बंगाल में राजनीतिक हथियार बनता एनआरसी

Webdunia
शनिवार, 28 सितम्बर 2019 (11:34 IST)
पूर्वोत्तर राज्य असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) पर लंबे अरसे से जारी विवाद अब तक थमा भी नहीं है कि पड़ोसी पश्चिम बंगाल में यह यानी एनआरसी एक मजबूत राजनीतिक हथियार के तौर पर उभर रहा है।
 
 
बीते दो सप्ताह के दौरान एनआरसी के आतंक की वजह से राज्य के विभिन्न हिस्सों में कम से कम एक दर्जन लोगों ने आत्महत्या कर ली है। मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी इस परिस्थिति के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराते हुए बार-बार कह चुकी हैं कि उनकी सरकार बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने देगी। बावजूद इसके लोगों को उनकी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा है। यही वजह है कि जमीन, मकान और जन्म व मृत्यु प्रमाणपत्र जैसे जरूरी दस्तावेजों के लिए सरकारी दफ्तरों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगने लगी हैं। खासकर बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती इलाकों में तो हालात बेहद गंभीर है।
 
 
पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से शरणार्थियों के आने का सिलसिला देश की आजादी जितना ही पुराना है। वहां से लाखों की तादाद में आने वाले लोगों को राज्य सरकारों ने सीमावर्ती इलाकों में बसाया है और तमाम राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर करते रहे हैं। एनआरसी के मुद्दे पर राज्य में टीएमसी और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार तेज हो रहा है। आलम यह है कि राज्य सरकार को रेडियो, टीवी और अखबारों पर विज्ञापन जारी कर अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील करनी पड़ रही है।
 
 
मौत का सिलसिला तेज
जलपाईगुड़ी जिले के सरदारपाड़ा इलाके में रहने वाले साबिर अली (32) ने इस सप्ताह घर के सामने बने कुएं में कूद कर जान दे दी। अली के चाचा लियाकत अली बताते हैं, "अली के जन्म प्रमाणपत्र और आधार कार्ड में कई गलतियां थीं। इसके अलावा घर के दस्तावेज भी नहीं मिल रहे थे। इससे वह अवसादग्रस्त था। आखिर में एनआरसी के डर से उसने आत्महत्या कर ली।” इसी जिले में एक अन्य घटना में आनंद राय नाम के व्यक्ति ने गले में फांसी का फंदा डाल कर आत्महत्या कर ली। उसके घरवालों का दावा है कि आधार कार्ड और वोटर कार्ड लिंक नहीं होने और उनमें गलतियां होने की वजह से वह परेशान था। कई दिन सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बावजूद जब काम नहीं हुआ तो उसने आत्महत्या कर ली।
 
 
दरअसल, बीते महीने के आखिर में असम में जारी एनआरसी की अंतिम सूची से 19 लाख से ज्यादा लोगों के नाम बाहर रहने के बाद से ही बंगाल के खासकर अल्पसंख्यक तबके के लोगों में भारी आतंक है। बीते दो-तीन सप्ताह से कई मुस्लिम संगठनों ने अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में सेमिनारों का आयोजन कर और पर्चे बंटवा कर लोगों से अपना नागरिकता संबंधी दस्तावेज दुरुस्त करने की अपील की है। उसके साथ ही बीजेपी के तमाम नेता भी बार-बार बंगाल में एनारसी लागू होने की बात दोहराते रहे हैं। इससे आम लोगों में अफरा-तफरी मची है।
 
 
लोग जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र हासिल करने और कागजात में हुई गड़बड़ियों को दुरुस्त करने के लिए सुबह-सबेरे सरकारी दफ्तरों में पहुंच रहे हैं। कोलकाता नगर निगम के डिप्टी मेयर अतीन घोष बताते हैं, एनआरसी पर आतंक की वजह से रोजाना ढाई सौ से ज्यादा लोग यहां पहुंच रहे हैं। हमारे पास महज सौ लोगों को सेवाएं मुहैया कराने की ही क्षमता है। बंगाल में एनआरसी की बात महज एक अफवाह है, लेकिन किसी को इस पर भरोसा नहीं हो रहा है।
 
