बढ़ती जा रही है 'मूनलाइटिंग' पर बहस, विप्रो ने दिखा दिया 300 कर्मचारियों को 'बाहर' का रास्ता

DW
बुधवार, 28 सितम्बर 2022 (08:54 IST)
-प्रभाकर मणि तिवारी
 
कोरोना काल में वर्क फ्रॉम होम यानी घर से काम करने के दौरान आईटी कर्मचारियों में प्रचलित 'मूनलाइटिंग'’ नामक एक नए शब्द ने इस क्षेत्र में एक नई बहस छेड़ दी है। 'मूनलाइटिंग' के जुर्म में आईटी कंपनी विप्रो ने हाल में अपने 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। कई अन्य कंपनियों ने भी अपने कर्मचारियों को इससे बाज आने या नौकरी से हाथ धोने की चेतावनी दी है।
 
किसी व्यक्ति की ओर से एक कंपनी में नौकरी करते हुए किसी दूसरे नियोक्ता के यहां चोरी-छिपे काम करने की स्थिति में उसे 'मूनलाइटिंग' कहा जाता है। आमतौर किसी कर्मचारी की ओर से सुबह 9 से शाम 5 बजे तक की नौकरी के बाद दूसरी नौकरी की जाती है। इसलिए इसे 'मूनलाइटिंग' नाम दिया गया है। अब केंद्रीय केंद्रीय सूचना तकनीक और कौशल विकास मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने भी 'मूनलाइटिंग' का समर्थन किया है। हालांकि साथ ही उनका कहना है कि इससे मूल कंपनी को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।
 
आखिर क्या है 'मूनलाइटिंग'?
 
जब कोई कर्मचारी अपनी नियमित नौकरी के साथ ही चोरी-छिपे दूसरी जगह भी काम करता है तो उसे तकनीकी तौर पर 'मूनलाइटिंग' कहा जाता है। यह दूसरी नौकरी रात में की जाती है। इसलिए यह शब्द 'मून' यानी चन्द्रमा से गढ़ा गया है। पहले आमतौर पर कम सैलरी वाले लोग अतिरिक्त आय के लिए ऐसा करते थे लेकिन अब अच्छी सैलरी पाने वाले आईटी सेक्टर के कर्मचारी भी ऐसा कर रहे हैं।
 
कोरोना महामारी के समय कर्मचारियों के घर से काम करने के दौरान 'मूनलाइटिंग' का ट्रेंड बढ़ा। लोग अपनी नौकरी के साथ ही दूसरी परियोजनाओं पर भी काम करने लगे। कुछ लोग कई कंपनियों में एक साथ जॉब करने लगे। लेकिन आईटी कंपनियों की दलील है कि इस वजह से परफॉर्मेंस और कामकाज पर असर पड़ रहा है।
 
अलग-अलग राय
 
इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। कई कंपनियां इसके विरोध में हैं तो कुछ कंपनियों ने इसका समर्थन भी किया है। विप्रो, इन्फोसिस, आईबीएम और टीसीएस जैसी आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां 'मूनलाइटिंग' पर गहरी आपत्ति जता चुकी हैं।
 
'मूनलाइटिंग' पर सबसे पहले बहस शुरू करने वाली आईटी कंपनी विप्रो ने कथित रूप से इसमें शामिल अपने 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। विप्रो के चेयरमैन रिशद प्रेमजी ने सबसे पहले इस मुद्दे पर मुंह खोलते हुए इसे 'धोखा' करार दिया था। उनका कहना था कि 'मूनलाइटिंग' कंपनी के प्रति निष्ठा का पूरी तरह से उल्लंघन है। एक ही समय में विप्रो और उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी के लिए काम करने वाले किसी कर्मचारी के लिए कंपनी में कोई जगह नहीं है।
 
