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क्या कोरोना का संकट भारत मलेशिया के रिश्तों को सुधारेगा

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, बुधवार, 29 अप्रैल 2020 (10:16 IST)
रिपोर्ट राहुल मिश्रा
 
कोरोना संकट से जूझती दुनिया के देशों में आपसी रिश्तों के नए आयाम खुल रहे हैं। भारत-मलेशिया की दोस्ती में पड़ी दरार भी संकट के इस दौर में सिमट रही है। क्या इन दोनों देशों की दोस्ती फिर परवान चढ़ेगी?
 
पिछले 2 साल भारत-मलेशिया संबंधों के लिए तनावपूर्ण और उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के कार्यकाल में भारत-मलेशिया रिश्ते में अप्रत्याशित रूप से गिरावट आई और इसकी वजह विदेश नीति का कोई मुद्दा नहीं बल्कि भारत के अंदरुनी मामले रहे। महाथिर ने धारा 370, सीएए और एनआरसी के विरोध में कई बयान दिए। इनमें उनका संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर पर दिया बयान काफी विवादित रहा। भारत ने इन बयानों का कड़ा विरोध किया।
भारत के लिए ज्यादा चौंकाने वाली बात यह रही कि भारत की तरह ही मलेशिया की विदेश नीति भी गुटनिरपेक्षता के मूलभूत सिद्धांतों पर आज भी आधारित है। दूसरे देशों के अंदरुनी मामलों में दखल न देना इसका महत्वपूर्ण आयाम रहा है। बावजूद इसके महाथिर ने लगभग तय-सा कर लिया था कि वो भारत के आंतरिक मामलों में अपनी बात रखकर ही मानेंगे और ऐसा उन्होंने कई बार करने की कोशिश की।
 
गौरतलब है कि चीन में उइगुर मुसलमानों के मामले में महाथिर की चुप्पी ने भारत के मन में कोई संशय नहीं छोड़ा कि महाथिर के बयानों की जड़ें आंतरिक दलगत राजनीति, पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकियों और नए क्षेत्रीय समीकरणों से जुड़ी हैं। बहरहाल स्थिति बिगड़ती गई और इसका खामियाजा द्विपक्षीय व्यापारिक संबंधों को उठाना पड़ा।
 
नया शासन, नई पहल
 
एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम में जब महाथिर सत्ता से बेदखल हुए और मार्च में तानश्री मोहिदीन यासिन की सरकार बनी तो दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों को द्विपक्षीय राजनय के हुनर दिखाने का एक नया अवसर-सा मिल गया, हालांकि यह सब इतना आसान नहीं रहा है।
 
नई सरकार ने भारत के आंतरिक मुद्दों पर फिलहाल ऐसा कुछ भी नहीं कहा है जिससे लगे कि वह अपनी पूर्ववर्ती सरकार के पदचिन्हों पर चल रही है। इसके इतर प्रधानमंत्री मोहिदीन और विदेश मंत्री हिश्मुद्दिन हुसैन दोनों ने ही भारत के साथ सकारात्मक संबंधों की पुरजोर वकालत की है।
 
हाल के दिनों में भारतीय व्यापारियों के मलेशियाई पाम ऑइल न खरीदने के निर्णय ने मलेशिया को मुश्किल में डाल दिया है। मलेशिया की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पाम ऑइल के निर्यात पर निर्भर है। मलेशिया विश्व का दूसरा सबसे बड़ा पाम ऑइल उत्पादक देश है।
 
दूसरी तरफ पिछले 5 से अधिक सालों से भारत मलेशियाई पाम ऑइल का सबसे बड़ा आयातक देश रहा है। हालांकि सबकुछ पहले जैसा होने में वक्त लगेगा लेकिन इस तरफ दोनों ओर से कोशिशें जारी हैं। मिसाल के तौर पर मार्च में भारत ने एडिबल ऑइल पर लगने वाले 5 फीसदी आयात शुल्क को हटा लिया जिसे रिश्ते सुधारने की तरफ उठाया गया एक बड़ा कदम माना गया।
 
मलेशिया से आने वाले पाम ऑइल पर 5 फीसदी द्विपक्षीय सेफगार्ड ड्यूटी आगे न बढ़ाने के निर्णय ने मलेशिया की नई सरकार को भी काफी बल दिया। आर्थिक मामलों में अनिश्चितता से जूझ रहे मलेशिया और भारत दोनों के लिए यह जरूरी कदम था। मलेशिया के कमोडिटी मिनिस्टर मोहम्मद खैरुद्दीन अमान रजाली ने इसे एक सकारात्मक कदम माना और संबंधों में सुधार की आशा भी दिखाई।
फूंक-फूंककर उठे कदम
 
तानश्री मोहिदीन यासिन के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही भारत और मलेशिया ने रिश्तों में सुधार के प्रयास शुरू कर दिए। मलेशिया में भारतीय उच्चायोग का इसमें खासा योगदान रहा, चाहे वो दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच संवाद की शुरुआत हो, विदेशमंत्री एस. जयशंकर और मलेशियाई विदेशमंत्री दातो हशिमुद्दिन के बीच ऑनलाइन बातचीत या कोविड-19 महामारी के बीच दोनों देशों में फंसे अपने अपने नागरिकों को सुरक्षित अपने वतन वापस पहुंचाना हो, भारतीय और मलेशियाई उच्चायोगों और मंत्रालयों ने कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है। यही वजह है कि सुधार की संभावना प्रबल दिख रही है। 
 
