बुंदेलखंड का जिक्र आते ही आंखों के सामने सूखा, पलायन, भुखमरी, खाली पड़ी बस्तियों की तस्वीर उभर आती है, मगर मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के नादिया गांव के लोगों ने बारिश के पानी को क्या सहेजा, उनकी जिंदगी ही खुशहाल हो गई।
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर बसा है नादिया गांव। इस गांव में पहुंचकर सूखे का अहसास ही नहीं होता है। नादिया के खेत फसलों से लहलहा रहे हैं तो कुओं में पर्याप्त पानी है। यही कारण है कि इस गांव से गिनती के परिवारों ने ही काम की तलाश में पलायन किया है। यहां लोग मकान में काम कराते मिल जाते हैं तो खेतों में सिंचाई का दौर चल रहा होता है। इतना ही नहीं गांव के भीतर के अधिकांश हैंडपंप अभी भी पानी उगल रहे हैं। इसके चलते यहां के लोगों की जिंदगी आम दिनों जैसी चल रही है।
गांव के उप सरपंच रूप सिंह यादव ने आईएएनएस को बताया, "पिछले सालों में इस गांव का हाल भी अन्य गांवों जैसा ही था, गर्मी में पानी का संकट गहराने लगता था। इस बार ऐसा नहीं है, क्योंकि गांव के लोगों में पानी के संरक्षण और संवर्धन के प्रति जागृति आई है। इसी का नतीजा है कि बारिश के पानी को बर्बाद नहीं होने दिया गया। कहीं कुएं रीचार्ज किए गए, तो कहीं हैंडपंपों को रीचार्ज किया गया।"
यादव ने आगे बताया, "परमार्थ समाजसेवी संस्थान द्वारा चलाए गए जन जागृति अभियान के सार्थक नतीजे सामने आए हैं। गांव के लोगों ने संस्थान के सहयोग से सूखे पिट बनाए, कुओं और हैंडपंपों को रीचार्ज किया गया है। इसी के चलते अब भी कुओं में पानी है और हैंडपंप चल रहे हैं। गांव के लोग पानी के संकट से अभी तक दूर हैं।"
सामाजिक कार्यकर्ता रमाकांत राणा ने बताया, "गांव के कुआं और हैंडपंप पुर्नभरण (रीचार्ज) को वास्तविक तौर पर जान सकें, इसके लिए पानी पंचायत बनाई। उसके बाद कुएं के करीब एक स्थान पर कूप रीचार्ज स्ट्रक्चर का निर्माण किया। उसे देखकर गांव वालों को लगा कि यह तकनीक कारगर है। लिहाजा अब तक गांव में 25 से अधिक स्थानों पर कूप रीचार्ज स्ट्रक्चर बनाए जा चुके हैं। पानी की उपलब्धता के चलते गिनती के परिवार ही यहां से काम की तलाश में बाहर गए हैं।"
लगभग 1500 की आबादी वाले इस गांव में लोगों ने अपने प्रयास से कई तलैयों (छोटे तालाब) का निर्माण कराया है। इस गांव में 100 से ज्यादा कुएं हैं। इसके अलावा 18 हैंडपंपों में से 16 चालू हालत में हैं। यही कारण है कि गांव के लोगों को पानी के लिए परेशान नहीं होना पड़ रहा है।
किसान नाथूराम कुशवाहा बताते हैं कि उन्हें अपनी खेती में पानी की कोई दिक्कत नहीं आ रही है। पैदावार भी अच्छी है। बुंदेलखंड के दूसरे हिस्सों में चाहे जो हाल हो, उनके गांव के हाल ठीक हैं। कुओं, तालाबों, हैंडपंप में पानी है। फरवरी के माह में तो किसी तरह की दिक्कत नहीं है।
सूखे बुंदेलखंड में नजीर बन गया है नादिया गांव। इस गांव को किसी सरकारी मदद या नेता के सहयोग से नहीं पानीदार बनाया गया, बल्कि गांव के लोगों में आई जागृति और बारिश के पानी को सहेजने की तकनीक के सहारे यह संभव हो सका है। कहते हैं कि अगर समाज जाग जाए तो हर समस्या का निदान संभव है।