एमएस धोनी की जिंदगी का सबसे बड़ा फैसला...

सीमान्त सुवीर
वक्त-वक्त की बात है...जो रूतबा आज विराट कोहली ने हासिल कर रखा है, वही रूतबा कभी महेन्द्रसिंह धोनी का हुआ करता था और भारतीय क्रिकेटप्रेमी धोनी के नाम की माला जपते नहीं थकते थे। उनका नाम जेहन में आते ही एक विस्फोटक बल्लेबाज की तस्वीर आंखों के सामने तैर जाती थी। उन्होंने अपने क्रिकेट करियर के महज शुरुआती चार साल के भीतर अपनी चमकदार और विश्वासभरी पारियों से दुनियाभर के क्रिकेटरों को अपना दीवाना बना दिया था। ठीक उसी तर्ज पर जैसे आज विराट की तूती बोलती है।
नए साल 2017 की 4 जनवरी के दिन रांची के इस हरदिल अजीज क्रिकेटर ने एक बड़ा फैसला लेते हुए टीम इंडिया की वन-डे और टी20 की कप्तानी छोड़ दी। उनके इस फैसले से ज्यादा हैरत नहीं हुई क्योंकि इंग्लैंड के खिलाफ टीम इंडिया का चयन किए जाने के पहले ही माना जा रहा था कि विराट के कंधों पर नई जिम्मेदारी आ सकती है क्योंकि क्रिकेट के मैदान पर उनका जुनून सिर चढ़कर बोल रहा है। 
 
पूरा देश धोनी के फैसले को सम्मान की नजर से देख रहा है :  धोनी ने भारतीय क्रिकेट को जिन ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, वहां से वह फख्र कर सकता है और उनके योगदान को भी कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। उन्होंने क्रिकेट की दुनिया में जो भी मकाम हासिल किया है, वह खुद की मेहनत के बूते हासिल किया। न तो कोई गॉडफादर था और न ही कोई सिफारिश। इस खिलाड़ी की सबसे बड़ी खूबी यह देखने को मिली है कि उन्होंने हर परिस्थिति में खुद को ढालने का प्रयास किया। भारत ने उनकी कप्तानी में 104 वनडे मैच जीते हैं। धोनी ने भारत को 2007 में टी-20 विश्व कप के अलावा 2011 का विश्व कप भी दिलाया है। 
 
भारतीय क्रिकेट का कोहिनूर हीरा : दरअसल भारतीय क्रिकेट को धोनी के रूप में ऐसा 'को‍हिनूर' हीरा मिला, जिसकी चमक समय के साथ-साथ और अधिक निखरती चली गई। धोनी रफ्तार के बाजीगर माने जाते रहे हैं और उन्हें हर काम तेज रफ्तार से करना भाता था। भारतीय क्रिकेट ने वह दौर भी देखा, जब मैदान पर पहुंचते ही उनके बल्ले से जब रनों का सैलाब निकलता था और तब स्टेडियम में जमा हजारों दर्शक रोमांचित हो जाते थे और टीवी पर मैच देख रहे लाखों-करोड़ों लोगों में जोश भर जाता था। 
 
यादगार जीत के लम्हे दिए : धोनी के बाजुओं में गजब की ताकत रही है। वे खुद के लिए रणनीति बनाते थे और अपनी धमाकेदार बल्लेबाजी से अपने आसपास ऐसा आभा मंडल निर्मित कर देते हैं, जिसमें से कोई भी बाहर निकलना नहीं चाहता। क्रिकेट जैसे रोमांच के दीवानों को धोनी ने अपना मुरीद बना दिया है। उन्होंने 2007 में टी-20 विश्व कप में अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए भारतीय टीम को जीत के यादगार लम्हों से रूबरू कराया।
 
ताकत और साहस का मिश्रण : धोनी की ताकत और पैंतरा उन्हें हमेशा दुनिया के विशिष्ट श्रेणी के क्रिकेटरों की कतार में खड़ा करता रहेगा। वे हमेशा मर्दानगीभरी पारी खेलते हैं, जो ताकत और साहस दोनों गुणों से परिपूर्ण होती है। एक समय धोनी का लुक और स्टाइल बॉलीवुड सितारे जैसा रहा, लेकिन क्रिकेट के इस महारथी ने शोहरत के मामले में फिल्मी सितारों को भी पीछे छोड़ दिया था। 
 
छोटी उम्र में बड़ा कमाल : 7 जुलाई 1981 को रांची में जन्मे धोनी ने कम उम्र में ही बहुत कुछ हासिल कर लिया था। आप ताज्जुब करेंगे कि सफलता के घोड़े पर सवार 'माही' ने जब अपने एक दिवसीय क्रिकेट करियर के बाद टी-20 क्रिकेट में पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला तब वे शून्य पर आउट हुए जबकि पहले टेस्ट मैच में वे महज 30 रन का ही योगदान दे सके थे। शुरुआती असफलता ने धोनी में न जाने ऐसी कौन-सी खुन्नस भरी कि बाद में वे जलजला बनकर क्रिकेट बिरादरी में छा गए। 
 
धोनी की बेबाकी : धोनी ने पहला वन-डे मैच 23 दिसंबर 2004 को बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में खेला था, जबकि उन्होंने टेस्ट कैप 2 दिसम्बर 2005 में श्रीलंका के खिलाफ पहनी। उनका पहला ट्‍वेंटी-20 मैच दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ था। 
 
टारजन और जंगली की जलालत : बहुत कम लोगों को याद होगा कि जब लंबी जुल्फें रखने वाले धोनी 2005 में पहली बार श्रीलंका दौरे में टेस्ट मैच खेलने गए थे, तब उन्हें काफी जलालत झेलनी पड़ी थी। मैदान पर जब उतरते थे, तब लंबी जुल्फों के कारण लंकाई दर्शक उन्हें टारजन और जंगली कहकर पुकारते थे। लंका में झेली इसी जलालत ने धोनी के दिल में शोले भड़का दिए और वे क्रिकेट के आकाश पर चमकते सितारे के रूप में छा गए। 
 
इसके बाद तो उन्होंने सफलता के कई मुकाम हासिल किए। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, उम्र उन पर हावी होती चली गई। पहले उन्होंने टेस्ट की कप्तानी छोड़ी और अब वन-डे के साथ ही टी-20 की कप्तानी के भार से भी मुक्त हो गए। दुनिया का दस्तूर है कि वह ऊगते हुए सूरज को ही प्रणाम कर करती है। जिस विराट कोहली के लिए दुनिया पागल है, किसी समय यही दीवानगी का आलम महेन्द्र सिंह धोनी का का हुआ करता था।

बहरहाल, धोनी ने कप्तानी छोड़ी है.. क्रिकेट का मैदान नहीं...कपिल देव जब धोनी को फैसले को सलाम कर सकते हैं, तो जाहिर है हर भारतीय क्रिकेटप्रेमी भी उन्हें 'सैल्यूट' करेगा...धोनी की भी मंशा यही रही होगी कि वे विराट कोहली वनडे की कमान सौंपना चाहते हों, लिहाजा उन्होंंने खुद को कप्तानी के दबाव से मुक्त कर लिया हो... 
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