बर्फ के नीचे मिला पेरिस से भी बड़े आकार का गड्ढा

Webdunia
मंगलवार, 20 नवंबर 2018 (12:03 IST)
सांकेतिक चित्र
एक विशाल धूमकेतु करीब 12,000 साल पहले पृथ्वी से टकराया और इसके कारण पेरिस के आकार का गड्ढा बन गया। वैज्ञानिकों ने बर्फ के नीचे दबे इस गड्ढे को ढूंढ निकाला है।
 
 
ग्रीनलैंड में इस गड्ढे को ढूंढने के लिए वैज्ञानिकों ने बेहद उन्नत रडारों का इस्तेमाल किया। पृथ्वी पर बर्फ की सतह के नीचे या फिर ग्रीनलैंड में इस तरह का कोई गड्ढा पहली बार ढूंढा गया है। इतना ही नहीं, अब तक पृथ्वी पर धूमकेतुओं के टकराने से बने जिन 25 गड्ढों का पता चला है, उनमें यह सबसे बड़ा है। इस खोज के बारे में साइंस एडवांसेज नाम की जर्नल में रिपोर्ट छपी है।
 
 
रिसर्चरों का कहना है कि करीब 31 किलोमीटर की चौड़ाई वाले विशाल गड्ढे के कारण इलाके में काफी उथल पुथल हुई होगी। यहां तक कि इसका असर पूरी दुनिया पर हुआ होगा। रिसर्चरों के मुताबिक अभी तो यह कहानी बस शुरू हुई है।
 
 
रिपोर्ट के सह लेखक जॉन पाडेन कंसास यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्युटर साइंस विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनका कहना है, "इसकी वजह से वायुमंडल में कचरा गया होगा, जिसका असर जलवायु पर पड़ा होगा। इसके साथ ही बड़ी मात्रा में बर्फ भी पिघली होगी और इस वजह से अचानक से कनाडा और ग्रीनलैंड के बीच नारेस जलडमरूमध्यमें ताजे पानी का बहाव तेज हो गया होगा और पूरे इलाके के समुद्री क्षेत्र में पानी के बहाव पर इसका असर हुआ होगा।"
 
 
उन्होंने यह भी कहा, "ऐसे सबूत हैं कि इसका असर शायद ग्रीनलैंड की बर्फ की परत बनने के बाद हुआ होगा, हालांकि रिसर्च टीम अभी इस घटना की पक्की तारीख का पता लगाने में जुटी है।" इस खोज के बारे में सबसे पहले 2015 में कुछ जानकारी मिली थी और वैज्ञानिक तभी से उसकी पुष्टि करने में जुटे हैं। शुरुआती जानकारी नासा के प्रोग्राम फॉर आर्कटिक रीजनल क्लाइमेट एसेसमेंट एंड ऑपरेशन आइसब्रिज से मिली। इसके बाद से आधुनिक रडार तकनीक का इस्तेमाल कर इस बारे में और ज्यादा आंकड़े जमा किए गए।
 
 
डेनार्क की हिस्ट्री म्यूजियम के सेंटर फॉर जियोजेनेटिक्स के प्रोफेसर कुर्ट जाएर भी इस रिपोर्ट के सह लेखकों में हैं। उनका कहना है, "अब तक पक्के तौर पर उस तारीख का पता नहीं चला है जिस दिन गड्ढा बना लेकिन इसकी स्थिति से मजबूत संकेत मिल रहे हैं कि ग्रीनलैंड के बर्फ से ढंकने के बाद यह बना, यानी यह 30 लाख साल से कम उम्र का है और मुमकिन यह भी है कि यह महज 12,000 साल पहले बना हो।"
 
 
रिसर्चर ग्लेशियरों के नीचे से पिघली चीजों की खोज कर इसका वक्त और पृथ्वी के जीवन पर असर का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
 
 
एनआर/आईबी (एएफपी)
 
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