मौत की सजा का डर भी नहीं रोक पा रहा रेप की घटनाएं

DW
बुधवार, 15 सितम्बर 2021 (08:54 IST)
राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में भारत में करीब 32 हजार रेप के मामले दर्ज हुए। यानी हर घंटे में औसतन 4 मामले जबकि भारत में रेप से जुड़े कानून बहुत कड़े हैं, जिनमें मौत की सजा तक का प्रावधान है।
 
मुंबई में एक दलित महिला की रेप के दौरान आई चोटों के कारण मौत हो गई। सामाजिक कार्यकर्ता इस घटना की साल 2012 में दिल्ली में हुए बर्बर गैंगरेप से तुलना कर रहे हैं। इसकी वजह स्थानीय अधिकारी की ओर से दी गई जानकारियां हैं। इस मामले में भी रेप के दौरान महिला की योनि में एक लोहे की छड़ घुसाई गई। महिला एक मिनी बस में बेहोश पाई गई और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। पुलिस की ओर से इस मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, जिसने अपराध कबूल लिया है।
 
भारत में पिछले कुछ दिनों में नृशंस रेप का यह अकेला मामला नहीं है। कुछ ही दिन पहले छत्तीसगढ़ में शराब के नशे में दो युवकों ने एक महिला का अपहरण कर, उसे बांधकर गैंगरेप किया और फिर उसकी हत्या कर दी। वहीं उत्तर प्रदेश के बिजनौर में एक राष्ट्रीय स्तर की खो-खो खिलाड़ी से रेप किया गया और हत्या के बाद उसके शव को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया।
 
इस दलित खिलाड़ी ने रेप के दौरान ही एक दोस्त को कॉल किया था, जिसका कथित ऑडियो क्लिप भी सामने आया है। यह क्लिप अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और स्थानीय लोगों का दावा है कि इस क्लिप में खिलाड़ी मदद के लिए गुहार लगा रही है। ऐसी घटनाओं से भारत में एक बार फिर रेप को लेकर गुस्सा भड़क गया है।
 
कड़े कानून भी बेकार
 
भारत में रेप को लेकर बहुत कड़े कानून हैं और ऐसे अपराध में मौत की सजा तक का प्रावधान है, फिर भी यहां रेप की घटनाएं कम करने में सरकार और एजेंसियां नाकाम रही हैं। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में भारत में बलात्कार के करीब 32 हजार मामले दर्ज किए थे। यानी हर घंटे में रेप के औसतन चार मामले सामने आए थे।
 
जानकार कहते हैं कि निर्भया कांड के बाद से रेप के मामलों में शिकायत दर्ज कराने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है, हालांकि अब भी रेप के मामलों के वास्तविक आंकड़े, शिकायत में दर्ज मामलों से बहुत ज्यादा हैं। डर और शर्म के चलते अब भी कई महिलाएं इन अपराधों की शिकायत नहीं करतीं और कई मामलों में तो पुलिस की ओर से ही रिपोर्ट नहीं लिखी जाती।
 
कमजोर समुदायों को खतरा
 
दिसंबर, 2019 तक मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले अपराधों के मामले में हत्या के बाद सबसे बड़ा अपराध रेप ही था। इस श्रेणी के कुल अपराधियों में से रेप के अपराधी 12।5 फीसदी थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध की श्रेणी में सबसे बड़ा अपराध रेप है। ऐसे कुल अपराधों में 64 फीसदी मामले रेप के हैं।
 
ऐसे अपराधों के अंडरट्रायल कैदियों में भी सबसे ज्यादा (करीब 60 फीसदी) रेप के आरोप में ही बंद हैं। साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक रेप के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से सामने आए थे। महिलाओं के अपहरण के मामले में भी ये दोनों राज्य सबसे आगे थे। बिहार की हालत भी इस मामले में काफी खराब थी।
 
सेंटर फॉर विमिंस डेवलपमेंट स्टडीज की डायरेक्टर रहीं प्रोफेसर इंदु अग्निहोत्री कहती हैं कि इन इलाकों में कुल क्राइम रेट भी भारत के अन्य हिस्सों से ज्यादा है। ऐसे में महिलाओं के प्रति अपराध का ज्यादा होना डरावना है लेकिन चौंकाने वाली बात नहीं है। इसकी वजह नई उदारवादी अर्थव्यवस्था में छिपी है जिससे कई तरह के सामाजिक भेदभाव में बढ़ोतरी हुई है। इससे सामाजिक और आर्थिक मामले में हाशिए के समुदायों को निशाना बनाए जाने का डर बढ़ा है। इन मामले में ऐसा दिखता है।
 
