Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

कहां से आई कोरोना महामारी: कुछ सवालों के जवाब

हमें फॉलो करें कहां से आई कोरोना महामारी: कुछ सवालों के जवाब

DW

, शनिवार, 28 अगस्त 2021 (11:11 IST)
रिपोर्ट : अलेक्जेंडर फ्रॉयन्ड
 
कोरोनावायरस की महामारी कैसे और कहां से फैली, इसे लेकर एक अमेरिकी जांच पूरी होने वाली है। क्या वाकई लैब हादसे में वायरस लीक हुआ? कौन से जानवर से वायरस फैला? ऐसे तमाम सवाल अभी कायम हैं। लेकिन कुछ जवाब हमारे पास हैं।
 
सार्स कोवि-2 कोरोनावायरस के स्रोत के बारे में तमाम मालूमात जुटाने के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 90 दिन की डेडलाइन दी थी। 25 अगस्त को वो डेडलाइन पूरी हो चुकी है। रिपोर्ट से पहले यहां वो तमाम लेखाजोखा पेश किया जा रहा है जिसके बारे में लोग पहले से ही जानते हैं।
 
2020 की शुरुआत में सामने आए सार्स-कोवि-2 से, दुनियाभर में अब तक करीब 21 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं। चार करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। महामारी ने देशों की अर्थव्यवस्थाओं को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन ये खतरनाक रूप से संक्रमण फैलाने वाला वायरस आया कहां से? अभी तक इस बारे में कयास ही ज्यादा हैं, तथ्य नहीं।
 
मई 2021 में ' द वॉल स्ट्रीट जर्नल' में एक पूर्व अप्रकाशित खुफिया रिपोर्ट के हवाले से वुहान के वायरोलोजी संस्थान में हुए एक संभावित हादसे के बारे में खबर छपी थी।
 
खबर के मुताबिक नवंबर 2019 में संस्थान के तीन कर्मचारी, कोविड जैसे लक्षणों के साथ इतने गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे कि उन्हें क्लिनिक में भर्ती कराना पड़ा। चीन ने ऐसी किसी घटना से इंकार कर दिया था। इसी का नतीजा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 27 मई को खुफिया बिरादरी को संभावित लैब हादसे के बारे में अटकलों को दरकिनार करते हुए ठोस प्रामाणिक तथ्य जुटाने का आदेश दिया।
 
बाइडेन का कहना था, 'मुकम्मल, पारदर्शी, तथ्य आधारित अंतरराष्ट्रीय जांच में सहयोग का और तमाम जरूरी डाटा और साक्ष्य उपलब्ध कराने का, चीन पर दबाव बनाने के लिए अमेरिका अपने समान सोच वाले भागीदारों के साथ मिलकर काम करता रहेगा।'
 
लेकिन चीन का आरोप था कि अमेरिका ने छानबीन के काम को राजनीतिक रंग दिया और महामारी का दोष चीन पर मढ़ा। ये आरोप लगाने वाला चीन एक खुली जांच पर अड़ंगा लगाता आ रहा है और सैद्धांतिक आधार पर जिम्मेदारी लेने से साफ इंकार कर चुका है।
 
अब तक हमें क्या पता है?
 
पिछले साल जनवरी में चीनी वैज्ञानिकों ने वुहान शहर में बड़ी संख्या में लोगों की जान लेने वाले अज्ञात निमोनिया संक्रमण के एक क्लस्टर की वजह जान ली थी। उन्हें मरीजों की श्वसन कोशिकाओं में कोरोना वायरस फैमिली के ही एक पॉजिटिव स्ट्रैंड वाले आरएनए वायरस के जीन्स मिले थे। ये वायरस सबग्रुप बी (बीटा कोरोनावायरस) का था। 
 
वायरस निश्चित रूप से पूरी तरह नया था। लेकिन 2002-2004 में सार्स महामारी लाने वाले कोरानावायरस से काफी मिलता-जुलता था। उसे सार्स-कोवि-वन भी कहा जाता है। दक्षिणी चीन से शुरू हुआ वो पुराना वायरस कुछ ही हफ्तों में कमोबेश सभी महाद्वीपों में फैल गया। दुनियाभर में 8,096 लोग इस सीवयर एक्यूट रेसपिटेरी सिंड्रोम यानी सार्स की चपेट में आए जिममें से 774 की मौत हो गई थी।
 
मौजूदा सार्स वायरस के मुकाबले उस समय केस कम थे। फिर भी उससे इतना तो स्पष्ट हो ही गया था कि बहुत ज्यादा संक्रामक बीमारी कितनी भयावह तेजी के साथ भूमंडलीकृत विश्व में फैल सकती है।
 
वायरस सबसे पहले कहां पाया गया?
 
