वायरस की वजह से होने वाले कुछ तरह के कैंसर के लिए पहले से ही वैक्सीन मौजूद हैं। हालांकि, कैंसर के इलाज की खोज जारी है। वैज्ञानिक अब एमआरएनए कैंसर वैक्सीन का परीक्षण कर रहे हैं।
कोरोनावायरस से पहले ज्यादातर लोगों ने एमआरएनए वैक्सीन के बारे में नहीं सुना था। फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना एमआरएनए वैक्सीन पहली बार कोविड-19 से बचाव के लिए इंसानों के शरीर में इस्तेमाल की गई। हालांकि, यह टेक्नोलॉजी कई सालों से विकसित हो रही थी। जिन बीमारियों के लिए इसका परीक्षण किया जा रहा था, उनमें से एक कैंसर भी था।
जून महीने के मध्य में, बायोनटेक ने घोषणा की कि उसके बीएनटी111 कैंसर वैक्सीन के चरण 2 में पहले रोगियों का इलाज किया गया। इस वैक्सीन में फाइजर-बायोनटेक कोरोनावायरस वैक्सीन की तरह ही एमआरएनए तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
कनाडा स्थित ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर अन्ना ब्लैकनी कहती हैं किसार्स-कोविड-2 के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एमआरएनए वैक्सीन की तरह ही एमआरएनए कैंसर वैक्सीन, कैंसर की कोशिकाओं पर मौजूद प्रोटीन की पहचान करती है। साथ ही, आपके इम्यून सिस्टम को उसका मुकाबला करने के लिए तैयार करती है।
इम्यून सिस्टम को विकसित करने का तरीका
एमआरएनए कैंसर वैक्सीन का लक्ष्य इम्यून सिस्टम को उस प्रोटीन और कैंसर की कोशिकाओं पर हमला करने का निर्देश देना है। टेक्सस स्थित ह्यूस्टन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल के डेबेकी हार्ट एंड वैस्कुलर सेंटर में आरएनए थेरप्यूटिक्स प्रोग्राम के चिकित्सा निदेशक जॉन कुक कहते हैं कियह मूल रूप से कैंसर को पहचानने के लिए इम्यून सिस्टम को विकसित करने का तरीका है।
कैंसर दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2020 में इसकी वजह से करीब एक करोड़ लोगों की मौत हुई। कैंसर के बढ़ने और किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनने की एक वजह यह है कि यह इम्यून सिस्टम से बच जाता है। कुक कहते हैं किवे हमारे इम्यून सिस्टम की पकड़ से बच निकलते हैं।
अक्सर माना जाता है कि वैक्सीन लगने के बाद बीमारी नहीं होती है। इन्हें किसी बीमारी के सुरक्षात्मक उपाय के तौर पर जाना जाता है। हालांकि, बायोनटेक के परीक्षणों और अन्य वैक्सीन प्रोग्राम में शामिल लोगों में पहले से ही मेलनोमा होता है।
कुक ने डॉयचे वेले को बताया किमेलनोमा जैसे कैंसर के मामलों में, अधिकांश रोगियों में कैंसर की वजह से होने वाले सामान्य परिवर्तन का पता लगाना संभव है। बायोनटेक ने यही तरीका अपनाया है। इसने कैंसर से जुड़े चार खास एंटीजन की पहचान की है। मेलनोमा के 90 प्रतिशत से ज्यादा रोगियों में इनमें से कम से कम एक एंटीजन होता है। हालांकि, सभी तरह के कैंसर के लिए एक वैक्सीन बनाना काफी मुश्किल है।
हर व्यक्ति के हिसाब से वैक्सीन
हावर्ड के डेना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट में फिजिशियन साइंटिस्ट डेविड ब्राउन कहते हैं किकैंसर में जो अलग बात है वह यह है कि हर एक रोगी में अलग-अलग तरह के बदलाव होते हैं। ऐसे बदलाव काफी कम हैं जो सभी रोगियों में एक समान होते हैं।
इसका मतलब है कि हर व्यक्ति के हिसाब से वैक्सीन बनाने की जरूरत है। ब्राउन गुर्दे के कैंसर से पीड़ित रोगियों के लिए पेप्टाइड वैक्सीन बनाने के लिए काम कर रहे हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि हर रोग के इम्यून सिस्टम पर अलग-अलग तरीके से हमला होता है, भले ही उन सभी को एक ही तरह का कैंसर हो।
ब्राउन ने डॉयचे वेले को बताया कि हम एक-एक व्यक्ति वाले दृष्टिकोण से ऊपर उठकर काम करने की कोशिश कर रहे हैं। हम ऐसी इम्यून थेरेपी विकसित करना चाहते हैं जो सभी के लिए काम आए। हम वाकई में सभी रोगियों के लिए काम आने वाला वैक्सीन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यही तरीका एमआरएनए वैक्सीन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसके लिए रोगी के ट्यूमर के डीएनए और आरएनए को अनुक्रमित करने और यह पता लगाने की ज़रूरत होती है कि ऐसा क्या है जो इसे खास बनाता है। ह्यूस्टन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल के कुक कहते हैं किफिर आप उसकी तुलना सामान्य कोशिकाओं से करते हैं और आप उस खास कैंसर में अंतर ढूंढते हैं।
आदर्श स्थिति यह है कि प्रोटीन केवल कैंसर कोशिकाएं बनाते हैं, लेकिन शरीर के अन्य हिस्से, जैसे कि स्वस्थ कोशिकाएं भी उसी तरह का प्रोटीन बना सकती हैं। इसका मतलब, यह संभव है कि अगर इम्यून सिस्टम स्वस्थ कोशिकाओं को बाहरी मानता है, तो उस पर वह हमला कर सकता है। इससे इससे ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया हो सकती है।
क्या वैक्सीन बचाव कर सकती है?