 
कोलकाता के अलावा असम और बांग्लादेश की सीमा से लगे दूसरे इलाकों में भी यही स्थिति है। दक्षिण 24-परगना जिले से नगर निगम आईं शबीना खातून कहती हैं, "हम सुबह छह बजे से ही कतार में हैं। कल भी आए थे, लेकिन घंटों खड़े होने के बावजूद हमारा नंबर नहीं आया।” वर्ष 2012 में उनके भाई का जन्म हुआ था। तब घरवालों ने जन्म प्रमाणपत्र नहीं लिया था। अब एनआरसी की अफवाह से वह लोग कागजात दुरुस्त करने में जुटे हैं।

 
टीएमसी और बीजेपी में ठनी
अब एनआरसी पर फैले आतंक के लिए टीएमसी और बीजेपी एक-दूसरे को दोषी ठहराने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, "मेरी सरकार किसी भी हालत में बंगाल में एनआरसी लागू नहीं करने देगी। अगर बीजेपी एनआरसी को लेकर इतनी उतावली है तो वह बीजेपी शासित त्रिपुरा में यह कवायद क्यों नहीं करती? वहां लागू होने की स्थिति में मुख्यमंत्री बिप्लब भी सूची से बाहर हो जाएंगे।” टीएमसी अध्यक्ष कहती हैं कि असम में असम समझौते के प्रावधानों की वजह से ही एनआरसी लागू किया गया। बंगाल या देश के दूसरे हिस्सों में एनआरसी लागू करने की कोई वजह नहीं हैं। ममता ने कोलकाता में एनआरसी के खिलाफ आयोजित एक रैली का भी नेतृत्व किया था।
 
दूसरी ओर, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "बंगाल में पहले नागरिकता (संशोधन) विधेयक लागू किया जाएगा और उसके बाद ही एनआरसी की कवायद शुरू होगी। उक्त विधेयक के जरिए तमाम हिंदुओं का भारतीय नागरिकता दी जाएगी। यहां से एक भी हिंदू को बाहर नहीं निकाला जाएगा।” बीजेपी के महासचिव और प्रदेश बीजेपी के केंद्रीय प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय तृणमूल कांग्रेस पर एनआरसी के नाम पर लोगों को भ्रमित करने और आतंकित करने का आरोप लगाते हैं।
 
 
इसबीच, बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा है कि लोगों में फैले आतंक को दूर कर नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर आम राय बनाने के लिए संगठन के कार्यकर्ता घर-घर जाकर अभियान चलाएंगे। संघ के प्रवक्ता जिष्णु बसु कहते हैं, "एनआरसी और नागरिकता (संशोधन) विधेयक को लेकर हम जल्द ही घर-घर जाकर जागरुकता अभियान शुरू करेंगे। हम आम जनता को बताएंगे कि अवैध बांग्लादेशी मुसलमान घुसपैठियों को निकालने के लिये एनआरसी जरूरी है।”
 
 
पुरानी है घुसपैठ की समस्या
पश्चिम बंगाल में घुसपैठ की समस्या असम से भी ज्यादा पुरानी और गंभीर है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के लोगों की बोली, रहन-सहन और रीति-रिवाजों में समानता की वजह से सीमा पार से आने वाले लोगों की पहचान मुश्किल है। वर्ष 1947 के विभाजन के चलते सीमा पार से शरणार्थियों के आने का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह आज भी जस का तस है। इससे राज्य की आबादी का ग्राफ, सामाजिक तानाबाना और आर्थिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया।
 
 
वर्ष 1947 से 1971 के बीच बंगाल में सीमा पार से आने वाले सत्तर लाख शरणार्थियों ने राज्य की आबादी का ग्राफ तो बदला ही, भावी राजनीति की दशा-दिशा भी तय कर दी। 1971 के बाद भी शरणार्थियों के आने का सिलसिला जस का तस है। तमाम राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल अपने वोट बैंक की तरह करते रहे हैं। बड़े पैमाने पर होने वाली इस घुसपैठ ने इस राज्य की अर्थव्यवस्था और राजनीति के ढांचे व स्वरूप को इस कदर बिगाड़ दिया कि यह अब तक सही रास्ते पर नहीं लौट सकी है। फिलहाल राज्य की आबादी में लगभग 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है।
 
 
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए टीएमसी और बीजेपी ने एनआरसी को यहां अपना राजनीतिक हथियार बना लिया है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मोइदुल इस्लाम कहते हैं, "एनआरसी पर तेज होती इस सियासत की कीमत आम लोगों को अपनी जान देकर चुका पड़ रही है। आने वाले दिनों में इस विवाद के और तेज होने के आसार हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी एक अक्तूबर को यहां एनआरसी पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करेंगे।”
 
रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता
 

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