कुछ अध्ययनों के मुताबिक नया सार्स-कोवि-2 वायरस, दिसंबर 2019 में वुहान में पाए जाने से पहले कई हफ्तों से या महीनों से फैलता आ रहा था। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक चीन में मध्य नवंबर में ही पहले संक्रमण की पुष्टि हो चुकी थी। हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि वायरस आवश्यक रूप से चीन में ही सबसे पहले पनपा होगा।
 
केंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की अप्रैल 2020 में आई एक स्टडी के मुताबिक बहुत संभव है कि महामारी साल 2019 के सितम्बर और शुरुआती दिसंबर महीनों के बीच कभी फूटी हो- या तो चीन में या किसी अन्य पड़ोसी देश में।
 
लेकिन ब्राजील और इटली से मिले गंदे पानी के नमूनों में भी नोवेल वायरस के निशान पाए गए थे। ये नमूने क्रमशः नवंबर और दिसंबर 2019 में इकट्ठा किए गए थे। इटली में सार्स-कोवि-2 की एंटीबॉडीज, फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग वाले एक प्रोग्राम में शामिल प्रतिभागियों के खून में भी पाई गई थी। हैरानी की बात है कि इनमें से कुछ ब्लड सैंपल सितंबर 2019 में ही लिए जा चुके थे। कुछ फरवरी 2020 में लिए गए। हालांकि इस स्टडी के नतीजों को लेकर कुछ अनिश्चितता भी बनी रही है।
 
ये तथ्य है कि 2019 के आखिरी दिनों में और चीन में मध्य नवंबर से यहां-वहां वायरस मिल ही चुका था। लेकिन उसके जरिए वायरस के मूल स्थान को लेकर किसी विश्वसनीय नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है। उससे सिर्फ इतना ही पता चलता है कि खतरनाक वायरस कितनी तेजी से पूरी दुनिया में फैल सकता है।
 
वायरस किस जानवर से आया था?
 
सबसे मुमकिन संभावना तो एक इंटरमीडिएट होस्ट के जरिए जीवविज्ञानी मूल की है। इसका मतलब कोई जानवर मूल वायरस का वाहक होगा, उससे वो किसी और जानवर में जाएगा और उस जानवर से पहले इंसान में। लेकिन अभी तक, पक्के तौर पर न तो संभावित सोर्स पशु और न ही इंटरमीडिएट होस्ट की शिनाख्त हो पाई है। जानवरों में भी दो सार्स कोरोनावायरस की स्पष्ट रूप से पहचान अभी नहीं हो पाई है।
 
लेकिन ये तय है कि दोनों सार्स वायरस, उन कोरोनावायरस प्रजातियों से ही ताल्लुक रखते हैं जो दक्षिणपूर्व एशिया की कुछ विशेष चमगादड़ प्रजातियों में मिलते हैं। इसके अलावा, अध्ययनों से ये पता चल चुका है कि सार्स और मेर्स (मिडल ईस्टर्न रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) जैसी कोरानावायरस से जुड़ी पूर्व महामारियों का संबंध चमगादड़ों से भी रहा है। 
 
मौजूदा सार्स-कोवि-2 की जीन तरतीब, कोरानावायरस आरएटीजी13 से 96।2 प्रतिशत मिलती-जुलती है। ये वायरस पहले एक हॉर्सशू चमगादड़ में मिला था। 96 प्रतिशत से ज्यादा का मतलब बहुत होता है, लेकिन ये सिर्फ एक पहला संकेत है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पेंगोलिन में पाए जाने वाले कोरानावायरस से मिलान भी थोड़ा ही कम है।
 
