साइबर अपराधियों द्वारा खाते में सेंध या फिर क्रेडिट-डेबिट कार्ड से खरीदारी के मामले तो सामने आ ही रहे थे, अब खाताधारकों की जानकारी के बिना उनके अकाउंट से ट्रांजैक्शन भी किए जा रहे हैं।
दिलचस्प तो यह है कि कई तरह की योजनाओं के तहत सरकार द्वारा खाते में सीधे पैसे भेजे जाने के कारण लोग गलतफहमी के भी शिकार हो रहे हैं। उन्हें लगता है कि रकम सरकार द्वारा ही भेजी गई है, इसलिए वे पैसा बैंक को लौटाने से इंकार भी कर देते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ जाता है।
आजकल लोगों के बैंक खाते में सरकारी योजनाओं के तहत कई तरह की धनराशि सीधे भेजी जाती है। यह राशि किसान सम्मान योजना, फसल बीमा योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना, आपदा सहायता राशि, छात्र-छात्राओं के लिए साइकल या पोशाक योजना या कई प्रकार की अन्य योजनाओं के तहत दी जाती है।
वर्तमान में भारत सरकार द्वारा 311 तरह की योजनाओं की राशि डीबीटी के तहत लाभार्थियों खाते में क्रेडिट की जाती है। इसके अलावा राज्य सरकार की भी ऐसी कई योजनाएं हैं। अमूमन समय के अनुरूप इसी राशि का लोग इंतजार करते हैं। अकाउंट में पैसे आने की सूचना बैंक द्वारा एसएमएस के जरिए मेसेज भेज कर दी जाती है या फिर लोग समय-समय पर बैंक या ग्राहक सेवा केंद्रों (सीएसपी) में जाकर खाता अपडेट भी करवाते हैं। बीते दिनों कुछ ऐसे मामले सामने आए जिससे यह समझना कठिन हो गया कि आखिर अकाउंट में इतनी बड़ी रकम कहां से आ गई। हालांकि बैंकों ने तकनीकी त्रुटि का हवाला देकर इससे पल्ला झाड़ लिया।
छात्र के खाते में आए 900 करोड़
कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड के पस्तिया गांव निवासी कक्षा छह के दो छात्र, असित कुमार और गुरुचरण विश्वास अपने खाते में पोशाक राशि आने की राह देख रहे थे, किंतु उनके अकाउंट में करोड़ों रुपये होने की जानकारी उन्हें तब मिली, जब वे अपना खाता अपडेट करवाने गए।
उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक के खाताधारक असित के खाते में छह करोड़ से ज्यादा तो गुरुचरण के खाते में 900 करोड़ से अधिक की राशि होने का पता चला। यह पता चलने पर बैंक प्रबंधन भी हलकान हो गया। इन दोनों बच्चों ने इंडसइंड बैंक की सीएसपी पर जाकर अपना-अपना खाता चेक करवाया था। यह बैंक स्पाइस मनी कंपनी के सिस्टम का उपयोग करती है जिसके ब्रांड एंबेसडर सोनू सूद बताए जाते हैं।
जिला प्रशासन के सक्रिय होने पर ग्रामीण बैंक ने सफाई दी कि दोनों के खाते में इतनी बड़ी रकम नहीं है। एक के खाते में मात्र सौ तो दूसरे के खाते में 128 रुपये हैं। फिर भी यह सवाल तो लाजिमी है कि इंडसइंड बैंक की सीएसपी में थोड़ी देर के लिए ही सही इतनी बड़ी रकम दिखी कैसे। दोनों छात्रों के खाते से उस वक्त हुआ लेनदेन किसी साइबर अपराध से भी जुड़ा हो सकता है।
अकाउंट खोला ही नहीं, बन गए करोड़पति
सुपौल के विपिन चौहान की कहानी तो और अजीब है। वह जब मनरेगा के जॉब कार्ड के संबंध में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की सीएसपी पर पहुंचे तो आधार कार्ड के जरिए वित्तीय स्थिति की जांच पर पता चला कि उनका जॉब कार्ड नहीं बन सकता है क्योंकि उनके खाते में करीब दस करोड़ रुपये जमा हैं। उन्होंने जब अकाउंट से संबंधित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शाखा से संपर्क किया तो उन्हें बताया गया कि इस अकाउंट को 13 अक्टूबर 2016 को खोला गया था और फरवरी 2017 को खाते में करोड़ों के लेनदेन के बाद उसे फ्रीज कर दिया गया था।
