जर्मनी की सरकार ने बुधवार को 2020 का बजट पास कर दिया। भारत के विपरीत जर्मनी में आम लोगों की उम्मीदें या आशंकाएं बजट से जुड़ी नहीं होती। यह सरकार के आमदनी और खर्चे का हिसाब होता है।
जर्मनी में भी बजट से आम लोगों की उम्मीदें तो होती हैं, लेकिन डर और आशंकाएं नहीं होती क्योंकि एक तो बजट की प्रक्रिया बहुत पारदर्शी है और दूसरे आम तौर पर इसका इस्तेमाल टैक्स बढ़ाने के लिए नहीं किया जाता। सरकार का बजट भी परिवार के बजट की तरह ही होता है, कि कितनी आमदनी है और खर्च कहां कहां किया जाएगा।
परिवार से अंतर बस यही होता है कि परिवार को सिर्फ अपने फायदे का ख्याल होता है जबकि सरकार को अपने फायदे के अलावा समाज के फायदे का भी ख्याल रखना होता है। तय यह करना होता है कि नए स्कूल, कॉलेज और हाइस्पीड इंटरनेट पर खर्च किया जाए या लोगों को सरकारी सुविधाएं देने पर।
बजट से पहले राजनीतिक बहस भी इसी बात पर होती है कि खर्च गैर विकास मदों पर हो या ऐसे मदों पर जो समाज के विकास में सहायक हों, जैसे शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर। उद्योग और व्यवसाय के विकास के लिए कुशल कामगारों के अलावा रोड, रेल और तेज इंटरनेट भी जरूरी है। इस तरह सरकार के खर्च का हिसाब मुल्क का भविष्य तय करता है।
अंतिम फैसला संसद का होता है ताकि सभी हितों में संतुलन बनाया जा सके और सरकारें मनमानी न कर सकें। सरकारों के पास टैक्स लगाने का अधिकार होता है, लेकिन अच्छे परिवारों के मुखिया की तरह अच्छी सरकारें वे होती हैं जो जेब देखकर खर्च करें, कर्ज लेकर नहीं। दूसरी ओर कई बार कर्ज लेकर भी भविष्योन्मुखी निवेश जरूरी होता है, बड़े शहरों में मेट्रो रेल बनाना या खनन वाले इलाकों में कारखाना लगाना फायदे का सौदा हो सकता है।
जर्मनी में केंद्रीय बजट तय करने की लंबी प्रक्रिया होती है जहां सकल घरेलू उत्पाद का करीब 10 प्रतिशत करों की आमदनी से आता है। पिछले पाँच-छह साल से जर्मनी अपने खर्च के लिए कोई कर्ज नहीं ले रहा है और इस तरह हर साल लगातार अपना पुराना कर्ज घटा रहा है। इसका फायदा ये हो रहा है कि उसे पुराने कर्ज के लिए ब्याज पर खर्च नहीं करना पड़ रहा है।
आम तौर पर अगले साल के बजट के आरंभिक आंकड़े साल के शुरू में ही आ जाते हैं। वित्त मंत्रालय के प्रस्ताव पर कैबिनेट साल के मध्य तक अंतिम फैसला लेती है। उससे पहले सभी मंत्रालय अपने अपने प्रस्तावित बजट पर खींचतान करते हैं और अपने विभागों के लिए ज्यादा राजस्व पाने की कोशिश करते हैं। कैबिनेट में पास होने के बाद बजट का प्रस्ताव संसद की बजट कमिटी में जाता है। और बजट समिति में इसे संशोधित किए जाने के बाद आखिर में संसद में पेश किया जाता है। बजट पर आखिरी मुहर संसद के पूर्ण अधिवेशन में लगती है।
हालांकि हाल के अनुमानों के अनुसार जर्मनी में करों की आमदनी गिर रही है। जर्मन सरकार का इरादा पिछले सालों की तरह 2020 में भी संतुलित बजट पेश करने का है। करों से होने वाली आय में कमी के कारण वित्त मंत्रीओलोफ शोल्त्स ने सरकारी खर्च में 2.7 अरब यूरो कम खर्च करने का फैसला किया है और विभिन्न मंत्रालयों से ये रकम बचाने को कहा। इसलिए इस साल जर्मनी का बजट 359.9 अरब यूरो का होगा।
सरकारी खर्च में नियमित खर्चों के अलावा सड़क और रेल यातायात संरचना में भारी निवेश करने का इरादा है। परिवारों को सुविधा देने के अलावा जर्मन सरकार कार्बन उत्सर्जन घटाने और कीड़ों मकोड़ों को मरने से बचाने के उपायों पर भी अतिरिक्त खर्च करेगी। रक्षा बजट में भारी वृद्धि कर उसे 44.9 अरब यूरो कर दिया गया है लेकिन वह नाटो में जर्मनी के सहयोगी देशों की अपेक्षाओं से कम है।
ऐसा नहीं है कि जर्मन बजट पर मंत्रालयों के बीच विवाद नहीं होता। इसी साल शिक्षा और शोध मंत्रालय के बजट में 53 करोड़ यूरो की कटौती की जा रही है। शिक्षा और शोध को भविष्य का निवेश माना जाता है क्योंकि नई तकनीक और नए रोजगारों का भविष्य कुशल कर्मियों के कंधों पर ही होता है। अगर लोगों को प्रशिक्षण नहीं मिले तो भविष्य का रोजगार भी संभव नहीं होगा।
संसद में और सार्वजनिक बहस में बजट के इन्हीं मुद्दों पर संसद के आखिरी फैसले से पहले अगले महीनों में बहस होगी। इसमें राजनीतिक प्रतिनिधियों के अलावा उद्योग और शिक्षा जगत के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे। जहां प्रक्रिया इतनी सार्वजनिक हो वहां बजट उत्सुकता की वजह नहीं, गंभीर विमर्श का मुद्दा हो जाता है। लोगों की ये चिंता नहीं रहती कि फ्रिज और टेलिविजन अभी खरीदें या थोड़ा इंतजार कर लें।