिष्क द्वारा ये तरंगें सहज ही ग्रहण की जा सकती हैं।

डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉ. गेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कथन है, 'मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) के निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।'

'एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनॉमिना बियांड मैटर' नामक अपनी चर्चित पुस्तक में डी स्कॉट रोगो लिखते हैं, 'विचारणाएँ तथा भावनाएँ प्राणशक्ति का उत्सर्जन (डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्स) हैं।

यही उत्सर्जन अंतःकरण में यदा-कदा स्फुरणा बनकर प्रकट होते हैं। जब यह दो व्यक्तियों के बीच होता है तो टेलीपैथी कहा जाता है और यदि यह समय-सीमा से परे सुदूर भविष्य की सूचना देता है तो इसका आधारभूत कारण कॉस्मिक अवेयरनेस यानी ब्राह्मी चेतना होता है।' इस चेतना का जिक्र आइंस्टीन के सापेक्षवाद के सिद्धांत में मिलता है।

उन्होंने लिखा है, 'यदि प्रकाश की गति से भी तीव्र गति वाला कोई तत्व हो तो वहाँ समय रुक जाएगा। दूसरे शब्दों में, वहाँ बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा।'

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