पिछले कुछ सालों से पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के गायब होने की खबरें आ रही हैं। शिया कार्यकर्ता दावा कर रहे हैं कि इराक और सीरिया से लौटने के बाद उन्हें देश की खुफिया एजेंसियों ने उठाया है।
पाकिस्तानी प्रशासन का कहना है कि कई "गुमशुदा लोग" विवादग्रस्त क्षेत्रों मसलन अफगानिस्तान, इराक और सीरिया जाने के बाद कभी पाकिस्तान वापस लौट कर ही नहीं आए। वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि जो लोग वापस आए हैं उन्हें सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी हिरासत में ले लिया है। कार्यकर्ताओं के मुताबिक गुमशुदा लोगों के परिवार वालों को भी उनके बारे में नहीं पता।
साल 2010 में सीरिया में विवाद शुरू होने के बाद दुनिया भर से कई सारे लोग मध्य पूर्व की ओर गए। इनमें से कुछ आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) में शामिल हुए, वहीं कुछ ने ईरान समर्थित सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के पक्ष में हथियार उठाए।
पाकिस्तान में सक्रिय शिया संस्थाओं का कहना है कि पाकिस्तान, सीरिया के साथ इन संबंधों का बहाना देकर शिया मुसलमानों पर निशाना साध रहा है। पाकिस्तान की तकरीबन 20 करोड़ की आबादी में लगभग 10 फीसदी हिस्सा शिया मुसलमानों का है।
डीडब्ल्यू से बातचीत में शिया कार्यकर्ता राशिद रिजवी ने कहा, "अधिकतर गुमशुदा शिया मुसलमानों की कोई उग्रवादी पृष्ठभूमि नहीं है। हम इस संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं कि कुछ लोग शासन के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए सीरिया गए थे। लेकिन वहीं 150-160 गुमशुदा लोग अपने पवित्र स्थलों की यात्रा करने भी ईरान, इराक और सीरिया गए थे।"। उन्होंने कहा कि अगर किसी ने अपराध किया भी है तो उसे कानूनी प्रक्रियाओं के लिए अदालत के समक्ष पेश करना चाहिए।
पाकिस्तान, एक सुन्नी बहुल देश है जो सऊदी अरब का करीबी है। सऊदी अरब और ईरान, मध्य पूर्व में कई विवादों में उलझे हुए हैं। वहीं पाकिस्तान के शिया मुसलमान सऊदी-पाकिस्तान रिश्ते का विरोध करते हैं। हालांकि इस्लामाबाद कहता रहा है कि उसके ईरान और सऊदी अरब दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं।
तकलीफ और इंतजार
60 साल की सबीहा जाफर पाकिस्तान के दक्षिणी शहर कराची में रहती हैं। डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि तकरीबन एक साल से वह चैन की नींद नहीं सोती हैं। सबीहा बताती हैं कि पिछले एक साल से वह अपने 32 साल के बेटे सैयद अली मेहदी के घर लौटने का इंतजार कर रही हैं। पेशे से टैक्सी ड्राइवर मेहदी साल 2010 में दुबई गया था और फिर सितंबर 2017 तक पाकिस्तान लौट आया। परिवार के मुताबिक मार्च 2018 में नकाबपोश सुरक्षा अधिकारियों ने उसका रास्ता रोका और उसे उठा कर ले गए। उस वक्त परिवार वालों से कहा गया कि पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया जाएगा।
मेहदी की मां ने बताया कि उनके परिवार ने कई सारे सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया। साथ ही गुमशुदा लोगों से जुड़ी कोर्ट की सुनवाई भी सुनी ताकि उन्हें मेहदी के बारे में कुछ पता चल सके।
सबीहा के बेटे की तरह ही कराची के सैयद मुमताज भी लापता हैं। उनकी पत्नी पिछले लंबे वक्त से अपने 57 साल के पति के लौटने का इंतजार कर रही हैं। मुमताज पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा के निकट क्वेटा गए थे। परिवारवालों ने बताया कि साल 2018 में जब वह कारोबारी यात्रा से वापस आ रहे थे तभी वह गायब हो गए।
उनकी पत्नी ने डीडब्ल्यू से कहा, "हम पूरे दिन उन्हें ढूंढते रहे। आखिर में हमने एक टैक्सी ड्राइवर को पकड़ लिया जिसने हमें बताया कि मेरे पति को सुरक्षा अधिकारियों ने पकड़ लिया।" उसके बाद से ही परिवार ने उनका पता लगाने के लिए क्या कुछ नहीं किया लेकिन सब बेनतीजा रहा।
सुरक्षा के मसले
अधिकार समूह पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों पर लोगों को गायब करने का आरोप लगा रहे हैं। वहीं सेना के रिटायर जनरल और रक्षा विश्लेषक अमजद शोएब ऐसे मामलों में सेना के दखल से पूरी तरह इनकार करते हैं।
डीडब्ल्यू से बातचीत में शोएब ने कहा, "इराक और सीरिया में अब भी ईरान से समर्थन प्राप्त मिलिशया अपने ऑपरेशन चला रहे हैं। ऐसे में संभव है कि ये लापता लोग अब भी मध्य पूर्वी देशों में ही हों।" उन्होंने कहा कि शिया समुदाय ने कभी भी पाकिस्तान के खिलाफ हथियार नहीं उठाए तो रक्षा एजेंसियां उन्हें क्यों निशाना बनाएगी। शोएब के मुताबिक, "रक्षा एजेंसियों पर लगाए जा रहे सभी आरोप बेबुनियाद हैं।"
रक्षा विश्लेषक अहसान रजा ने कहा कि लोग पाकिस्तान में गायब होते रहे हैं लेकिन उनके पीछे कौन होता है इस पर सबकी अलग राय है। रजा ने डीडब्ल्यू से कहा, "कुछ शिया युवा ये मानते हैं कि इस्लाम में शामिल पवित्र स्थलों की रक्षा करना उनका धार्मिक कर्तव्य है। इस सोच के साथ वे इस तथ्य को नकार देते हैं कि वे पाकिस्तान से है और उन्हें अन्य देशों के आंतरिक मसलों में दखल देना उनका काम नहीं है।" उन्होंने कहा, "सरकार को इस समस्या से निपटने के लिए शिया संगठनों और मौलवियों को अपने साथ जोड़ना चाहिए।"
रजा ने बताया कि बीते सालों में कई पाकिस्तानी जिहाद छेड़ने अफगानिस्तान गए और फिर पाकिस्तान वापस लौट आए। इनमें से कई तालिबान, अल कायदा और इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठनों से नजदीकियों के चलते सुरक्षा के लिए खतरा बन गए। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि पाकिस्तान सरकार को डर है कि जो लोग सीरिया और इराक से वापस आए हैं वे सुरक्षा के लिए कोई खतरा हो सकते हैं। इसलिए उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में लिया जा रहा है या संभव है कि उन्हें कट्टरपंथी रास्ते से हटाने के लिए कार्यक्रम चला रही है।"