अधिकांश लोगों का हॉर्सशू चमगादडों या पेंगोलिन से सीधा संपर्क नहीं होता है, इसलिए विशेषज्ञ संभावित इंटरमीडिएट होस्ट जीवों के बारे में भी खोजबीन कर रहे हैं जो इंसानों से निकट संपर्क में रहते हैं, जैसे कि मिंट, मार्टेन और सीवेट। उदाहरण के लिए मिंट में इंसानों से सार्स-कोवि-2 संक्रमण ज्यादा आसानी से हो सकता है। वैसे जानवरों से इंसानों में रोग या वायरस नहीं आता है लेकिन मुमकिन तो है।
 
बर्लिन में वायरोलॉजिस्ट क्रिस्टियान ड्रोस्टन भी मानते हैं कि फर उद्योग में सार्स-कोवि-2 की जड़ें हों- ये दलील सबसे विश्वसनीय लगती है। ड्रोस्टन ने स्विस ऑनलाइन पत्रिका रिपब्लिक को बताया, 'सार्स-कोवि-1 की पहले ही स्पष्ट रूप से साबित हो चुकी मौजूदगी के अलावा मेरे पास और कोई प्रमाण तो नहीं है। ये वायरस उसी प्रजाति का है। समान प्रजाति के वायरस एक जैसी चीजें करते हैं और अक्सर उनका मूल स्थान भी एक ही होता है।'
 
पहले सार्स वायरस में इंटरमीडिएट होस्ट थे- रकून डॉग्स और विवेरिड्स। ड्रोस्टन कहते हैं, 'विज्ञान ने इसकी तस्दीक की है।' वह बताते हैं कि चीन में रकून डॉग्स का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर फर इंडस्ट्री में होता है। वो समझाते हैं कि जंगली रकून डॉग्स को ब्रीडिंग के लिए बार बार लाया जाता है। इन जानवरों ने चमगादड़ खाए होते हैं- जो सार्स-कोवि-2 के सबसे संभावित स्रोत माने जाते हैं।
 
ड्रोस्टन के मुताबिक, 'जिंदा रकून डॉग्स और विवेरिड्स की खाल उतार ली जाती है।' वे चीखते हैं, चिल्लाते हैं, हुंकार भरते हैं और इस प्रक्रिया में एयरोसोल निकलते हैं। इस तरह से भी इंसान वायरस की चपेट में आ सकते हैं।
 
वह कहते हैं कि उनके लिए ये देखना हैरानी भरा था कि ब्रीडिंग का ये रूप, महामारी के फिर से संभावित शुरुआती बिंदु के रूप में उभर कर आएगा। हाल तक वो इस बारे में गलत थे और उनके मुताबिक नादानी में ही मानने लगे थे कि अधिकारियों ने वायरस की इंटरमीडियट होस्ट समझी जाने वाली प्रजातियों की ब्रीडिंग पर कड़े नियंत्रण लगा दिए हैं।
 
'मेरे लिए वो मामला बंद और खत्म हो चुका था। मैं सोचता था कि इस किस्म की पशु तस्करी बंद हो चुकी है और ये दोबारा लौट कर नहीं आएगी। और अब तो सार्स ही लौट आया है।'
 
ड्रोस्टन ने माना कि इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि इंसानों में वायरस, फर फार्मों के जरिए घुसा होगा। उनके मुताबिक इस बारे में अभी एक भी अध्ययन नहीं हुआ है, कम से कम सार्वजनिक तो बिल्कुल नहीं हुआ है।
 
क्या वायरस लैब से निकला?
 
साक्ष्यों से पता चलता है कि वुहान के वायरोलजी संस्थान में कोरोनावायरस आरटीजी13 और आरएमवाइएन02 के साथ प्रयोग किए थे। इनकी जीन व्यवस्था सार्स कोवि-2 से 93।3 प्रतिशत मिलती-जुलती है। इसका मतलब दो अप्रमाणित स्थितियां बनती हैं- या तो सार्स-कोवि-2 को एक जैव हथियार के रूप में कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है और/या वो दुर्घटनावश लीक हो गया है।
 
चीन भेजे गए डब्लूएचओ विशेषज्ञों ने दोनों स्थितियों को एक लिहाज से नकार ही दिया है। हालांकि वे इस थ्योरी को पूरी तरह से खारिज करने के लिए ठोस साक्ष्य जुटाने में वाकई सक्षम नहीं थे। इस साल की शुरुआत में अपनी बहुत ही सीमित जांच के दौरान उन्हें अपने स्तर पर छानबीन करने या प्रमाण जुटाने की छूट नहीं मिली थी।
 
उन्हें तो अपने चीनी दुभाषियों से हासिल सूचनाओं और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डाटा पर ही निर्भर रहना पड़ा था। दौरे के बाद डब्लूएचओ के प्रमुख ट्रेडोस गेब्रियासस ने ये मांग भी की थी कि कम से कम वुहान में लैब हादसे वाली दलील की जांच ही करा ली जाए।
 
जैविक हथियार का प्रमाण क्या है?
 
