नेपाल के नए नक्शे को लेकर भारत और नेपाल के बीच विवाद के बाद अब दोनों देशों के बीच एक नए मुद्दे पर विवाद खड़ा होता नजर आ रहा है। नेपाल के नागरिकता कानून में एक प्रस्तावित संशोधन पर देश में चर्चा शुरू हो गई है जिसके तहत नेपाली पुरुषों से विवाह करने वाली 'गैर-नेपाली' मूल की महिलाओं को 7 साल तक नेपाल की नागरिकता नहीं मिलेगी।
यह प्रस्ताव नया नALSO READ: Special Report : चीन की गोद में बैठकर नेपाल भारत के लिए बन रहा नई चुनौती ?हीं है और पहले से ही यह नेपाली संसद के सामने लंबित था। लेकिन पिछले सप्ताह संसद की स्टेट अफेयर्स एंड गुड गवर्नेंस कमिटी ने सभी दलों को 5 दिनों में प्रस्ताव पर निर्णय लेने को कहा। सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी ने घोषणा कर दी है कि वो प्रस्तावित संशोधन का समर्थन करती है, लेकिन सरकार और विपक्ष में इस प्रस्ताव को लेकर सहमति नहीं है। प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस प्रस्ताव का विरोध कर रही है।
फिलहाल कैसा है प्रावधान?
नेपाल के मौजूदा नागरिकता कानून के तहत नेपाली पुरुषों से विवाह करने वाली गैर-नेपाली महिलाओं को तुरंत नेपाली नागरिकता मिल जाती है। 'मधेस' नाम से जाने जाने वाले नेपाल के तराई इलाके में ऐसे कई परिवार हैं जिनके सीमा के उस पार बसे भारतीय परिवारों के साथ पारिवारिक रिश्ते हैं। जब कुछ ही दिन पहले भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि दोनों देशों के बीच 'रोटी-बेटी' का रिश्ता है, तब वो इन्हीं रिश्तों की बात कर रहे थे।
अगर यह संशोधन पारित हो जाएगा तो इससे इन मधेसी परिवारों के सीमा-पार रिश्तों पर असर पड़ेगा। यही कारण है कि विपक्षी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। कई मधेसी नेताओं ने इस प्रस्ताव को नस्लीय भेदभाव की प्रवृत्ति से प्रेरित भी बताया है। मधेसी अकसर यह शिकायत करते हैं कि नेपाल की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
क्या भारत पर निशाना साधने की है कोशिश?
कई जानकारों का यह मानना है कि यह कदम भारत को ही ध्यान में रखकर लिया गया है। कुछ ही दिनों पहले नेपाली संसद ने देश को एक नया नक्शा देने वाला कानून भी पास किया था जिसमें कई ऐसे इलाकों को नेपाल का हिस्सा बताया गया है, जो अभी तक विवादित थे और जिन पर भारत भी अपने स्वामित्व का दावा करता है।
वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर का कहना है कि नेपाल अब अपनी अलग पहचान पर जोर देने की कोशिश कर रहा है और भारत को यह संदेश देना चाह रहा है कि वो भारत को ऐसा कोई भी विशेषाधिकार नहीं देगा, जो नेपाली नागरिकों को भारत में नहीं मिलता। दोनों मुद्दों में अंतर यह है कि नक्शे वाले मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एकजुट थे लेकिन नागरिकता के सवाल पर दलों में मतभेद हैं।
अब देखना यह है कि नागरिकता कानून में इस प्रस्तावित संशोधन के भविष्य का संसद में क्या फैसला होता है?