अफगानिस्तान में काफी नुकसान पहुंचा चुके चिपकने वाले बमों का अब कश्मीर में इस्तेमाल किया जा रहा है। इन्हें गाड़ियों पर चिपका कर दूर से विस्फोट किया जा सकता है, लेकिन कश्मीर में ये बम आखिर आ कहां से रहे हैं?
यह बम आकार में छोटे लेकिन काफी शक्तिशाली होते हैं। इनमें चुंबक लगा होता है जिसकी मदद से इन्हें गाड़ियों पर आसानी से चिपकाया जा सकता है और फिर दूर से ही विस्फोट किया जा सकता है। कश्मीर में दशकों से चल रही इंसर्जेन्सी का सामना कर रहे सुरक्षा बल इस नए खतरे को लेकर चिंतित हैं। 3 वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि प्रदेश में हाल ही में मारे गए छापों में ये बम पाए गए।
कश्मीर के पुलिस प्रमुख विजय कुमार ने बताया कि ये काफी शक्तिशाली आईईडी होते हैं और ये निश्चित ही मौजूदा सुरक्षा माहौल पर असर डालेंगे, क्योंकि इस समय घाटी में पुलिस और सुरक्षा बालों की गाड़ियां काफी ज्यादा संख्या में मौजूद हैं और वो कई बार इधर से उधर जाती हैं। फरवरी में सिर्फ एक ही छापे में ऐसे 15 बम मिले थे और इससे यह चिंता बढ़ रही है कि भारत-पाकिस्तान विवाद में अब एक एक ऐसा हथियार आ गया है जिसका काफी परेशान करने वाला इस्तेमाल अफगानिस्तान में तालिबान कर चुका है।
बीते कुछ महीनों में अफगानिस्तान में सुरक्षा बलों, जजों, सरकारी अधिकारियों, ऐक्टिविस्टों और पत्रकारों पर इस तरह के बमों से कई हमले हुए हैं। इनमें से कुछ हमले तब हुए जब हमलों के शिकार बीच सड़क पर ट्रैफिक में थे। इनसे आम लोगों का मारा जाना तो कम हुआ है लेकिन लोगों के अंदर डर पैदा हो गया है। कश्मीर में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि प्रदेश में जो भी इस तरह के बम बरामद हुए हैं वो इस इलाके में नहीं बने थे। उनका इशारा था कि बम पाकिस्तान से लाए जा रहे हैं।
नाम ना बताने की शर्त पर उन्होंने बताया कि सारे बम या तो ड्रोनों से गिराए गए हैं या सुरंगों के जरिए लाए गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि ये बम ज्यादा चिंता का विषय इसलिए बने हुए हैं क्योंकि इन्हें चुंबकों की मदद से गाड़ियों पर चिपकाया जा सकता है। इससे आतंकवादी घाटी में नियमित रूप से इधर से उधर जाने वाली सेना की गाड़ियों को भी निशाना बना सकते हैं।
पुलिस प्रमुख विजय कुमार ने बताया कि नए खतरे से निपटने के लिए सुरक्षाबल अपने प्रोटोकॉल बदल रहे हैं। नए कदमों के तहत अब निजी और सैन्य गाड़ियों के बीच के फासले को बढ़ा दिया गया है, गाड़ियों पर और ज्यादा कैमरे भी लगा दिए गए हैं और काफिलों की निगरानी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है। कश्मीर के आतंकवादियों और अफगानिस्तान के तालिबान में एक फर्क यह है कि तालिबान शहरी और ग्रामीण इलाकों में अच्छी तरह से घुसने में सक्षम हैं।
इसके साथ साथ बम आसानी से मिल जाने के कारण इन बमों से काफी खतरा पैदा हो जाता है। तालिबान ने शुरू में माना भी था की कुछ हमलों के पीछे उसी का हाथ था, लेकिन बाद में वो अपने दावों से मुकर गया। लंदन के एसओएस विश्वविद्यालय में वरिष्ठ लेक्चरर अविनाश पालीवाल ने बताया कि तालिबान के पास उसके शिकार हैं, वो उन तक पहुंच सकता है और बेरहमी से उन्हें मार सकता है। हमले का यह पूरा ढांचा और इसे बार बार दोहराया जाना इन बमों को असरदार बनाता है। कश्मीर में, इतनी आसानी से यहां से वहां जाना और इस तरह के हमलों को कर पाने की गुंजाइश सीमित है।