वॉशिंगटन में अमेरिकी संसद पर हमले के लिए डोनाल्ड ट्रंप और उनके सिपहसालार जिम्मेदार हैं। डॉयचे वेले की इनेस पोल लिखती हैं कि सत्ता में उनका समय अब खत्म हो गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था पर डोनाल्ड ट्रंप के हमले अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गए। बुधवार को फिर उन्होंने अपने बयान में कहा था कि 2 महीने पहले जिस चुनाव में उन्हें हार मिली, उसे उनसे छीना गया है। इससे उनके वफादार समर्थकों का हौसला इतना बढ़ा कि उन्होंने तख्ता पलट करने की कोशिश कर डाली।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ट्रंप ने ही अपने वफादार श्वेत राष्ट्रवादी दंगाइयों, कॉन्सपिरेसी थ्योरी रचने वालों और इंटरनेट पर उनके समर्थन में झंडा बुलंद करने वालों को देश की राजधानी में जंगलराज फैलाने के लिए भेजा। जब भी लोकतंत्र को सुरक्षित करने और सत्ता के हस्तांतरण की बात आती है तो अमेरिका पीढ़ियों से एक उम्मीद की किरण रहा है। लेकिन ट्रंप ने बाकी दुनिया को दिखा दिया है कि अमेरिकी व्यवस्था कितनी नाजुक और डांवाडोल है।
ट्रंप के सिपहसालार भी जिम्मेदार
यह बात भी समझनी होगी कि यह समस्या सिर्फ ट्रंप और उनके अक्खड़ रवैये के चलते पैदा नहीं हुई है। उनके आसपास जो उनके सिपहसालार हैं, जो उनकी कही बातों को इंटरनेट पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, वे भी जिम्मेदार हैं। इनमें 12 सीनेटर और अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा के 100 से ज्यादा सदस्य शामिल हैं, जो मानते हैं कि नवंबर में होने वाला चुनाव अवैध था (या कम से कम वे चुनाव के नतीजे पर सवाल उठाते हैं।) उन्होंने गलत जानकारी के प्रसार और अफरा-तफरी को रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
रिपब्लिकन देखते रहे कि कैसे मनमानी करने वाले एक शख्स ने उनकी पार्टी पर कब्जा कर लिया और उसे एक ऐसी सरकार बनाने दी जो लोगों के लिए नहीं बल्कि सिर्फ उस एक व्यक्ति के लिए ही काम करती है।
सब कुछ जला दो
ऐसा लगता था कि कैपिटॉल हिल पर लोकतंत्र जल रहा है लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप अपनी लगाई इस आग को ओवल ऑफिस में बैठकर टीवी पर देख रहे थे। इस पर बयान देने में उन्हें घंटों लग गए। उन्होंने विनम्रता के साथ अपने दंगाइयों से 'शांति' बनाए रखने को कहा। ट्रंप ने स्थिति को संभालने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की, बल्कि उन्होंने तो इन लोगों से कहा कि वे तो उन्हें 'प्यार' करते हैं और मानते हैं कि वे 'खास' हैं। दंगाइयों के लिए ऐसे शब्द लोकतंत्र का घोर अपमान हैं।
अमेरिका में अब सत्ता परिवर्तन में कुछ ही दिन बचे हैं। ऐसा लगता है कि ट्रंप अपनी पार्टी और उसके साथ ही लोकतंत्र की बुनियादों को जलाकर तबाह करना चाहते हैं। उन्होंने अपने सबसे वफादार लोगों पर भी हमले शुरू कर दिए हैं जिनमें उपराष्ट्रपति माइक पेंस भी शामिल हैं। ट्रंप ने साफ कर दिया है कि अच्छा रिपब्लिकन वही है, जो आखिर तक उनका साथ देगा। इस तरह की भाषा देश के रूढ़िवादी मीडिया और सोशल मीडिया में भी दिख रही है। इसी के चलते यह स्थिति पैदा हुई है, जो हमने बुधवार को वॉशिंगटन में देखी। साफतौर पर ट्रंप को गणतंत्र की कोई चिंता नहीं है जिसकी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है, बल्कि वे तो खुद को नेता नहीं चुने जाने की सूरत में इसे दोफाड़ करने पर आमादा हैं।
पुलिस के दोहरे मानदंड
कांग्रेस के दोनों सदनों, उसके सदस्यों और वहां काम करने वाले सैकड़ों कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार कैपिटॉल पुलिस भी अपनी ड्यूटी निभाने में नाकाम रही। जब दंगाई अमेरिकी सीनेट में घुस रहे थे, खिड़कियां को तोड़ रहे थे और यहां तक कि प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी के कार्यालय में घुस गए, तब भी पुलिस ने उन्हें रोकने की कोई खास कोशिश नहीं की। बिना रोक-टोक उन्हें संसद भवन की सीढ़ियों पर खड़े होने दिया गया।
पिछले साल जब ब्लैक लाइव्स मैटर अभियान से जुड़े प्रदर्शनकारी वॉशिंगटन शहर में मार्च कर रहे थे तो उन्हें आंसू गैस और लाठीचार्ज का सामना करना पड़ा। यहां तक कि एक क्रुद्ध राष्ट्रपति ने शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों को हवालात में बंद करने को भी कहा। यह साफतौर पर दोहरे मानदंड हैं। अगर आप श्वेत हैं और ट्रंप का समर्थन करते हैं तो आप देशभक्त हैं। अगर नहीं हैं, तो आप खतरनाक दंगाई हैं और आप पर आंसू गैस छोड़ी जाएगी और आपको अंदर कर दिया जाएगा।
हम एक ऐसे राष्ट्रपति का आखिरी करतब देख रहे हैं जिसने बार-बार उन लोगों में हिंसा भड़काई है, जो उसे अपना नेता मानते हैं। अब बस इंतजार है कि जल्द से जल्द सत्ता की बागडोर ट्रंप से बिडेन को मिले।