पूरे देश में तालाबंदी की वजह से व्यापार ठप है और आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और जरूरी सेवाओं के अलावा कोई भी काम नहीं हो रहा है। ऐसे में कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती शुरू कर दी है।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन की तालाबंदी की घोषणा की थी तब उन्होंने अपने भाषण में कंपनी मालिकों से अपील की थी कि जब तक देश में कोरोना वायरस का प्रकोप है तब तक वे तालाबंदी की वजह से अपने कर्मचारियों के काम पर न आने की वजह से उनका वेतन न काटें। प्रधानमंत्री की अपील मानवीय थी लेकिन तब से ही इस सवाल पर चर्चा शुरू हो गई थी कि क्या सभी तरह की कंपनियां ऐसा करेंगी?
सच्चाई अब धीरे धीरे सामने आ रही है। पूरे देश में तालाबंदी की वजह से व्यापार ठप है और आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन और आवश्यक सेवाओं के अलावा कोई भी काम नहीं हो रहा है। ऐसे में कई कंपनियों ने अपने आर्थिक हित को सुरक्षित करने के लिए अपने कर्मचारियों के वेतन काटने शुरू कर दिए हैं।
32 वर्षीय राजेश सिंह नोएडा में एक स्टार्टअप में काम करते हैं। दो दिन पहले उन्हें उनकी कंपनी ने ईमेल के जरिये बताया कि चूंकि तालाबंदी के दौरान कंपनी की कोई आय नहीं होगी, ऐसे में कंपनी इस अवधि के लिए अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पाएगी। ईमेल में कंपनी ने यह भी कहा कि सिर्फ मार्च के महीने का वेतन मिलेगा और वह भी तालाबंदी खत्म होने के बाद।
यही हाल पुणे के सुमीत दयाल का भी है। 30 वर्षीय सुमीत भी एक स्टार्टअप में काम करते हैं। उनकी कंपनी ने कहा है कि तालाबंदी के दौरान वेतन तो मिलता रहेगा लेकिन बिक्री होने पर वेतन के ऊपर जो प्रोत्साहन राशि या इंसेंटिव मिलता है वो नहीं मिलेगा। सुमीत बिक्री ही देखते हैं और उनकी मासिक कमाई का 80 प्रतिशत इंसेंटिव से ही आता है। यानी उनके लिए कंपनी के इस निर्णय का मतलब एक तरह से वेतन में 80 प्रतिशत की कटौती है।
राजेश और सुमीत की कंपनियां अकेली नहीं हैं। पूरे देश में कई कंपनियों ने इस तरह के निर्णय लेने शुरू कर दिए हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार खाना डिलीवरी करने वाली एक कंपनी ने अपने कर्मचारियों को कहा है कि अप्रैल के वेतन में 25 से 30 प्रतिशत की कटौती होगी। देश की चार बड़ी एकाउंटिंग कंपनियों में से भी कम से कम दो ने अपने कर्मचारियों से वेतन में कटौती के लिए तैयार रहने को कहा है।
असली तस्वीर यही है। कंपनियों की वेतन देने की क्षमता उनकी आय से ही जुड़ी होती है। व्यापार आर्थिक गतिविधि की निरंतरता पर आधारित होता है और जब आर्थिक गतिविधि ही सीमित हो जाए तो व्यापार भी बंद हो जाता है। ऐसे में कौन सी कंपनी आय के बिना भी वेतन दे सकती है?
अर्थशास्त्री अरुण कुमार कहते हैं कि ऐसा सिर्फ उन कंपनियों के लिए संभव होता है जिनका प्रबंधन मजबूत हो क्योंकि वे घाटे में नहीं चल रही होती हैं और जिनके पास रिजर्व्स यानी कुछ अतिरिक्त पैसा होता है।
अरुण कुमार ने डॉयचे वेले से कहा कि बिना आय के वेतन देने पर ऐसी कंपनी भी घाटे में चली जाएगी और वो उम्मीद करेगी कि बाद में सरकार उसे घाटे में से निकाल ले। उनका अनुमान है कि इस समय सामान्य आर्थिक गतिविधि का सिर्फ 20-25 प्रतिशत चल रहा है जिसका मतलब है देश की अर्थव्यवस्था को इस समय हर महीने 14 से 15 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। वो कहते हैं कि ऐसे में सरकार भी निजी कंपनियों की कोई मदद नहीं कर सकती, क्योंकि इन हालात में सरकार सब लोगों के लिए मूल सामान और सुविधाएं सुनिश्चित कर ले तो यह ही बहुत है।