आम बजट में सबको खुश करने की चुनौती

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नई दिल्ली। कालेधन पर प्रहार के उद्देश्य से की गई नोटबंदी के बाद पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से ऐन पहले मोदी सरकार बुधवार को अपनी तीसरा पूर्ण एवं ऐतिहासिक आम बजट पेश करेगी जिसमें हर वर्ग को खुश करने, रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था में तेजी बनाए रखने की बड़ी चुनौती होगी। रेल बजट भी 92 वर्ष बाद आम बजट हिस्सा बनेगा।
 
वित्तमंत्री अरुण जेटली कल मोदी सरकार का पूर्ण तीसरा बजट पेश करेंगे। पहले बजट 28 फरवरी को पेश करने की परंपरा थी, लेकिन मोदी सरकार ने बजट में की जाने वाली घोषणाओं को 1 अप्रैल से लागू करने के उद्देश्य से इसे करीब एक महीना पहले पेश करने की शुरुआत की है। इसमें रेल बजट को समाहित कर दिया गया है और अब अलग से रेल बजट पेश नहीं किया जाएगा।
 
नोटबंदी के कारण हर वर्ग सरकार से बहुत उम्मीद लगाए हुए हैं। गरीब, किसान, उपेक्षित एवं नौकारीपेशा के साथ ही उद्योग जगत को भी इस बजट से बड़ी उम्मीदें हैं। नौकरीपेशा लोग जहां आयकर छूट की सीमा में बढ़ोतरी का सपना संजोए बैठे हैं, वहीं किसानों को ऋणमाफी एवं कृषि उपकरण तथा बीज सस्ता होने के उम्मीद है। गरीबों की हिमायती होने का दावा कर रही मोदी सरकार से इस वर्ग को सबसे अधिक तव्वजो देने का अनुमान जताया जा रहा है।
 
नोटबंदी के कारण देश के आर्थिक विकास पर भारी दबाव है। सरकार ने इसकी वजह से अगले वित्त वर्ष में आर्थिक विकास 6.75 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान जताया है। हालांकि इसके लिए उसने वैश्विक घटनाक्रम को भी जिम्मेदार ठहराया है। आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए तंत्र में तरलता बढ़ाने के साथ ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी उपभोग में बढ़ाए बिना औद्योगिक गतिविधियों को रफ्तार नहीं दी जा सकती है।
 
अर्थशास्त्रियों एवं विशेषज्ञों का कहना है कि एक देश-एक कर और एक देश-एक बाजार की अवधारणा पर आधारित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को 1 जुलाई से लागू करने के मद्देनजर सेवा कर में बढ़ोतरी की जा सकती है। नौकरीपेशा लोगों के लिए आयकर में छूट की सीमा बढ़ाकर तीन लाख रुपए की जा सकती है। इसके साथ ही वर्ष 2022 तक हर परिवार को घर उपलब्ध कराने का लक्ष्य हासिल करने के लिए किफायती आवास क्षेत्र को राहत मिल सकती है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 9 लाख रुपए और 12 लाख रुपए तक के आवास ऋण पर ब्याज में छूट की घोषणा पहले की कर चुके हैं।
 
विपक्षी दल विशेषकर कांग्रेस ने अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं और आर्थिक विकास को रोजगारविहीन बता चुकी है। हालांकि सरकार इस आरोप को खारिज करती रही है, लेकिन नोटबंदी के बाद असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी है। नकदी की तंगी की वजह से दैनिक मजदूरी करने वालों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या है।
 
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक राशि जुटाने के उद्देश्य से एक करोड़ रुपए से अधिक आय वालों पर अधिभार बढ़ा सकती है। इंफ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में जान फूंकने की कोशिश की जा सकती है। इसके बीच निजी निवेश में तेजी लाने के लिए उद्योग जगत को कुछ राहत मिल सकती है। कंपनियों को अभी कुल मिलाकर 30 फीसदी कर और 12 प्रतिशत अधिभार चुकाना होता है। सरकार पहले ही इसे कम कर 25 फीसदी पर लाने का वादा कर चुकी है, लेकिन इस दौरान उनको मिल रही छूट भी वापस की जा सकती है। 
 
नोटबंदी के बाद देश को डिजिटल अर्थव्यवस्था में बदलने और लेसकैश वाला देश बनाने के उद्देश्य से डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया जा सकता है और नकद लेन-देन को हतोत्साहित किया जा सकता है। डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सुझाव देने के लिए आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडु की अध्यक्षता वाली समिति भी इसके लिए कई सिफारिशें कर चुकी है जिनमें से कुछ को सरकार बजट में शामिल कर सकती है। (वार्ता) 
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