जो काम भारत के नामचीन अर्थशास्त्री या कृषि मंत्री नहीं कर सके, वो ट्रक ड्राइवरों ने कर दिखाया। झारखंड के नक्सली इलाके में ट्रक ड्राइवरों ने किसानों और मजदूरों की किस्मत संवार दी। एक समय था जब देश के उत्तरी क्षेत्र के ट्रक चालक झारखंड से औने-औने भाव पर टमाटर खरीदकर लाते थे और अपने इलाके में ऊंची कीमतों पर बेचकर खूब लाभ कमाते थे। फसल का वाजिब भाव नहीं मिलने से दुखी किसान सड़कों पर टमाटर फेंकने लगे थे।
इस घटना से पड़ोसी राज्यों के ट्रक चालकों ने मौके की नजाकत समझी और अपने फायदे के साथ-साथ किसानों को भी फायदा दिलाने की बात सोची, जिससे पिछले चार-पांच साल में टमाटर उत्पादकों की जिंदगी बदल गई है। यह बदलाव लातेहार के नक्सल इलाके में हुआ। लातेहार जिला स्थित बालुमठ के निवासी मोहम्मद दानिश ने आईएएनएस को बताया, "पांच से छह साल पहले हमें लगता था कि टमाटर की खेती हमारे के लिए बरबादी के सिवा और कुछ नहीं है, लेकिन अब सोच बदल गई है। इस बदलाव का श्रेय पड़ोसी राज्यों के ट्रक चालकों को ही जाता है।"
किसान किसुन कुमार ने कहा, "चार साल पहले, उत्तर भारत से यहां आने वाले ट्रकों के चालक अपने ट्रक खाली नहीं ले जाकर उसमें टमाटर भरकर ले जाते थे। वे हमसे काफी सस्ती दर पर टमाटर खरीदते थे और अपने गृह राज्यों में महंगे भाव पर बेचकर खूब मुनाफा कमाते थे।" एक अन्य किसान अर्जुन उरांव ने कहा, "एक समय था जब हम टमाटर अपने घर न ले जाकर सड़कों पर फेंक देते थे। हमें लागत भी नहीं मिल पाती थी, लेकिन अब हम वाजिब दाम पर टमाटर बेचते हैं।"
किसान यहां पहले 50 पैसे प्रति किलो टमाटर बेचते थे, लेकिन अब वे आठ से 12 रुपये प्रति किलो बेच रहे हैं। इलाके के युवा टमाटर की पैकेजिंग करते हैं। इस तरह उनके लिए रोजगार पैदा हुआ है। टमाटर की पैकेजिंग कर ट्रकों में लोड करने के लिए श्रमिकों को प्रति क्रेट 10 रुपये मिलते हैं। एक श्रमिक औसतन दिन में 100 क्रेट टमाटर ट्रक में लोड करते हैं। इस तरह वह दिन में 1,000 रुपये कमा लेता है। एक अनुमान के तौर पर टमाटर के सीजन में हर श्रमिक 1.50 लाख रुपये से 2.50 लाख रुपये तक कमा लेते हैं।
ट्रक चालक मोहम्मद शमशेर ने बताया, "टमाटर की ढुलाई में करीब 40 ट्रक लगाए गए हैं जो यहां से टमाटर लेकर दूसरे प्रदेश और बांग्लादेश व नेपाल की सीमा से लगे इलाकों में जाते हैं, जहां टमाटर की इतनी मांग है कि हम उसकी पूर्ति नहीं कर पाते हैं।"
ट्रक चालकों की इस पहल से स्थानीय किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम मिलने लगा है, जिससे उनकी जिंदगियां बदल गई हैं।