धरती को बचाना है तो मांसाहार छोड़िए

Webdunia
मंगलवार, 24 जुलाई 2018 (12:45 IST)
पर्यावरणविदों का कहना है कि मांसाहार दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग की एक बड़ी वजह बन रहा है। तो क्या मांस खाना छोड़ कर धरती की सेहत सुधारी जा सकती है?
 
 
मांसाहार की कीमत
दुनिया भर में व्यावसायिक तौर पर मवेशी और दूसरे जीवों को पाला जाता है, ताकि मांस, ऊन, दूध और दूध से बने उत्पादों की मांग पूरा की जा सके। लेकिन इसकी कीमत हमारे पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है।
 
 
मवेशी जिम्मेदार
विशेषज्ञ कहते हैं कि दुनिया में 14 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए मवेशी जिम्मेदार हैं, जो खास तौर से उनकी जुगाली, उनके मल और उन्हें खाने के लिए दी जाने वाली चीजों के उत्पादन से होता है।
 
 
ग्रीन हाउस उत्सर्जन
कृषि क्षेत्र से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों के दो तिहाई उत्सर्जन की वजह जानवरों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन है। यह उत्पादन कृषि योग्य तीन चौथाई जमीन इस्तेमाल करता है।
 
 
प्रोटीन की आपूर्ति
पोषण के लिहाज से देखें तो जानवरों से मिलने वाले मांस, अंडा और दूध जैसे खाद्य उत्पाद वैश्विक प्रोटीन की आपूर्ति में सिर्फ 37 प्रतिशत का योगदान देते हैं।
 
 
मवेशियों का देश
अगर मवेशियों का एक देश बना दिया जाए तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वे चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होंगे।
 
 
तेल कंपनियों को पछाड़ा
मवेशियों से जुड़ा उद्योग सबसे बड़ी तेल कंपनियों से भी ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहा है। 20 बड़ी मीट और डेयरी कंपनियों का उत्सर्जन जर्मनी या ब्रिटेन जैसे देशों भी ज्यादा है।
 
 
खतरनाक डकार
मवेशी मीथेन, नाइट्रोस ऑक्साइड और कार्बन डायऑक्साइड छोड़ते हैं। कार्बन डाय ऑक्साइड से कहीं ज्यादा गर्म मानी जाने वाली मीथेन आम तौर पर डकार के जरिए छोड़ी जाती है।
 
नई प्रजातियां
वैज्ञानिक ब्रीडिंग से मवेशियों की ऐसी प्रजातियां तैयार करने में जुटे हैं जो कम डकार लें और उनसे कम उत्सर्जन हो। इसके लिए जानवरों के खाने के साथ भी प्रयोग किए जा रहे हैं।
 
 
शाकाहार का फायदा
अगर दुनिया में सबसे ज्यादा मीट खाने वाले दो अरब लोग शाकाहार खाने की तरफ रुख कर लें तो इससे भारत से दोगुने आकार वाले इलाके को बचाया जा सकता है।
 
 
धरती का उपयोग
इस इलाके का इस्तेमाल खेती के लिए हो सकता है ताकि दुनिया की तेजी से बढ़ती जनसंख्या का पेट भरा जा सके। अभी इससे मवेशियों का पेट भरा जाता है, जो बाद में इंसानों की प्लेटों में आते हैं।
 
 
महंगा पड़ता बीफ
एक किलो बीफ को पैदा करने के लिए आम तौर पर 25 किलो अनाज और 15 हजार लीटर पानी लगता है। सोचिए धरती अरबों लोगों के मांसाहार की कितनी बड़ी कीमत चुका रही है।
 
 
बीन्स बनाम बीफ
बीन्स के मुकाबले बीफ से एक ग्राम प्रोटीन हासिल करने के लिए 20 गुना ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ती है। इसमें ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी 20 गुना ज्यादा है।
 
 
बीन्स बनाम चिकन
वहीं बीन्स के मुकाबले चिकन से एक ग्राम प्रोटीन हासिल करने के लिए तीन गुना ज्यादा जमीन के साथ साथ तीन गुना ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है।
 
 
बीफ नहीं, मशरूम
अमेरिकी लोग हर साल 10 अरब बर्गर खाते हैं। अगर उनके बर्गर में बीफ की जगह मशरूम डाल दिया जाए तो इससे वैसा ही असर होगा जैसे 23 करोड़ कारें सड़कों से हटा दी जाएं।
 
 
अगर सब शाकाहारी हों...
अगर 2050 तक हर कोई शाकाहारी बन जाए, तो खाने की चीजों से होने वाले उत्सर्जन में 60 फीसदी की कमी आएगी। अगर सभी लोग वेगन हो जाए तो कमी 70 फीसदी तक हो सकती है। (रिपोर्ट: रॉयटर्स)
 

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