एक दिन चुनाव का, लेकिन जर्मनी से कोई नई खबर नहीं। अंगेला मार्केल जर्मनी की चांसलर बनी रहेंगी। मार्केल को सबक सिकाने के बावजूद मतदाताओं को स्थिरता पसंद है, लेकिन चौथे कार्यकाल में मार्केल के सामने बड़ी चुनौतियां हैं।
चुनाव के नतीजे जर्मन चांसलर के लिए उनके काम की पुष्टि हैं, लेकिन सबक भी हैं। 2013 के चुनावों के मुकाबले उनकी पार्टी ने करीब 10 प्रतिशत वोट खोए हैं और नई संसद में पांच की जगह इस बार सात पार्टियां होंगी। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ गयी है। एएफडी के रूप में दक्षिणपंथी पॉपुलिस्ट पार्टी संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। ये अंगेला मार्केल के लिए नयी चुनौती होगी। चुनाव की शाम ने ये भी दिखाया है कि मार्केल स्पष्ट रूप से हार सकती है, लेकिन फिर भी शासन करना जारी रख सकती हैं, 1949 के बाद से सबसे खराब चुनावी नतीजों के बावजूद।
जमैका की शुरुआत
इसके बावजूद राजनीतिक भूकंप से जर्मनी बच गया। एएफडी के लिए दहाई अंकों में वोट पाने की उम्मीद की जा रही थी और एसपीडी के वोटों में गिरावट की भी। एफडीपी के फिर से संसद में पहुंचने के बाद अंगेला मार्केल के सामने अब गठबंधन की दो संभावनाएं हैं। एक तो एसपीडी के साथ महागठबंधन को जारी रखना और दूसरा एफडीपी तथा ग्रीन पार्टी के साथ जमैका गठबंधन बनाना। एसपीडी ने गठबंधन से इनकार कर दिया है। पार्टी विपक्ष में बैठेगी। जर्मनी में पार्टियों को रंगों से पहचाने जाने के कारण सीडीयू के काले, एफडीपी के पीसे और ग्रीन के गरे रंग को जमैका कहा जाता है क्योंकि जमैका के झंडे का रंग यही है। जर्मनी के इतिहास में इन पार्टियों का ये पहला गठबंधन होगा। इसके अलावा ये जानकारी कि कोई परीक्षण नहीं। जर्मनी इस चुनाव के बाद भी वही रहेगा जो था।
चौथा कार्यकाल
अब एक बार फिर मार्केल के और चार साल, यदि वे डटी रहें तो। लेकिन संयम दिखाने वाली प्रोटेस्टेंट राजनेता को कर्तव्यपरायण माना जाता है। वो जो कुछ शुरू करती हैं उसे पूरा भी करती हैं। लेकिन कैसे?
इस पद पर पहली महिला और लंबे समय से देश की सरकार प्रमुख रहने वाली मार्केल ने अपने तीन कार्यकाल के बाद ही इतिहास की किताबों में जगह बना ली है। लेकिन कुछ स्थायी छोड़कर जाने के लिए अभी असली काम होना बाकी है। देश के पहले चांसलर कोनराड आडेनावर ने पश्चिमी जर्मनी को पश्चिमी लोकतंत्रों के साथ जोड़ा। विली ब्रांट ने अपनी ओस्ट पोलिटिक की मदद से शीतयुद्ध के समय साम्यवादी देशों के साथ नजदीकी लायी। हेल्मुट कोल ने देश का एकीकरण कराया तो गेरहार्ड श्रोएडर ने कल्याणकारी संरचना को आधुनिकीकरण किया। मार्केल के लिए क्या बचा है?
सबके आश्चर्य में डालते हुए मार्केल ने 2015 में देश की सीमाएं करीब 10 लाख शरणार्थियों के लिए खोल दी। लोगों की संवेदनाओं और नाराजगी के बीच उन्होंने अपनी नीति जारी रखी। उन्होंने शरणार्थियों की वार्षिक संख्या की सीमा तय करने की मांग ठुकरा दी और संविधान को शब्दश- लिया जिसमें शरण के अधिकार की कोई सीमा नहीं है। अब उन्हें इस चुनौती से निबटना होगा, जो रह जायेंगे उन्हें समाज में समेकित करना होगा, फर्जी शरणार्थियों को वापस भेजना होगा।
सबसे अच्छा अंत में
एक चुनौती यूरोपीय संघ है। यूरोपीय परिवार में इस समय सब कुछ ठीकठाक नहीं है। ऐतिहासिक सौतेला बच्चा ब्रिटेन अब यूरोपीय संघ से बाहर निकल कर भूमंडलीकृत दुनिया में अपनी जगह खोजना चाहता है। ये मार्केल के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन ईयू के दक्षिणी देश भी जर्मनी के बचत के फैसले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। हालांकि मार्केल को यूरोपीय विचारों की संरक्षक माना जाता है लेकिन कर्ज में डूबे ईयू के सदस्य देश महसूस करते हैं कि ताकतवर जर्मनी उन पर दबाव डाल रहा है। उन्हें संगठन को साथ रखना होगा, नहीं तो राष्ट्रीय राज्यों की मांग जोर पकड़ लेगी।
इसी तरह जर्मनी के आसपास महात्वाकांक्षाओं की रुझान भी मार्केल के कंधे पर भारी बोझ है। सिर्फ डॉनल्ड ट्रंप ही अपने अमेरिका को महान नहीं बनाना चाहते, रूस के व्लादीमिर पुतिन और तुर्की के रेचेप तय्यप एर्दोवान भी दिखावे की राजनीति चला रहे हैं। अंगेला मार्केल को इस बीच ट्रंप विरोधी माना जाने लगा है। वे घुटने टेके बिना उकसावों का सामना कर सकती हैं। अब उन्हें कोई नजर अंदाज नहीं करता।