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बिहार के नियोजित शिक्षकों पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

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DW

, शनिवार, 29 जून 2024 (09:56 IST)
-मनीष कुमार, पटना
 
बिहार के नियोजित शिक्षकों की ओर से दायर मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि 'एक पोस्ट ग्रेजुएट को छुट्टी का आवेदन तो सही ढंग से लिखना नहीं आता, यह तो देश की शिक्षा का स्तर हो गया है।'
 
पूरे राज्य में शिक्षा के स्तर को सुधारने के मकसद से बिहार सरकार ठेके (संविदा) पर नियुक्त यानी नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए सक्षमता परीक्षा ले रही है। इस के विरोध में बिहार प्रारंभिक शिक्षक संघ तथा परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने सक्षमता परीक्षा को रद्द करने की उनकी मांग को खारिज कर दिया है।
 
मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा राष्ट्र के निर्माण में शिक्षक अहम भूमिका निभाते हैं और उन्हें अपने कौशल को बेहतर करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। कोर्ट का कहना है, 'हम देश और खासकर बिहार के बच्चों की शिक्षा के प्रति काफी गंभीर हैं। ऐसे में अगर कोई शिक्षक सरकार के नियमों के अनुसार नहीं चलना चाहते हैं तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए।'
 
इससे पहले पटना हाईकोर्ट ने भी नियोजित शिक्षकों की मांग को खारिज कर दिया था।
 
राज्यकर्मी के दर्जे के लिए 'सक्षमता परीक्षा'
 
सर्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्देश से बिहार के करीब 85 हजार शिक्षकों को करारा झटका लगा है। नियोजित शिक्षकों की ओर से कोर्ट में कहा गया कि 2012 में पंचायत शिक्षक नियमावली के तहत राज्य सरकार ने उनकी परीक्षा ली थी। ऐसे में फिर उनकी परीक्षा क्यों ली जा रही है। इन शिक्षकों को बिहार पंचायत प्रारंभिक शिक्षक सेवा नियमावली के तहत 2006 में नियुक्त किया गया था। 2006 से पहले इनमें से कई शिक्षा मित्र थे, जो बाद में नियोजित शिक्षक बन गए।
 
राज्य सरकार के प्रावधान के अनुसार इस परीक्षा को पास करने के बाद वे राज्यकर्मी बन जाएंगे और तदनुसार उन्हें पेंशन-ग्रेच्युटी, ऐच्छिक स्थानांतरण व स्वास्थ्य बीमा सहित अन्य सरकारी सुविधाएं मिलने लगेंगी। हरेक नियोजित शिक्षक को सक्षमता परीक्षा पास करने के तीन मौके मिलेंगे। हालांकि, राज्य सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि सक्षमता परीक्षा पूरी तरह वैकल्पिक है। जो शिक्षक यह परीक्षा नहीं देना चाहते, उन्हें नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। लेकिन, उन्हें राज्यकर्मी का दर्जा नहीं मिल सकेगा।
 
सुधार को सरकार लगातार कर रही नवाचार
 
विदित हो कि राज्य के करीब 75,000 से अधिक सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने के लिए बिहार सरकार लगातार नवाचार कर रही है। समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश शिक्षा विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव (एसीएस) के के पाठक ने की जिन्होंने विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर कई आधारभूत फैसले लिए। उद्देश्य यह था कि बच्चे स्कूल आकर पढ़ें और शिक्षक उन्हें स्कूल में पढ़ाएं। इस कड़ी में छुट्टियों में कटौती की गई तथा उन बच्चों और शिक्षकों की पहचान की गई जो लगातार स्कूल से गायब रह रहे थे।
 
भारत में लगातार हो रही परीक्षा धांधलियों से छात्र परेशान
 
स्कूलों के निरीक्षण के दौरान सरकारी स्कूलों में ऐसे लाखों बच्चों की पहचान की गई और उनके नाम काटे गए। इसी तरह स्कूल से नदारद रहने वाले हजारों शिक्षकों पर कार्रवाई की गई। इसका बेहतर नतीजा सामने आया, लाखों फर्जी विद्यार्थियों के नाम काटे जाने से करोड़ों के सरकारी राजस्व की बचत हुई, क्योंकि इन फर्जी विद्यार्थियों के नाम पर विभिन्न मिड-डे मील सहित अन्य सरकारी योजनाओं में घपला किया जा रहा था। पाठक के कड़े फैसलों का विरोध भी हुआ और उन्हें लेकर राजनीति भी खूब हुई।
 
आमजन से सीधे जुड़ने को टोल फ्री नंबर जारी
 
शिक्षाविद सुधीर कुमार पाण्डेय कहते हैं, 'मौजूदा वर्ष में शिक्षा विभाग का 52 हजार करोड़ से अधिक का बजट है। सरकार जब हर तरह सुविधाएं देने को तैयार है तो 7.30 घंटे की नौकरी करने में क्या हर्ज है। आप में मेरिट है तो सक्षमता परीक्षा से परहेज क्यों और अगर उस लायक भी नहीं हैं तो जिन बच्चों को आप पढ़ा रहे, उनके प्रति घोर अपराध कर रहे।'
 
पाठक की जगह अब एस। सिद्धार्थ शिक्षा विभाग की कमान संभाल रहे हैं। सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार के प्रयास जारी है। विभाग ने अभिभावकों और आमजन से सीधे जुड़ने के लिए टोल फ्री और वाट्सएप नंबर जारी किए हैं। इसका फायदा यह हुआ कि विभिन्न मुद्दों से जुड़ी शिकायतें सीधे विभाग तक पहुंचने लगी है।
 
ऑनलाइन हाजिरी से रियल टाइम मॉनिटरिंग
 
25 जून से शिक्षकों को ई-शिक्षा कोष मोबाइल एप से ऑनलाइन हाजिरी बनाने का आदेश दिया गया है। सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति भी ऑनलाइन दर्ज करने की तैयारी है। इसके तहत सभी स्कूलों को सरकार की ओर से टैब दिए जाएंगे। एक जुलाई से सरकारी स्कूल की नई समय-सारिणी जारी की गई है जिसके तहत हरेक तरह गतिविधियों के लिए समय तय कर दिया गया है। एक शिक्षक को 7.30 घंटे का अध्यापन कार्य स्कूल में करना होगा तथा छात्र-छात्राओं के बेहतर परफार्मेंस के लिए भी प्रयासरत रहना होगा।
 
पत्रकार शिवानी सिंह कहती हैं, 'दरअसल, सरकार छात्र-छात्राओं तथा शिक्षकों की रियल टाइम मॉनिटरिंग करना चाहती है और फिर करे भी क्यों नहीं? बिहार के सरकारी स्कूलों की दशा-दिशा में काफी सुधार हुआ है और सरकार सब कुछ दे रही तो उन्हें स्थानांतरण और अपने दायित्व निर्वहन से परहेज क्यों?'(फोटो सौजन्य : डॉयचे वैले)

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