UAPA के तहत यूपी में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां, जम्मू कश्मीर दूसरे स्थान पर

DW
रविवार, 5 दिसंबर 2021 (08:14 IST)
यूपी में साल 2015 में यूएपीए के तहत सिर्फ छह केस दर्ज किए गए थे जिनमें 23 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। 2017 में योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार बनने के बाद यूएपीए के तहत 313 केस दर्ज हुए हैं और 1397 लोगों की गिरफ्तारी हुई।
 
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुई हैं। जम्मू कश्मीर इस मामले में दूसरे स्थान पर है जबकि तीसरे स्थान पर उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर है।
 
बुधवार को राज्यसभा में दिए गए एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि साल 2020 में यूएपीए के तहत यूपी में 361 गिरफ्तारियां हुई हैं जबकि जम्मू कश्मीर में 346 और मणिपुर में 225 लोग इस कानून के तहत गिरफ्तार हुए हैं।
 
अब तक सिर्फ 3% ही दोषी पाए गए
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने बताया कि साल 2019 की तुलना में साल 2020 में इस अधिनियम के तहत हुई गिरफ्तारियों में कमी आई है। साल 2019 में यूएपीए के तहत जहां देश भर में 1948 गिरफ्तारियां हुई थीं वहीं साल 2020 में यह संख्या 1321 रही।
 
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि साल 2016 से लेकर अब तक यूएपीए के तहत कुल 7243 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं जिनमें से 212 लोग ही दोषी ठहराए गए हैं। 286 लोगों को कोई आरोप न मिलने के कारण छोड़ दिया गया जबकि 42 मामलों में कोर्ट ने कोई आरोप न मिलने के कारण छोड़ दिया।
 
बरी होने वालों की संख्या 26% बढ़ी
आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 और 2020 के बीच यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या में गिरावट आई है जबकि कानून के तहत बरी होने वालों की संख्या में 26 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2019 में इस कानून के तहत गिरफ्तार होने के बाद 92 लोगों को बरी कर दिया गया था जबकि 2020 में बरी किए गए लोगों की संख्या 116 थी।
 
कानूनी जानकारों के मुताबिक, यूएपीए के तहत जमानत पाना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि जांच एजेंसी के पास चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का समय होता है और जेल में बंद व्यक्ति के मामले की सुनवाई मुश्किल हो जाती है। यूएपीए की धारा 43-डी (5) में कहा गया है कि यदि न्यायालय को किसी अभियुक्त के खिलाफ लगे आरोप प्रथमद्रष्ट्या सही लगते हैं तो अभियुक्त को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा।
 
खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी पर सवाल
इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है और इसके तहत पुलिस ऐसे अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है जो आतंकी ग​तिविधियों में शामिल होते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं। इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को काफी शक्तियां होती है।
 
यूएपीए कानून साल 1967 में लाया गया था। अगस्त 2019 में इसमें संशोधन करके इसे और भी ज्यादा कठोर कर दिया गया। संशोधन के बाद इस कानून को इतनी ताकत मिल गई कि किसी भी व्यक्ति को जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है।
 
इस कानून के तहत हुई कई गिरफ्तारियों पर सवाल भी उठे हैं और पिछले दिनों जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी सवाल उठाए हैं। हालांकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि संयुक्‍त राष्‍ट्र के उच्‍चायुक्‍त के प्रवक्‍ता का बयान आधारहीन है।
 
पिछले चार सालों में यूपी में 1397 लोग गिरफ्तार
यूएपीए के तहत दर्ज मामलों की जांच, राज्य पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए द्वारा की जाती है। उत्तर प्रदेश इस कानून के तहत गिरफ्तारियों के मामले में इस वक्त भले ही अव्वल हो लेकिन साल 2015 में इसके तहत यहां सिर्फ छह केस दर्ज किए गए थे जिनमें 23 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी।
 
इससे अगले साल यानी साल 2016 में 10 केस दर्ज हुए और 15 लोग गिरफ्तार किए गए लेकिन अगले ही साल इसके तहत दर्ज मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती गई। साल 2017 में 109 केस दर्ज हुए और 382 लोगों को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। साल 2017 में ही यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी थी। यूपी में इन चार वर्षों के दौरान यूएपीए के तहत 313 केस दर्ज हुए हैं और 1397 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
 
उत्तर प्रदेश समेत देश भर में कई मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है जिनमें कई लोग अभी भी जेल की सलाखों के भीतर हैं। पिछले साल हाथरस मामले की रिपोर्टिंग के लिए जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को भी इसी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था जिन्हें अब तक जमानत नहीं मिल सकी है।
 
उत्तर प्रदेश के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी विक्रम सिंह कहते हैं कि यह बेहद संवेदनशील कानून है और इसका इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। वो कहते हैं, "इस कानून का किसी भी तरह का दुरुपयोग बेहद गंभीर परिणाम दे सकता है। इसके तहत किसी को भी गिरफ्तार करने के लिए एक अनिवार्य कारण होना चाहिए और इसका इस्तेमाल बहुत ही जरूरी परिस्थिति में ही किया जाना चाहिए।”
 
गिरफ्तारियों से पुलिस अधिकारी भी चिंतित
यूपी में इस कानून के तहत दर्ज मुकदमों और गिरफ्तारियों पर कई अन्य पुलिस अधिकारी भी चिंता जता चुके हैं। विपक्षी दल और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों का आरोप है कि सरकार असहमति के स्वरों को दबाने के लिए इस कानून का बेजा इस्तेमाल कर रही है।
 
यूपी में एक और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी वीएन राय कहते हैं कि ऐसे कड़े कानूनों का नियमित आधार पर इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। उनके मुताबिक, "जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ये कानून बनाए गए हैं, वैसे ही मामलों में इनका प्रयोग भी होना चाहिए। हर अपराध देशद्रोह और आतंकवाद से नहीं जुड़ा रहता। इससे जांच एजेंसियों पर भी अनावश्यक बोझ आता है और अदालतों पर भी। दूसरी बात, इससे कानून के दुरुपयोग की भी आशंका बनी रहती है। जहां तक यूपी का सवाल है तो यूएपीए के तहत पिछले साढ़े चार साल में इतने मामले दर्ज हुए लेकिन कानून व्यवस्था में तो कोई खास सुधार हुआ नहीं।
 
रिपोर्ट : समीरात्मज मिश्र

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