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बुर्ज खलीफा से गांधीजी सब देख रहे हैं

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, गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018 (10:58 IST)
कई बातें जहन में अटक जाती हैं। 2 अक्टूबर को बुर्ज खलीफा पर महात्मा गांधी और उनके संदेशों वाले फोटो मेरे दिमाग में अटक गए हैं। सोचता हूं कि गांधीजी को ऐसा सम्मान देने वाला यूएई फिर यमन में तीन साल से बम क्यों बरसा रहा है।
 
 
यही वह मोड़ था जब यमन शिया सुन्नी टकराव का नया अखाड़ा बनने वाला था. ताकतवर सुन्नी देश सऊदी अरब को यह कतई मंजूर नहीं था कि यमन की सत्ता शिया हूथी बागियों के हाथ में आए, जिन्हें सऊदी अरब के प्रतिद्वंद्वी और शिया देश ईरान का समर्थन प्राप्त है. सऊदी अरब ने संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और जॉर्डन जैसे देशों का एक गठबंधन बनाया और यमन पर हवाई हमले करने शुरू किए।
 
 
अरब दुनिया के बड़े और ताकतवर देश होने के नाते सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात यमन में लड़ रहे परस्पर विरोधी गुटों के बीच बातचीत से विवाद को सुलझाने की कोशिश भी कर सकते थे। लेकिन उन्होंने यमन में सुन्नी राष्ट्रपति हादी की सत्ता बहाल करने के लिए ताकत का रास्ता चुना। आक्रामक विदेश नीति को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वाले सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इसे क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने और ईरान को मात देने के मौके के तौर पर देखा।
 
 
सऊदी अरब समझता है कि ईरान अरब दुनिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए हूथी बागियों का इस्तेमाल कर रहा है और उसे अगर नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। ईरान हूथी बागियों की मदद करने के आरोपों से इनकार करता है। लेकिन इलाके पर नजदीक से नजर रखने वाले लोगों के लिए इस इनकार पर भरोसा करना आसान नहीं है।
 
 
ईरान और सऊदी अरब के बीच शिया-सुन्नी टकराव इतना तीव्र है कि मध्य पूर्व की सियासत में हर मोड़ पर उसकी गूंज सुनाई देती है। वर्चस्व की इस होड़ में ना सऊदी अरब पीछे रहना चाहता है और ना ही ईरान। हर जगह वे आपको टकराते हुए नजर आते हैं। इस टकराव का एक अहम मोर्चा आजकल यमन बना हुआ है।
 
यमन में सऊदी गठबंधन के हमलों में अब तक हजारों आम नागरिक मारे गए हैं। इन में ना स्कूलों को बख्शा गया और ना अस्पतालों को। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यमन में सऊदी गठबंधन पर युद्ध अपराधों के आरोप लगाए गए हैं। यमन के हालात को संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया का सबसे गंभीर मानवीय संकट बताया है जहां तीन चौथाई आबादी को राहत सामग्री की जरूरत है। 2.7 करोड़ की आबादी वाला यह देश आज मदद के लिए दुनिया की तरफ देख रहा है। अफसोस की बात यह है कि लड़ाई रुकने के अभी आसार भी नजर नहीं आते।
 
 
बहरहाल, युद्ध में तपते यमन के रेगिस्तान से बिलखते बच्चों की चीखें शायद विराट वैभव वाले शहर दुबई में बुर्ज खलीफा तक नहीं पहुंच सकतीं। और दुबई जैसे शानदार शहर में बदहाल यमन का ख्याल भी किसे होगा। इसीलिए बुर्ज खलीफा पर गांधी और उनके अहिंसा के संदेश सोशल मीडिया पर लाइक और शेयर बटोर रहे हैं।
 
 
ऐसे में ना जाने कहां से मुझे ख्याल आया कि जिस देश ने दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बनाकर दो अक्टूबर के दिन गांधी को सम्मान दिया, उसे उनके शब्दों पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए। हिंसा से अहिंसा का रास्ता हमेशा बेहतर है। लड़ाई से बातचीत का रास्ता हमेशा बेहतर है। यूएई और उसका मित्र सऊदी अरब अगर इस बात को समझें तो बुर्ज खलीफा पर गांधी की फोटो मेरे भी दिगाग में नहीं अटकेगी।
 

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