कैंसर के प्रकार के आधार पर, कुछ प्रकार के कैंसर के संभावित रोगियों के लिए सुरक्षात्मक वैक्सीन बनाया जा सकता है। ह्यूस्टन मेथोडिस्ट हॉस्पिटल में, कैंसर बायोलॉजिस्ट का एक समूह उन लोगों के लिए कैंसर का सुरक्षात्मक वैक्सीन बना रहा है जिन्हें कैंसर होने का खतरा ज्यादा है। उदाहरण के लिए, बीआरसीए 2 म्यूटेशन वाले लोगों में स्तन कैंसर विकसित होने का ज्यादा खतरा होता है।
कुक का कहना है कि सुरक्षात्मक वैक्सीन का वर्तमान में जानवरों पर प्रोटीन के तौर पर परीक्षण किया जा रहा है। अगला कदम, उन्हें आरएनए के तौर पर विकसित करना है।
एमआरएनए ही क्यों?
यह सिर्फ कोविड एमआरएनए वैक्सीन की सफलता नहीं है। अब वैज्ञानिक अन्य बीमारियों के लिए भी एमआरएनए वैक्सीन बनाने में दिलचस्पी ले रहे हैं। कुक ने डॉयचे वेले को बताया किआरएनए बनाना काफी आसान है। कई सारे वैक्सीन प्रोटीन पर आधारित हैं, लेकिन एमआरएनए टीकों के लिए, वैज्ञानिकों को प्रोटीन बनाने के बजाय केवल प्रोटीन के लिए कोड लिखने की जरूरत होती है।
एमआईटी में जीव विज्ञान के प्रोफेसर फिलिप शार्प ने 1970 के दशक में स्प्लिट जीन और स्प्लिस्ड आरएनए की खोज के लिए, फिजियोलॉजी या मेडिसिन में 1993 का नोबेल पुरस्कार जीता था। उनके काम का इस्तेमाल कोविड एमआरएनए वैक्सीन बनाने के लिए किया गया।
शार्प ने डॉयचे वेले को बताया किअगर कभी किसी ने आरएनए के इस्तेमाल के बारे में अध्ययन किया है, तो वह जानता है कि आपकी त्वचा न्यूक्लियस से ढकी हुई है जो इसे नष्ट कर देती है। आपका खून न्यूक्लियस से भरा होता है जो इसे नष्ट कर देता है।
शार्प कहते हैं किहकीकत यह है कि वैज्ञानिकों ने आरएनए की सुरक्षा करने और इसे पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए रास्ता खोज लिया। यह एक बड़ा तकनीकी कदम था। ऐसा करने के लिए बहुत कुछ नया करना पड़ा। एक बार जब आप एमआरएनए जैसी नई तकनीक विकसित कर लेते हैं, तो मनुष्य इसका इस्तेमाल तब तक करेगा जब तक ऐसा समाज है जो इस तकनीक का इस्तेमाल कर सके।
कुक का ऐसा मानना है कि शायह ही कोई ऐसा टीका बन सकेगा जो हर तरह के कैंसर के बचाव कर सके। हालांकि, वे यह भी मानते हैं कि जैसे वैज्ञानिकों ने कुछ संक्रामक बीमारियों से निपटने का तरीका निकाल लिया है, वैसे ही कैंसर के कुछ प्रकार से निपटने का तरीका भी इजाद हो सकता है। वह कहते हैं किहम कैंसर के खिलाफ अपने तरकश में एक और तीर शामिल करने जा रहे हैं।