- मुरली कृष्णन
Why does Pakistan become an issue in Indian elections : लोकसभा चुनावों के दौरान अब तक पाकिस्तान विरोधी भावनाएं नहीं भड़की हैं। हालांकि भाजपा ने डीडब्ल्यू से कहा कि कश्मीर में वर्षों से चल रहे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की वजह से यह भारत के लिए भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर की विवादास्पद टिप्पणियों वाला पुराना वीडियो हाल में फिर से वायरल हुआ। इससे लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों में पाकिस्तान विरोधी बयानबाजी को लेकर गहमागहमी बढ़ गई है।
इस वीडियो में अय्यर पाकिस्तानियों को भारत की सबसे बड़ी संपत्ति' बता रहे हैं। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को पाकिस्तान के साथ फिर से बातचीत शुरू करनी चाहिए। मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने भी उनके बयानों का समर्थन किया।
भारत के चुनावों में पाकिस्तान की भूमिका
यह वीडियो फिर से वायरल होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेताओं को चुनावी मौसम में कांग्रेस पार्टी को पाकिस्तान के प्रति नरम' दिखाने का मौका मिल गया। बिहार में एक रैली के दौरान पीएम मोदी ने अपने तीखे हमले में कहा, अगर पाकिस्तान ने चूड़ियां नहीं पहनी हैं, तो हम उन्हें चूड़ियां पहना देंगे। उनके पास आटा नहीं है, उनके पास बिजली नहीं है, और अब मुझे पता चला है कि उनके पास चूड़ियों की भी कमी है।
हाल ही में मोदी ने कहा था कि आतंकवाद से निपटने के भारत सरकार के रुख में कांग्रेस शासन के दौरान अपनाए गए दृष्टिकोण की तुलना में बहुत बड़ा बदलाव देखा गया है। महाराष्ट्र के लातूर में एक चुनावी रैली के दौरान मोदी ने कहा, कांग्रेस शासन के दौरान खबरों की सुर्खियां होती थी कि भारत ने आतंकी गतिविधियों के बारे में पाकिस्तान को एक और डोजियर सौंपा। आज भारत डोजियर नहीं भेजता, बल्कि आतंकियों के घर में घुसकर उन्हें मारता है।
फिलहाल मौजूदा लोकसभा चुनावों में पाकिस्तान विरोधी भावनाएं अब तक नहीं भड़की हैं। हालांकि पाकिस्तान से जुड़ा मुद्दा अब नेताओं के लिए एक तरह से अवसरवादी मुद्दा बन गया है। हर कोई पाकिस्तान से जुड़ी भावनाओं का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए अपने-अपने तरीके से करता है। पिछले कुछ हफ्तों में राजनीतिक दलों ने पाकिस्तान पर तीखी टिप्पणियां की हैं। जबकि विदेश नीति से जुड़े मुद्दे अभी तक चुनाव प्रचार के दौरान प्रमुखता से नहीं उठाए गए हैं।
भाजपा प्रवक्ता शाजिया इल्मी ने डीडब्ल्यू से कहा, पाकिस्तान भारत के लिए एक भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है। 2008 के मुंबई हमलों और 2019 में पुलवामा में अर्धसैनिक बलों पर हुए हमलों के साथ-साथ, कई वर्षों तक सीमा पार आतंकवाद और कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित उग्रवाद की वजह से यह भारत के लोगों के दिमाग में पूरी तरह बैठ गया है। मणिशंकर अय्यर और फारूक अब्दुल्ला की टिप्पणियां विवादास्पद और निंदनीय हैं।
2019 में बड़ा मुद्दा था पाकिस्तान
जब 2019 में नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार सत्ता में वापसी की थी, तब भाजपा के अभियान का मुख्य मुद्दा पाकिस्तान था। दरअसल, 2019 के मतदान से कुछ महीने पहले भारत प्रशासित कश्मीर में एक आत्मघाती हमलावर ने भारतीय अर्धसैनिक बलों को ले जा रहे वाहनों के काफिले पर हमला कर दिया था। इस हमले में 46 सैनिकों की मौत हो गई थी।
इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान के अंदर बालाकोट में लड़ाकू विमानों से हमला किया था। भारत का दावा है कि यहां उसने उन आतंकवादियों को मार दिया जो भारत में हमले की योजना बना रहे थे। पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि मौजूदा चुनावी चर्चा पाकिस्तान नीति से ज्यादा राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर है।
वह कहते हैं, 2019 में हमने देखा कि पुलवामा हमले और बालाकोट में भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मजबूत अभियान चलाया। इस बार के चुनावी अभियान में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा उस तरह का मुद्दा नहीं दिख रहा है। हालांकि मौजूदा सत्तारूढ़ सरकार कश्मीर और पाकिस्तान से जुड़ी अपनी नीतियों का श्रेय लेने पर जोर दे रही है।