कोविड-19 महामारी के बीच दोनों देशों ने आपसी सहयोग को काफी मजबूत किया है और इसकी पुख्ता वजहें हैं। भारत और मलेशिया दोनों को मालूम है कि वे एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं। यही वजह है कि नई सरकार के आने के फौरन बाद से ही दोनों देश राजनयिक रिश्तों में आई दरार को पाटने में लग गए।
 
14 अप्रैल को भारत ने मलेशिया का अनुरोध स्वीकार करते हुए उसे 89,100 हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन टैबलेट निर्यात करने का फैसला लिया। यह मलेरियारोधी दवा है, जो कोविड-19 से लड़ने में खासी कारगर सिद्ध हो रही है। भारत हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन का सबसे बड़ा उत्पादक है।
 
मार्च में भारत ने इसके निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी थी और फिलहाल सिर्फ 55 देशों को ही यह दवा निर्यात की जा रही है। भारत की टाटा फार्मास्युटिकल, आईपीसीए लैबोरेटरीज और कैडिला हेल्थकेयर इसके सबसे बड़े उत्पादक हैं।
 
भारत के इस दोस्ताना कदम को मलेशियाई सरकार ने खूब सराहा। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए पिछले हफ्ते स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक डॉक्टर नूर हाशिम ने यह भी खुलासा किया कि मलेशिया कुछ चुने हुए देशों के साथ मिलकर कोविड-19 की वैक्सीन बनाने में जुटा हुआ है।
 
चीन, ब्रिटेन, रूस, और बोस्निया के अलावा इसमें भारत का भी नाम है। डब्ल्यूएचओ ने मलेशिया को कोविड-19 वैक्सीन के ट्रॉयल के लिए रिसर्च सेंटर की मान्यता दी है। साथ मिलकर कोविड-19 वैक्सीन का निर्माण करने के प्रयासों से निस्संदेह दोनों देशों के हेल्थ सेक्टर में सहयोग बढ़ेगा।
 
सदियों पुराने रिश्ते
 
मलेशिया और भारत के संबंध सदियों पुराने हैं। ये रिश्ते ऐतिहासिक संदर्भों, पुरातात्विक प्रमाणों, लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और डायस्पोरा संबंधों से कहीं ज्यादा गहन और विस्तृत है। मिसाल के तौर पर महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने यह खास प्रबंध किया कि गांधीजी की अस्थियों को तत्कालीन मलाया (आज का मलेशिया और सिंगापुर) भेजा जाए ताकि लोग उनके आखिरी दर्शन कर सकें।
 
जब मलाया का विभाजन हुआ और यह तय हो गया कि मलेशिया और सिंगापुर 2 अलग-अलग देश बनेंगे तो भारत ने बड़ी मुखरता के साथ मलेशिया का साथ दिया, हालांकि इस वजह से इंडोनेशिया खासा नाराज हुआ और 1965 में पाकिस्तान के समर्थन में उसने भारत पर हमला करने की धमकी भी दे डाली।
 
मलेशिया ने भारत के हर युद्ध में उसका राजनयिक मोर्चे पर समर्थन किया है जिसमें भारत-चीन के बीच 1962 का युद्ध भी शामिल है। हालांकि 20वीं शताब्दी में शीतयुद्ध की वजह से भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से उतने अच्छे संबंध नहीं रहे लेकिन मलेशिया मजबूती से भारत के साथ खड़ा रहा और भारत ने भी मलेशिया का साथ नहीं छोड़ा। भारतीय विदेश नीति में मलेशिया आर्थिक, वाणिज्यिक, सामरिक, डायस्पोरा और राजनयिक, हर क्षेत्र में अहम स्थान रखता है।
 
1992 में 'लुक ईस्ट' नीति के आने के साथ संबंधों ने और जोर पकड़ा और दोनों ही देश इस बात को लेकर खासे निश्चिंत रहे कि उनकी दोस्ती को सिर्फ आगे ही बढ़ना है। 2014 में 'एक्ट ईस्ट' नीति के आने के बाद से भारत के दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों में मजबूती ही आई है लेकिन मलेशिया के साथ पिछ्ले 2 वर्षों में आया तनाव आंख की किरकिरी की तरह चुभता रहा है।
 
हाल के प्रयासों से ऐसा लगता है कि दोनों देश विवादों को भूलकर आगे बढ़ सकेंगे। उम्मीद की जा रही है कि कोविड-19 संकट के खत्म होते ही एक मलेशियाई प्रतिनिधिमंडल भारत का दौरा करेगा और पाम ऑइल के मुद्दे पर सकारात्मक कदम उठाए जा सकेंगे। आगे जो भी हो कम से कम यह बात तो साफ है कि दोनों देश अपने रिश्तों को लेकर सजग हैं और इन्हें सुधारने के लिए प्रयासरत भी। यही चीज किसी दोस्ती को बरकरार और मजबूत रखने की अनिवार्य आवश्यकता है।
 
(राहुल मिश्रा मलय यूनिवर्सिटी में सीनियर लेक्चरर और दक्षिण-पूर्व एशिया के जानकार हैं।)

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