विभिन्न वजहों से यह पड़ोसी देश खासकर पश्चिम बंगाल के छात्रों के लिए मेडिकल की पढ़ाई का सबसे पसंदीदा ठिकाना बनता जा रहा है। इनमें सबसे बड़ी भूमिका वहां भारत के मुकाबले पढ़ाई पर होने वाले कम खर्च की है। इसके अलावा रहन-सहन, बोली और खान-पान की समानताओं ने भी इसमें काफी अहम भूमिका निभाई है। यही वजह है कि रूस-युक्रेन युद्ध के बाद इस राज्य से पढ़ाई के लिए बांग्लादेश जाने वाले छात्रों की तादाद बढ़ी है। मौटे अनुमान के मुताबिक, हर साल बंगाल से तीन हजार से ज्यादा छात्र बांग्लादेश के सरकारी और निजी मेडिकल कालेजों में दाखिला ले रहे हैं।
मेडिकल की किफायती पढ़ाई और सीटें भी
विदेशों में छात्रों के दाखिले में मदद करने वाली कोलकाता की एक सलाहकार फर्म के मालिक अजित सान्याल डीडब्ल्यू को बताते हैं, "भारत में निजी मेडिकल कालेजों में पढ़ाई का न्यूनतम खर्च 50 से 60 लाख के बीच है। कई कॉलेजों में तो यह खर्च एक करोड़ से भी ऊपर है। लेकिन बांग्लादेश के मेडिकल कॉलेजों में यह खर्च लगभग आधा है। यही वजह है कि बांग्लादेश अब बंगाल के छात्रों की पहली पसंद बनता जा रहा है। वहां सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पांच हजार से ज्यादा सीटें हैं। इसके साथ ही शिक्षा का स्तर भी बेहतर है।"
बांग्लादेश के 37 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में करीब 4350 सीटें हैं जबकि 72 निजी कॉलेजों में सीटों की तादाद 6,489 है। सान्याल बताते हैं कि घर से बांग्लादेश स्थित कॉलेज तक आने-जाने का खर्च भी दूसरे देशों के मुकाबले काफी कम है। बंगाल से बाग्लादेश जाने के लिए उड़ानों के अलावा ट्रेनें और बसें भी उपलब्ध हैं। कॉलेज की छुट्टियों के दौरान तमाम छात्र बेहद कम खर्च और समय में घर लौट सकते हैं।
फिलहाल बांग्लादेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले करीब 8,500 छात्रों में से पांच हजार से ज्यादा बंगाल के ही हैं। सार्क देशों के लिए आरक्षण के तहत बांग्लादेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कुछ सीटें भारतीय छात्रों के लिए आरक्षित हैं।
अधर में लटके बांग्लादेश से लौटे भारतीय छात्र
रंगपुर मेडिल कॉलेज में पढ़ने वाली सबीना मंडल डीडब्ल्यू से कहती हैं, "मैंने रूस, नेपाल और कजख्तान के मेडिकल कालेजों में पढ़ने वाले कई परिचितों से बातचीत के बाद बांग्लादेश में पढ़ने का फैसला किया था। वहां पढ़ाई का स्तर काफी बेहतर है।"
वह कहती है कि अब पता नहीं कब तक वहां लौटना होगा? फिलहाल तो हालात में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं नजर आ रही है। उन्हें लगता है कि अब उन्हें महीनों घर पर ही रहना होगा। लेकिन संतोष की बात यह है कि ये लोग सुरक्षित घर लौट आए हैं।
ढाका से लौटने वाले एक छात्र अंशुमान लाहिड़ी डीडब्ल्यू को बताते हैं, "बांग्लादेश के कॉलेजों में दाखिले की प्रक्रिया काफी आसान है। वहां दाखिले के लिए आपको किसी एजेंट या सलाहकार की जरूरत नहीं पड़ती। इससे काफी पैसा बच जाता है। आप सीधे कॉलेज को संबंधित कागजात भेज कर दाखिला ले सकते हैं। दाखिले के लिए एक ही शर्त है कि छात्र या छात्रा को नीट (NEET) की परीक्षा पास करनी होगी।"
किशोरगंज के एक मेडिकल कॉलेज में चौथे वर्ष के छात्र मोहम्मद नसीम बताते हैं, "मैंने वर्ष 2021 में नीट की परीक्षा में दस हजार की रैंकिंग हासिल की थी। उससे किसी सरकारी कॉलेज में दाखिले की संभावना नहीं थी और निजी कॉलेज में पढ़ाई मेरी हैसियत के बाहर थी। इसलिए कई विकल्पों पर विचार करने के बाद मंने बांग्लादेश में पढ़ने का फैसला किया। यह हर लिहाज से मेरे लिए मुफीद था। वहां अधिकतम खर्च 35 से 50 लाख के बीच होगा।"