राजनीतिक दांव-पेच
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू और कश्मीर को अपना संविधान और कुछ हद तक आंतरिक स्वायत्तता की अनुमति मिली हुई थी। हालांकि भारत सरकार ने 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया। राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेश, जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख में विभाजित कर दिया।
बिसारिया कहते हैं, बालाकोट हवाई हमले और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले की अब पांच साल बाद समीक्षा की जा सकती है। साथ ही यह दावा किया जा सकता है कि बालाकोट हवाई हमले ने आतंकवादियों को यह डर दिखा दिया कि अगर वे भारत के खिलाफ कोई हरकत करेंगे तो उन्हें कड़ा जवाब दिया जाएगा। वहीं अनुच्छेद 370 हटाने से जम्मू और कश्मीर में शांति स्थापित करने में मदद मिली है।
हाल की चुनावी रैलियों में देश के गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बात पर जोर दिया कि इस बार सत्ता में आने के बाद भारत सरकार पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर को वापस हासिल करने' के लिए अतिरिक्त कदम उठाएगी। ये बातें हाल ही में पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के कई इलाकों में हुए विरोध प्रदर्शनों के बारे में किए गए सवालों के जवाब में कही गई थीं। वहां गंभीर आर्थिक संकट के बीच खाने और बिजली की बढ़ती कीमतों के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे।
शाह ने चुनावी रैलियों में कहा, मणिशंकर अय्यर जैसे कांग्रेसी नेता कहते हैं कि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उनके पास (पाकिस्तान) परमाणु बम है। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि 'पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके)' भारत का हिस्सा है और हम इसे लेकर रहेंगे।
बिसारिया कहते हैं, यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापस लेना फिलहाल भारत का मुख्य लक्ष्य नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में हो रही अशांति से भारत को यह मौका मिला है कि वह अपने पुराने रुख को दोहराए और भारत-पाकिस्तान के बीच ताकत के अंतर को दिखाए।
भाजपा नेताओं की बयानबाजी जारी
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो और रणनीतिक विशेषज्ञ सी. राजा मोहन ने कहा कि मोदी पाकिस्तान के साथ संबंधों को बदलने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मोदी ने पाकिस्तान पर कटाक्ष करने के साथ-साथ उसके मौजूदा आर्थिक संकट की ओर भी इशारा किया। प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट सहयोगियों ने चुनाव प्रचार के दौरान फिर से पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को निशाना बनाने की बात कही।
मोहन आगे कहते हैं, पाकिस्तान के खिलाफ अनावश्यक मौखिक आक्रामकता ऐसे समय में सामने आई है, जब शरीफ भाइयों (नवाज और शहबाज शरीफ) के नेतृत्व वाली नई पाकिस्तान सरकार भारत के साथ संबंधों को सुधारने के लिए दिलचस्प संकेत दे रही है। हालांकि मोहन ने तुरंत इशारा किया कि मोदी और दक्षिणपंथी विचारधारा वाली उनकी पार्टी भाजपा को उम्मीद है कि पाकिस्तान में उनके वार्ताकार समझेंगे कि यह तीखी बयानबाजी सिर्फ चुनाव प्रचार का हिस्सा है। ये नीतिगत इरादे नहीं हैं।
मोदी सहित अन्य भारतीय नेताओं के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने कहा कि इन बयानों में पाकिस्तान के प्रति एक अस्वस्थ और जड़ जमाई हुई सोच की झलक दिखाई देती है। साथ ही, इससे चुनावी लाभ के लिए अति-राष्ट्रवाद का फायदा उठाने का एक सुनियोजित इरादा भी उजागर होता है।
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने साप्ताहिक प्रेस ब्रीफिंग में भारतीय चुनाव के दौरान दिए जा रहे बयानों के बारे में पूछे जाने पर कहा, यह बढ़ती घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आलोचना से ध्यान हटाने के लिए किया जा रहा एक हताश प्रयास भी है।