आईटी क्षेत्र की एक अन्य कंपनी इंफोसिस ने भी अपने कर्मचारियों को भेजे ई-मेल में चेताया है कि अगर कोई कर्मचारी 'मूनलाइटिंग' में शामिल पाया गया तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। आईबीएम ने भी 'मूनलाइटिंग' को अनैतिक करार दिया है। आईबीएम के प्रबंध निदेशक (भारत और दक्षिण एशिया) संदीप पटेल की दलील है कि कंपनी में शामिल होने के समय कर्मचारी एक समझौते पर हस्ताक्षर करते हैं कि वे सिर्फ आईबीएम के लिए काम करेंगे। उनके मुताबिक लोग अपने बाकी समय में जो चाहें, कर सकते हैं। लेकिन इसके बावजूद 'मूनलाइटिंग' करना नैतिक रूप से सही नहीं है।
 
समर्थन के स्वर
 
वहीं टेक महिन्द्रा के सीईओ सीपी गुरनानी ने 'मूनलाइटिंग' का समर्थन किया है। उन्होंने हाल में अपने एक ट्वीट में कहा था कि समय के साथ बदलते रहना जरूरी है और मैं काम करने के तरीकों में बदलाव का स्वागत करता हूं। हम जिस माहौल में काम करते हैं, ऐसे प्रावधानों का स्वागत करना चाहिए। साथ ही हमें बदलाव के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
 
इंफोसिस के पूर्व निदेशक और आईटी विशेषज्ञ मोहनदास पई का कहना है कि सूचना तकनीक क्षेत्र में शुरुआती दौर में कम वेतन होना 'मूनलाइटिंग' की एक प्रमुख वजह है। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी के दौरान सब कुछ डिजिटल हो गया है। अगर आप लोगों को बेहतर भुगतान नहीं करते हैं तो अतिरिक्त आय के इच्छुक लोगों के लिए यह अच्छी कमाई का आसान तरीका है।
 
फूड डिलीवरी कंपनी स्विगी ने अपने यहां 'मूनलाइटिंग' को मंजूरी दी है। स्विगी की ओर से कहा गया कि कंपनी के कर्मचारी कामकाजी घंटों के बाद दूसरे प्रोजेक्ट्स के लिए भी काम कर सकते हैं।
 
कैसी-कैसी दलीलें?
 
अब केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी और कौशल विकास राज्यमंत्री राजीव चन्द्रशेखर भी 'मूनलाइटिंग' पर कर्मचारियों के पक्ष में आ गए हैं। उन्होंने कहा है कि कंपनियों की ओर से कर्मचारियों पर बंदिश लगाने का तरीका सफल नहीं हो पाएगा। चन्द्रशेखर ने एक कार्यक्रम में कहा कि वह समय अब बीत गया है, जब कर्मचारी बड़ी आईटी कंपनियों में नौकरी पाने के बाद अपना पूरा जीवन वहीं बिता देते थे। कंपनियों को अपने कर्मचारियों के सपनों को लगाम नहीं लगानी चाहिए। यह प्रयास सफल नहीं होगा।
 
दूसरी ओर, 'मूनलाइटिंग' को सही ठहराने वाले कर्मचारियों की दलील है कि तमाम कंपनियां जब कोरोना का हवाला देकर वेतनवृद्धि और इंसेंटिव के मामले में कंजूसी दिखा रही है, तो हम अपने निजी समय में अतिरिक्त काम क्यों नहीं कर सकते? बेंगलुरु की एक प्रमुख आईटी कंपनी में बीते 7 साल से काम करने वाले कोलकाता के दीपक सेनगुप्ता (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि हम अपनी कंपनी का काम पूरा करने के बाद अपने अतिरिक्त समय में दूसरा काम करते हैं। इसमें किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? क्या हम कंपनी के बंधुआ मजदूर हैं?
 
अर्थशास्त्री प्रोफेसर सुकुमार घोष कहते हैं कि कोरोना काल में कमाई घटने और खर्च बढ़ने के कारण हजारों लोगों ने घर से काम करते हुए अपनी ड्यूटी के बाद फ्रीलांसर के तौर पर दूसरी कंपनियों के लिए काम शुरू कर दिया था। इससे दोनों पक्षों को फायदा था। इन कंपनियों को जहां काम के आधार पर भुगतान करना होता वहीं संबंधित कर्मचारी को कुछ अतिरिक्त आय हो जाती थी। उनका कहना है कि सिर पर मंडरा रही आर्थिक मंदी की तलवार के कारण यह बहस अब और तेज होने का अंदेशा है।

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