दरअसल, विपिन ने इस बैंक में अपना खाता खोला ही नहीं था। उस खाते में विपिन चौहान का केवल आधार नंबर था। फोटो विपिन की तस्वीर से मेल नहीं खा रहा था जबकि हस्ताक्षर उससे मिलता-जुलता प्रतीत हो रहा था। फोन नंबर भी किसी और का था। अकाउंट खोलने संबंधी फॉर्म का भी बैंक में अता-पता नहीं था। शाखा प्रबंधक को वरीय अधिकारियों ने पूरे प्रकरण की जांच का निर्देश दिया है।
पैसा हो गया खर्च, भेजे गए जेल
खगड़िया जिले के एक शख्स के अकाउंट में पांच लाख रुपये आ गए। रंजीत दास नाम के इस शख्स ने बैंक को इतनी बड़ी रकम की सूचना नहीं दी। आम लोगों के बीच मामले का खुलासा तब हुआ जब बैंक ने नोटिस भेजकर उनसे रकम वापस करने को कहा। उन्होंने बैंक को सीधा जवाब दिया, ये पैसे पीएम मोदी जी ने भेजे हैं, इसलिए लौटाऊंगा नहीं।
रंजीत दास ने पैसे निकाल कर खर्च कर दिए। अंतत: मामला पुलिस के पास गया और रंजीत दास को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। मुजफ्फरपुर के कटरा थाना क्षेत्र निवासी वृद्ध राम बहादुर शाह जब वृद्धा पेंशन की राशि चेक करवाने सीएसपी पर पहुंचे तो संचालक ने आधार नंबर पूछा और अंगूठा लगाने को कहा। अंगूठा लगाते ही उनके खाते में 52 करोड़ का बैलेंस स्क्रीन पर आ गया। सीएसपी संचालक और राम बहादुर दोनों दंग रह गए। उनका खाता उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक की पहसौल शाखा में है।
इस प्रकरण की सूचना उनके पुत्र सुजीत कुमार ने पुलिस को दी। पुलिस ने जांच की तो शाखा प्रबंधक सुधीर कुमार ने बताया कि उनके खाते में महज दो हजार रुपये हैं। उनका कहना था कि तकनीकी गड़बड़ी के कारण इतनी बड़ी राशि अकाउंट में दिखी होगी। अब बुजुर्ग ने पीएम मोदी से मांग की है कि कुछ राशि उन्हें दे दी जाए जिससे उनका बुढ़ापा अच्छे से कट जाए।
बांका जिले के शंभूगंज निवासी एक रिक्शा चालक नीतीश कुमार के खाते में एक करोड़ की राशि आने का पता तब चला जब गुजरात पुलिस उनके घर पर पहुंची। पुलिस का कहना था कि नीतीश के यूनियन बैंक के खाते में एक करोड़ की राशि आई है। इसलिए इसकी जांच की जा रही है। पिता फूदो रविदास से पूछताछ हुई। वे परेशान थे कि आखिर इतनी बड़ी रकम उनके खाते में कहां से आ गई।
पल्ला झाड़ ले रहे बैंक
इन सभी मामलों से साफ है कि कहीं न कहीं बैंकिंग सिस्टम में कोई बड़ी गड़बड़ी है। ग्रामीण क्षेत्र के बैंकों से करोड़ों का लेन-देन नहीं होता है, लेकिन इसके बावजूद ऐसे अकाउंट ऑपरेट होते रहे। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अवकाश प्राप्त बैंक अधिकारी कहते हैं, थोड़ी आश्चर्य की बात है कि ऐसा हो रहा है। तकनीकी खराबी हो सकती है, किंतु अगर यही स्थिति रही तो बहुत मुश्किल होगी। बैंक को ऑफलाइन ट्रांजैक्शन मैनेजमेंट सिस्टम पर भी नजर रखने की जरूरत है। सीबीएस सिस्टम में ऐसी गड़बड़ी चिंताजनक है।''
पत्रकार अनूप पांडेय कहते हैं, जन-धन योजना के तहत लोगों के भले के लिए ही सही भारी संख्या में खाते खोले गए। जिनमें बिना पढ़े-लिखे लोगों की संख्या ज्यादा है। बहुत संभव है, इनके खातों व संबंधित कागजातों का भी किसी न किसी स्तर पर दुरुपयोग किया जा रहा हो। नोटबंदी के समय इन खातों का कैसे इस्तेमाल किया गया, यह जगजाहिर है।''
वहीं वित्तीय मामलों के जानकार अंकित का कहना है, ऐसी बातें यह इशारा करती हैं कि किसी न किसी स्तर पर या तो बैंक कर्मी की मिलीभगत है या फिर हैकर्स सक्रिय हैं। आखिर विपिन का खाता बिना प्रमाणिक कागजातों के कैसे खोला गया या फिर थोड़ी देर के लिए ही सही उतनी बड़ी रकम अकाउंट में दिखी कहां से?''