पूर्वोत्तर का सबसे शांत कहा जाने वाला मिजोरम इस समय शरणार्थियों के बोझ से दबा है। मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद वहां से भाग कर आने वाले 8,000 से ज्यादा कुकी और नागा शरणार्थियों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
पड़ोसी म्यांमार और बांग्लादेश के हजारों शरणार्थी पहले से ही राज्य के विभिन्न राहत शिविरों में रह रहे हैं। शरणार्थियों के लगातार गहराते संकट से निपटने के लिए मिजोरम सरकार ने गृह मंत्री ललचामलियाना के नेतृत्व में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया है। इससे पहले सरकार ने मणिपुर से आने वाले शरणार्थियों के लिए केंद्र से पांच करोड़ रुपए की फौरी राहत मांगी थी।
मिजोरम की 95 किलोमीटर लंबी सीमा मणिपुर से सटी है। यहां मणिपुर से आए तीन शरणार्थियों की मौत हो चुकी है, जिनमें एक बच्चा भी शामिल है। मणिपुर के कुकी और नागा शरणार्थियों ने मिजोरम के अलावा नागालैंड और असम में भी शरण ली है। असम में रह रहे ज्यादातर विस्थापित मैतेयी समुदाय के हैं, जबकि बाकी दोनों राज्यों में कुकी और नागा समुदाय के।
पड़ोसी राज्यों की सरकारों ने हिंसा और आगजनी की घटनाओं के बाद मानवता के आधार पर इनको शरण दी है। लेकिन पहले से ही म्यांमार और बांग्लादेश के शरणार्थियों का बोझ उठा रहे मिजोरम में मणिपुर से आने वाले लोगों ने शरणार्थी संकट को गंभीर बना दिया है।
म्यांमार के शरणार्थी
म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट हुआ था। इसके बाद मिजोरम में सीमा पार से आने वाले शरणार्थियों की लगातार बढ़ती तादाद ने इलाके में चिंता बढ़ा दी है। अनुमान है कि राज्य के विभिन्न जिलों के शरणार्थी शिविरों में 40 हजार से ज्यादा ऐसे लोग रह रहे हैं। शरणार्थियों की बढ़ती संख्या ने केंद्र और राज्य सरकार के रिश्तों में भी तनाव पैदा कर दिया है। राज्य सरकार ने केंद्र से इन शरणार्थियों के रहने-खाने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराने की मांग की है। लेकिन इस मद में केंद्र ने अब तक एक पैसा भी मुहैया नहीं कराया है।
म्यांमार के चिन राज्य के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है। राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के ज्यादातर नागरिक चिन इलाके से हैं। मिजोरम के मिजो समुदाय और चिन समुदाय की संस्कृति लगभग समान है। मुख्यमंत्री जोरमथांगा की दलील है, "मिजोरम की सीमा से लगने वाले म्यांमार में चिन समुदाय के लोग रहते हैं, जो जातीय रूप से हमारे मिजो भाई हैं। भारत के आजाद होने से पहले से उनसे हमारा संपर्क रहा है। इसलिए मिजोरम उस समय मानवीय आधार पर उनकी समस्याओं से निगाहें नहीं फेर सकता।”
दोनों देशों के बीच फ्री मूवमेंट रीजिम (एफएमआर) व्यवस्था है। इसके तहत स्थानीय लोगों को एक-दूसरे की सीमा में 16 किलोमीटर तक जाने और 14 दिनों तक रहने की अनुमति मिली हुई है। इस वजह से दोनों तरफ के लोग कामकाज, व्यापार और रिश्तेदारों से मिलने के लिए सीमा पार आवाजाही करते रहते हैं। सीमा के आर-पार शादियां भी होती हैं। मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण इस व्यवस्था को रोक दिया गया था।