बहुत से जानकारों का मानना है कि वुहान की रिसर्च लैब में सार्स-कोवि-2 का कृत्रिम उत्पादन होना असंभव है। कैलिफोर्निया के ला जोला में स्क्रिप्स रिसर्च इन्स्टीट्यूट से जुड़े स्वीडन के माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर क्रिस्टियान एंडरसन ने वायरस की सतह पर प्रमुखता से चिपके हुए स्पाइक प्रोटीनों का अध्ययन किया है। इन्हीं स्पाइकों के जरिए वायरस गले या फेफड़ों की होस्ट कोशिकाओं पर फंदा डालता है।
 
जीनोम के सिलसिले ने सार्स-कोव-2 और उसके कोराना घराने के बीच दो महत्त्वपूर्ण अंतरों को उजागर किया है। प्रोटीन की संरचना अलग तरह की है और एमीनो एसिड्स की अलग। ला जोला के वैज्ञानिकों की टीम के मुताबिक, इससे हो सकता है कि सार्स-कोवि-2 को इंसानी कोशिकाओं को संक्रमित करने में आसानी होती हो, लेकिन समूचा वायरस ढांचा इतना उन्नत या परिष्कृत नहीं होता है कि वो 'जैविक हथियार' के रूप में काम कर जाए।
 
बर्लिन के वायरोलॉजिस्ट ड्रोस्टन भी मानते हैं कि लैब में वायरस की पैदाइश वाली दलील जमती नहीं। 'अगर किसी ने इस तरह सार्स-कोवि-2 विकसित कर लिया है तो मैं कहूंगा कि उसने अंधेरे मे तीर चलाया है।'
 
पहले सार्स वायरस को आधार मानते हुए ड्रोस्टन कहते हैं कि शोधकर्ता अगर कोई बदलाव करेंगे भी तो सिर्फ शोध के उद्देश्यों के लिए बहुत ही खास विशेषताओं को ही बदल पाएंगे जबकि सार्स-कोवि-2 पहले वायरस से बहुत ज्यादा अलग है। उनके मुताबिक इसका मतलब ये है कि वे स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत विकसित हुए हो सकते हैं।
 
लैब हादसे के बारे में क्या कहना है?
 
चीन के शोधकर्ताओं ने आरएटीजी13 और आरएमवाईएन02 जैसे खतरनाक कोरोनावायरसों पर प्रयोग किए थे और उस दौरान दुर्घटनावश सार्स-कोवि-2 रिलीज हो गया- ये सिद्धांत अपनी जगह कायम है। लेकिन चीन सरकार इसका पुरजोर खंडन कर चुकी है।
 
चीन भेजे गए डब्लूएचओ विशेषज्ञ भी, अपने पास उपलब्ध डाटा के आधार पर ऐसी किसी दुर्घटना के होने को सही नहीं मानते। दूसरी चीजों के अलावा वायरस की उत्पत्ति भी ऐसी दलील के खिलाफ है। वुहान आला दर्जे की सुरक्षा वाली प्रयोगशालाओं में से है। और डब्लूएचओ के जांचकर्ताओं को उपलब्ध कराए गए डाटा में ऐसे कोई संकेत नहीं है कि जिनसे लैब में हादसों या कर्मचारियों में संदेहजनक बीमारियों का संकेत मिलता हो।
 
लेकिन द वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में जिस अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, उसे लगता है कि चीन का डाटा, पूरा सच नहीं बता रहा है। संस्थान के उन तीन कर्मचारियों का कोई जिक्र नहीं है जो नवंबर 2019 में कोविड-19 जैसे लक्षणों से इतने गंभीर रूप से बीमार पड़े थे कि उनका एक क्लिनिक में इलाज कराना पड़ा था। इस पर भी चीन का दावा है कि वैसा कुछ नहीं हुआ।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

तालिबान का 1996 से 2001 तक अफ़ग़ानिस्तान में कैसा शासन था?- विवेचना