सभी सागरों की गहराई अलग-अलग मानी गई है। हालांकि महासागरों की गहराई का रहस्य अभी भी बरकरार है। समुद्र की गहराई बेहद ठंडी, अंधेरी होती है और कभी-कभी तो ज्यादा दबाव के कारण यहां ऑक्सीजन भी काफी कम हो जाती है। धरती पर जितना दबाव महसूस होता है, समुद्र की गहराइयों में यह 1,000 गुना ज्यादा होता है। इतना ज्यादा दबाव कि बायोकैमेस्ट्री भी यहां फेल हो जाए। इस दबाव की सचाई यह है कि समुद्र की तलहटी में रहने की 1 प्रतिशत से भी कम जगहों का अभी तक पता चला है, जहां जीव और जंतु रहते हैं।
1. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार मशहूर हॉलीवुड निर्देशक जेम्स कैमरन समुद्र के उस हिस्से में जाकर वापस आए हैं जहां कोई नहीं गया था। सन 2012 में उन्होंने पश्चीमी पेस्फ़िक में सबसे गहरे स्थल मरियाना ट्रेंच में 11 किलोमीटर गहराई तक गोता लगाया है। नीचे पहुंचने में उन्हें 2 घंटे से ज्यादा का समय लगा। वे डीप सी चैंलेजर नाम की पनडुब्बी में गए थे जिसे ऑस्ट्रेलिया में बनाया गया था। उन्होंने समुद्र तल पर लगभग 3 से ज्यादा घंटे बिताए। इस तरह का अभियान केवल एक बार 1960 में हुआ था जब दो लोग इस गहराई में उतरे थे।
2. डायचे वेले की एक रिपोर्ट के अनुसार सन 2011 में चीन में 'जिआओलोंग' नाम की एक पनडुब्बी को 4,027 मीटर (13,211) फुट की गहराई तक नीचे उतारा था। इंजीनियरों के मुताबिक जिआओलोंग 7,000 मीटर की गहराई तक जा सकती है।
3. दुनिया के सबसे गहरे समुद्र में जाने का रिकॉर्ड फिलहाल अमेरिका के नाम है। 1960 में अमेरिकी नौसेना की मानव चालित पनडुब्बी मरिआना ट्रेंच 11,000 मीटर की गहराई पर पहुंची। मरिआना ट्रेंच दुनिया की सबसे गहरी जगह है।
4. कुल मिलाकर, समुद्र बहुत गहरा होता है। हालांकि, इसका तल समतल या एक समान नहीं है, जिसका अर्थ है कि समुद्र में पानी की गहराई भी भिन्न होती है। महासागर की सबसे गहरी जगह 11,034 मीटर (36,201 फीट) मापी गई है और यह प्रशांत महासागर की मारियाना ट्रेंच में चैलेंजर डीप नामक स्थान पर है। हैरानी वाली बात यह है कि या स्तर भी समुद्र का अंतिम स्तर नहीं है क्योंकि साइंटिस्ट अभी तक समुद्र का सिर्फ 5% का अनुमान लगा पाए हैं बाकी के 95% अभी भी बाकी है।
5. कहते हैं कि धरती के जिस भाग पर समुद्र नहीं है उसे तोड़कर यदि समुद्र में डाल दिया जाए तो भी जगह खाली रह जाएगी।
समुद्र की गहराई को फाथोम में मापा जाता है, प्रत्येक का अनुमान छह फीट है। गहरे समुद्र/महासागरों में फाथोमोमीटर का प्रयोग किया जाता है। इकोसाउंडिंग सिस्टम से भी समुद्र की गहराई को नापा जाता है। उल्लेखनीय है कि सूर्य की रोशनी समुद्र में नीचे लगभग 400 मीटर तक जा सकती है।