जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स (Olaf Scholz) की भारत यात्रा के पहले दिन उनके और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के बीच दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करने पर बातचीत हुई। हालांकि रूस को लेकर दोनों के विचार पहले की तरह अलग-अलग रहे। जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मिलकर नई दिल्ली और बर्लिन के रिश्तों के लिए महत्वपूर्ण 7वें 'इंटरगवर्नमेंटल कंसल्टेशंस' (आईजीसी) की अध्यक्षता की। वार्ता में दोनों देशों के बीच कई मोर्चों पर सहयोग का ऐलान किया गया है।
दोनों नेताओं के अलग-अलग संबोधनों में द्विपक्षीय रिश्तों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता भी नजर आई। कई संधियों पर हस्ताक्षर भी किए गए लेकिन इन सबके बीच रूस और यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका का बार-बार जिक्र होता रहा। इस विषय पर दोनों देशों की अलग-अलग राय कायम है।
आईजीसी से पहले जर्मन व्यवसायों की एक बैठक को संबोधित करते हुए शॉल्त्स ने भारत के बारे में कई सकारात्मक बातें कहीं। भारत की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और दुनिया के सबसे गतिशील प्रांत (एशिया प्रशांत) का केंद्र है।
रूस पर कायम हैं मतभेद
वर्तमान दौर की चुनौतियों का जिक्र करते हुए शॉल्त्स ने कहा कि यह बहुध्रुवीय दुनिया है जिसमें कोई एक वैश्विक निगरानीकर्ता नहीं है, बल्कि जिसमें सभी को साझा संस्थाओं और नियमों की रक्षा करनी है। रूस के खिलाफ स्पष्ट संदेश देते हुए शॉल्त्स ने कहा कि अगर वह 'यूक्रेन के खिलाफ अपने अवैध, क्रूर युद्ध में सफल हो जाता है, तो इसके परिणाम यूरोप की सीमाओं से बहुत दूर तक महसूस किए जाएंगे' और इनसे 'वैश्विक सुरक्षा और समृद्धि' पर ही खतरा मंडराने लगेगा।
आईजीसी के बाद मीडिया को दिए बयान में उन्होंने 'यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध' का जिक्र किया और कहा कि 'यूक्रेन की अखंडता और संप्रभुता को बचाने की जरूरत है।'
पूर्वानुमानों के अनुरूप ही पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में रूस का नाम तक नहीं लिया। यूक्रेन युद्ध पर उन्होंने बस युद्ध की निरर्थकता पर अपनी राय को दोहराया। मोदी ने कहा, 'यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष हम दोनों (भारत और जर्मनी) के लिए चिंता का विषय हैं। भारत का हमेशा मत रहा है कि युद्ध से समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। और शांति की बहाली के लिए भारत हरसंभव योगदान देने के लिए तैयार है।'
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र पर नजरिया
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की भूमिका को लेकर दोनों नेताओं के स्वर एक जैसे रहे। हालांकि, किसी ने भी चीन का जिक्र नहीं किया। शॉल्त्स ने कहा कि हिन्द-प्रशांत में 'हमें अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के आदर और समुद्री नियमों की आजादी के लिए खड़ा होने की जरूरत है।' इसे चीन के लिए संदेश के रूप में देखा जा रहा है। मोदी ने भी कहा, 'इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत आवाजाही की आजादी और कानून का शासन सुनिश्चित करने पर हम दोनों एकमत हैं।'
भारतीय कामगारों के लिए ज्यादा वीजा की व्यवस्था
द्विपक्षीय वार्ता में जर्मनी में भारतीय कुशल कामगारों की बढ़ती मांग पर काफी जोर रहा। मोदी ने बताया कि जर्मनी अब भारत के कुशल व प्रशिक्षित श्रमिकों के लिए सालाना वीजा की संख्या 20,000 से बढ़ा कर 90,000 कर देगा। यह दोनों देशों के हित में है। जर्मनी में कुशल कामगारों की कमी है और भारत में उनके लिए नौकरियों की। हालांकि, शॉल्त्स ने व्यापार फोरम में बोलते हुए 'अनियमित आप्रवासन' के बारे में चेताया और कहा कि जर्मनी कुशल कामगारों का स्वागत करता है लेकिन किसे आने देना है और किसे नहीं इसका फैसला वह ही करेगा।
इसके अलावा व्यापार और सामरिक साझेदारी के मोर्चे पर भी दोनों देशों के बीच चर्चा महत्वपूर्ण रही। मोदी ने जर्मनी की 'फोकस ऑन इंडिया' रणनीति के लिए शॉल्त्स का 'अभिनंदन' किया और कहा कि 'इसमें विश्व के दो बड़े लोकतंत्रों के बीच साझेदारी को व्यापक तरीके से आधुनिक बनाने और ऊंचा उठाने का ब्लूप्रिंट है।'
तकनीक, कौशल विकास, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्जा से लेकर खुफिया जानकारी साझा करना और कानूनी मामलों में सहायता जैसे क्षेत्रों में सहयोग कार्यक्रमों की घोषणा की गई। मुक्त व्यापार के मोर्चे पर शॉल्त्स ने कुछ छिपे हुए संदेश भी देने की कोशिश की। उन्होंने संरक्षणवाद का स्पष्ट रूप से विरोध किया और कहा कि विश्व व्यापार संगठन की बनाई व्यवस्था को मानना चाहिए और तरह-तरह के शुल्क लगाने से बचना चाहिए।
शॉल्त्स ने भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच मुफ्त व्यापार संधि (एफटीए) कराने की जर्मनी की कोशिशों का भी जिक्र किया और कहा कि अगर दोनों देश इस पर मिलकर काम करें, तो यह सालों की जगह कुछ ही महीनों में हो जाएगा। एफटीए पर अलग से भी दोनों देशों के बयान आए, जिनसे संकेत मिलता है कि अभी इस पर बहुत काम होना बाकी है।
जर्मनी के वाइस चांसलर और आर्थिक मामलों के मंत्री रोबर्ट हाबेक ने कहा कि एफटीए पर चर्चाओं में कृषि क्षेत्र एक मुश्किल विषय बना हुआ है। भारत के व्यापार मंत्री पीयूष गोयल ने भी कहा कि ईयू के लिए अपना डेयरी बाजार नहीं खोलेगा और अगर इस पर जोर दिया गया, तो एफटीए होना मुश्किल है। 2022 में दोनों ही पक्षों ने 2023 तक एफटीए को संपन्न करने की बात की थी लेकिन यह अभी तक हो नहीं पाया है।