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इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी के लिए कहां से आए कच्चा माल

हमें फॉलो करें इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी के लिए कहां से आए कच्चा माल

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, शुक्रवार, 13 जनवरी 2023 (09:29 IST)
-रिपोर्ट: कैर्स्टीन ग्रुंडर, आंके रीडेल
 
कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। उसके लिए बैटरी जरूरी है लेकिन बैटरी बनाने के लिए लीथियम चाहिए। लेकिन यूरोपीय देश लीथियम का आयात करते हैं। लीथियम के बिना बिजली से चलने वाले वाहन चलाना संभव नहीं है। यूरोप में ई-वाहनों पर शोध तो हो रहा है, लेकिन लीथियम की लंबे समय तक उपलब्धता एक बड़ा सवाल है।
 
यूरोप अपने पास पर्याप्त भंडार होने का बावजूद लैटिन अमेरिका से लीथियम आयात कर रहा है। हालांकि, वहां से लीथियम मंगवाना खर्चीला साबित हो रहा है। इनके अलावा इसकी रीसाइक्लिंग में बहुत-सी ऊर्जा और केमिकल खप रहे हैं। क्या लीथियम हासिल करने के कोई और रास्ते भी हैं?
 
यह जानने के लिए पहले लीथियम की कैमिस्ट्री समझनी होगी। प्रकृति में पाया जाने वाला लीथियम हमेशा शुद्धतम रूप में उपलब्ध नहीं होता। यह अन्य तत्वों से जुड़ा होता है। ऐसा इसमें इलेक्ट्रॉनों की स्थिति के चलते होता है। इसमें एक इलेक्ट्रॉन की जगह खाली होती है जिसे यह केमिकल बॉन्ड बनाने के लिए आसानी से छोड़ देता है। लीथियम को इन पदार्थों से अलग कर पाना आमतौर पर एक जटिल प्रक्रिया है।
 
लीथियम निकालने का आसान किफायती तरीका
 
लेकिन लैटिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। इस इलाके में दुनिया का आधे से ज्यादा लीथियम भंडार मौजूद है। यहां यह खारे पानी की झीलों की सफेद परत के नीचे नमक के साथ मिला होता है। इसे निकालना आसान है। झील से पानी निकालकर उसे वाष्पित होने दिया जाता है। इस तरह पानी उड़ जाता है और लीथियम संपन्न पदार्थ बच जाता है। फिर लीथियम को अलग करने के लिए केमिकल इस्तेमाल होते हैं। इनमें से कुछ केमिकल जहरीले होते हैं।
 
इसके अलावा जब खारे पानी को झील से निकाला जाता है तो यह भूजल को भी खींच लेता है, जो यहां के शुष्क इलाके में बड़ी समस्या है। मीडियम रेंज वाली एक इलेक्ट्रिक कार की बैटरी बनाने के लिए 3 से 12 हजार लीटर पानी खर्च हो जाता है। जानकार मानते हैं कि भूजल का बेतरतीब दोहन इन लीथियम संपन्न इलाकों को रेगिस्तान में तबदील कर सकता है। यह हमारी बैटरियों के लिए बहुत बड़ी कीमत है।
 
पुर्तगाल पूरी कर सकता है यूरोप की मांग
 
पुर्तगाल के पास इतना लीथियम है कि पूरे यूरोप की मांग पूरी कर सके। बहरहाल, यूरोप में भी संरक्षणवादी लीथियम खनन के प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। पुर्तगाल के उत्तरी इलाके में बसे बारोसो में जल्द ही बड़े पैमाने पर खनन शुरू हो जाएगा। लेकिन बारोसो इलाके के लोग अपनी जमीन को लेकर चिंतित हैं।
 
स्थानीय किसान पाउलो पाइरेज कहते हैं कि खदान घरों से 200 मीटर की दूरी पर होगी। यह यहां पानी को बर्बाद कर देगी और मैदानों की ताजा घास-झाड़ियां धूल से अट जाएंगी, बर्बाद हो जाएंगी। किसानों को डर है कि उनकी जमीन पहले की तरह अच्छी नहीं रहेगी।
 
जर्मनी क्या योजना बना रहा है?
 
जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के साथ ही मर्सिडीज, ऑडी, फॉक्वैगन और बीएमडब्ल्यू जैसी दिग्गज ऑटोमोबाइल कंपनियों का घर भी है। यह कंपनियां धीरे-धीरे बाजार में नए इलेक्ट्रिक मॉडल ला रही हैं। ऐसे में लीथियम की मांग को पूरा करने के लिए जर्मनी नए रास्ते तलाशने में जुटा है। एक अनुमान के मुताबिक जर्मनी में 27 लाख टन लीथियम है। यह मात्रा पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा है।
 
यूरोपीय संघ के बहुत से अन्य सदस्यों के पास भी लीथियम के भंडार हैं, लेकिन या तो खनन मुश्किल है या बहुत ज्यादा खर्चीला। ऐसे में वैज्ञानिक जियोथर्मल शक्ति का इस्तेमाल बिजली और लीथियम, दोनों के लिए करना चाहते हैं। जर्मनी के लीथियम भंडार राइन नदी के हजारों मीटर नीचे दबे हैं, खौलते पानी के सोतों में। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लीथियम निकालने में जियोथर्मल बिजली काम आ सकती है।
 
जर्मनी के लीथियम उत्पादन में कम उत्सर्जन
 
आइडिया ये है कि अत्यधिक गहराई में मौजूद गर्म पानी को हीटिंग और बिजली के लिए निकाला जाए। तभी लीथियम भी निकाल लिया जाए। वुलकान एनर्जी रिसोर्सेस के महानिदेशक डॉ। हॉर्स्ट क्रॉयटर कहते हैं कि यहां अपर राइन घाटी में जो लीथियम हम तैयार कर रहे हैं, वो पूरी तरह CO2 मुक्त है। ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका के लीथियम की तरह नहीं, जो लंबे ट्रांसपोर्ट रूट और उत्पादन तकनीक की वजह से बहुत सा CO2 उत्सर्जित करता है।
 
लेकिन क्या ये आर्थिक लिहाज से भी उपयुक्त है, यह देखना बाकी है। लीथियम को रीसाइकल करना उसके आयात को घटाने का एक और तरीका है। और यूरोपीय संघ रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया को धीरे-धीरे तेज करना चाहता है। लेकिन रीसाइकल हुई बैटरियों से लीथियम निकालने के लिए बहुत सारी ऊर्जा चाहिए और केमिकल भी। फिलहाल यह तरीका ज्यादा कारगर नहीं है, क्योंकि दाम घटने-बढ़ने के बावजूद दक्षिण अमेरिका से आ रहा लीथियम कोई खास महंगा नहीं है।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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