केंद्र या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन ने म्यांमार से आने वाले लोगों को शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया है। इसी वजह से जिला प्रशासन आधिकारिक तौर पर उनको सहायता मुहैया नहीं करा सकता। फिलहाल यंग मिजो एसोसिएशन समेत कई गैर-सरकारी संगठन इन शरणार्थियों के रहने-खाने का इंतजाम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री जोरमथांगा कहते हैं, "हम इस मानवीय संकट के प्रति उदासीनता नहीं बरत सकते। केंद्र को कम-से-कम मणिपुरी शरणार्थियों के रहने-खाने के मामले में आर्थिक मदद करनी चाहिए।”
म्यांमार के शरणार्थी
म्यांमार में फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट हुआ था। इसके बाद मिजोरम में सीमा पार से आने वाले शरणार्थियों की लगातार बढ़ती तादाद ने इलाके में चिंता बढ़ा दी है। अनुमान है कि राज्य के विभिन्न जिलों के शरणार्थी शिविरों में 40 हजार से ज्यादा ऐसे लोग रह रहे हैं। शरणार्थियों की बढ़ती संख्या ने केंद्र और राज्य सरकार के रिश्तों में भी तनाव पैदा कर दिया है। राज्य सरकार ने केंद्र से इन शरणार्थियों के रहने-खाने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराने की मांग की है। लेकिन इस मद में केंद्र ने अब तक एक पैसा भी मुहैया नहीं कराया है।
म्यांमार के चिन राज्य के साथ मिजोरम की 510 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है। राज्य में शरण लेने वाले म्यांमार के ज्यादातर नागरिक चिन इलाके से हैं। मिजोरम के मिजो समुदाय और चिन समुदाय की संस्कृति लगभग समान है। मुख्यमंत्री जोरमथांगा की दलील है, "मिजोरम की सीमा से लगने वाले म्यांमार में चिन समुदाय के लोग रहते हैं, जो जातीय रूप से हमारे मिजो भाई हैं। भारत के आजाद होने से पहले से उनसे हमारा संपर्क रहा है। इसलिए मिजोरम उस समय मानवीय आधार पर उनकी समस्याओं से निगाहें नहीं फेर सकता।”
दोनों देशों के बीच फ्री मूवमेंट रीजिम (एफएमआर) व्यवस्था है। इसके तहत स्थानीय लोगों को एक-दूसरे की सीमा में 16 किलोमीटर तक जाने और 14 दिनों तक रहने की अनुमति मिली हुई है। इस वजह से दोनों तरफ के लोग कामकाज, व्यापार और रिश्तेदारों से मिलने के लिए सीमा पार आवाजाही करते रहते हैं। सीमा के आर-पार शादियां भी होती हैं। मार्च 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण इस व्यवस्था को रोक दिया गया था।
केंद्र या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन ने म्यांमार से आने वाले लोगों को शरणार्थी का दर्जा नहीं दिया है। इसी वजह से जिला प्रशासन आधिकारिक तौर पर उनको सहायता मुहैया नहीं करा सकता। फिलहाल यंग मिजो एसोसिएशन समेत कई गैर-सरकारी संगठन इन शरणार्थियों के रहने-खाने का इंतजाम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री जोरमथांगा कहते हैं, "हम इस मानवीय संकट के प्रति उदासीनता नहीं बरत सकते। केंद्र को कम-से-कम मणिपुरी शरणार्थियों के रहने-खाने के मामले में आर्थिक मदद करनी चाहिए।”
मणिपुरी विस्थापित
मणिपुर में मई 2023 में जातीय हिंसा की शुरुआत के बाद भारी तादाद में लोगों का पलायन शुरू हो गया था। इनमें बड़ी संख्या कुकी और नागा समुदाय की है। मिजोरम से लगे सीमावर्ती इलाकों में दोनों राज्यों में इसी जनजाति के लोग रहते हैं। इसी वजह से इन लोगों ने भागकर मिजोरम में शरण ली है।
राज्य में बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा और आगजनी शुरू होते ही नागालैंड और मिजोरम जैसे पड़ोसी राज्यों ने विशेष टीमें गठित की थीं, ताकि राज्य में फंसे लोगों को सुरक्षित निकाला जा सके। सेना और असम राइफल्स की सहायता से मणिपुर में रहने वाले लोगों को सुरक्षित निकाल कर राहत शिविरों में शरण दी गई।