प्रशासन की भूमिका
 
महिलाएं के प्रति अपराधों का डर भी बढ़ा है। प्रोफेसर इंदु अग्निहोत्री कहती हैं कि इतना ही नहीं, ऐसे मामलों में सरकार और प्रशासन का जानबूझकर अपराध झेलने वाली महिला की अनदेखी करना या उसके प्रति हिंसक रवैया अपनाना परिस्थितियों को और खराब करता है। आए दिन यहां बलात्कार के मामलों में मात्र पहली शिकायत (एफआईआर) दर्ज कराने के लिए धरने और विरोध प्रदर्शन करने की खबरें आती हैं जबकि ऐसे मामलों में तुरंत एफआईआर दर्ज किए जाने को लेकर स्पष्ट कानून हैं।
 
उनके मुताबिक भारत में आम लोग भी इन एजेंसियों के व्यवहार से वाकिफ हैं, जिससे वे इन पर पूरा विश्वास नहीं कर पाते। यह भी मामलों की कम रिपोर्टिंग की वजह है। वह कहती हैं कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने अपने एक बयान में कहा कि पुलिस स्टेशनों में मानवाधिकारों को सबसे ज्यादा खतरा है। ऐसे में पुलिस को संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। यानी ऐसे अपराधों से निपटने में भी पुलिस रिफॉर्म एक जरूरी कदम है।
 
इच्छाशक्ति जरूरी
 
जानकार कहते हैं, पुलिस और जांच एजेंसियों की क्षमता बढ़ाई जा सके तो रेप के मामलों को कम करने में बहुत समय नहीं लगेगा। सामाजिक स्तर पर सोच में भले ही कई दशकों में बदलाव लाया जा सके लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की मदद से ऐसे अपराध तेजी से रोके जा सकते हैं। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ित को जल्द से जल्द न्याय मिले।
 
उनके मुताबिक अगर महिला की शिकायत के बावजूद उसे न्याय नहीं मिला तो उसकी जिंदगी में कई परेशानियां उठ खड़ी होती हैं। भारतीय समाज में लड़की की शादी के इर्द-गिर्द कई टैबू हैं। ऐसे में जल्द न्याय न मिलने से महिला का भविष्य बहुत प्रभावित होता है। कई बार उसे सालोंसाल तमाम तरह के बहिष्करण झेलते हुए काटने पड़ते हैं। हालांकि न्याय मिलने के बाद भी चीजें सामान्य हो जाएंगी, यह तय नहीं रहता।
 
जेलों में सुधार कार्यक्रम
 
जानकारों के मुताबिक पुलिस की जांच की क्षमता बढ़ाए जाने की जरूरत भी है क्योंकि ऐसे मामलों में अपराधी का पकड़ा जाना और उसे सजा दिलाना बहुत जरूरी होता है। लेकिन इन पर सरकार और एजेंसियों का बहुत ध्यान नहीं है। प्रोफेसर इंदु अग्निहोत्री कहती हैं कि कई बार अपराधों से निपटने में स्टैंडर्ड ऑपरेशन प्रोसीजर नहीं फॉलो किया जाता। साथ ही इन अपराधों की जांच करने वाले पुलिस अफसरों की भारी कमी भी है। इतना ही नहीं ऐसे अपराधियों में सुधार के लिए भी कोई प्रक्रिया नहीं है।
 
इंस्टीट्यूट ऑफ करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन, चंडीगढ़ की डिप्टी डायरेक्टर उपनीत लल्ली कहती हैं कि वर्तमान में ऐसा बदलाव लाने के लिए भारत की जेलों में कोई भी कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है। मैंने ऐसे अपराधियों पर एक स्टडी की है जिसके मुताबिक हमें उनकी विकृत धारणाओं में सुधार लाने वाले कार्यक्रमों की जरूरत है। ऐसे सुधारों के लिए लैंगिंक संवेदनशीलता सिखाना जरूरी है। जेलों में रेस्टोरेटिव जस्टिस के कार्यक्रम भी चलाए जाने चाहिए।
 
इसका मतलब यह हुआ कि भले ही महिलाओं के प्रति अपराध के लिए जिम्मेदार समाज की पुरुषवादी मानसिकता में कई सालों में बदलाव लाया जा सके लेकिन सरकार और प्रशासनिक संस्थाओं के संवेदनशील और सक्रिय रहने से इन अपराधों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। हालांकि इस ओर सरकार और प्रशासन का ध्यान नहीं है।

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