जिद पर भगवानदास की सलाह

Webdunia
मंगलवार, 24 फ़रवरी 2009 (13:42 IST)
हे भगवान, कुछ ऐसा करो कि कल मेरा सिर सबसे पहले वहाँ पहुँचे। मेरी ऊँचाई पंपू जितनी बढ़ा दो, ताकि गोल मैं ही कर सकूँ और पंपू मुझे बेसिरपैर नहीं कह सके। भगवान मेरी मदद करो। मैं तुम्हें हर हैडर पर एक पाव लड्डू चढ़ाऊँगा।

प्रार्थना करने के बाद पप्पूप्रकाश आदरभाव के साथ सिरहाने को भगवान मानकर धीरे से बिस्तर पर पसर गया। रात को सोने से पहले कमरे की बत्ती बुझाकर भगवान की प्रार्थना करना उसका रोज का नियम था। वह सातवीं-बी का सबसे अच्छा छात्र था। पढ़ाई में अव्वल, होमवर्क मेंनियमित, अटेंडेंस में सौ प्रतिशत। उसका अपना कमरा, कम्प्यूटर और नई साइकल भी थी।

उसकी उदासी का एक ही कारण था कि वह सिर से फुटबॉल को मार नहीं पाता था। पैरों से वह गेंद को खूब नचा लेता था। बस, उछलकर हेडर कभी नहीं मार पाया था। पंपू फुटबॉल टीम काकप्तान था और उसका अच्छा दोस्त भी। हेडिंग की कमजोरी और फुटवर्क की खासियत के कारण खेल के मैदान में पंपू उसे बेसिरपैर कहता था। पंपू उससे कुछ इंच ऊँचा था। इसीलिए वह हेडर से अच्छे गोल कर लेता था। यही कारण था कि पप्पूप्रकाश पंपू जितना ऊँचा होना चाहता था।

आँख लगने तक बिस्तर पर पड़े-पड़े वह रोज तरह-तरह के उपाय सोचता और प्रार्थना की नई-नई इबारत गढ़ता रहता। नींद में भी उसे इसी के सपने आते। आज वह देख रहा था कि उसे गोलकीपर के रूप में स्कूल की टीम में चुन लिया गया है। उसके हाथ इतने लंबे हो गए हैं कि वह गोलपोस्ट के दोनों खंभों को एक साथ पकड़ सकता है। वह बड़बड़ाने लगा कि उसे गोलची नहीं बनना है... नहीं बनना है। तभी कमरे में प्रकाश फैल गया और उसने सुना कि उसे आवाज दी जा रही है।

' पप्पूप्रकाश जल्दी उठो।' 'पापा, सुबह हो गई क्या? ' पप्पूप्रकाश ने हकबकाकर पूछा। 'नहीं, मैं तुम्हारा पिता नहीं हूँ। लेकिन उठो और मुझसे बात करो।' पप्पूप्रकाश ने आँखें खोलकर देखा था तो वहाँ कोई नहीं था। उसने आँखें झपकाकर देखा तो भी रोशनी गई नहीं और सुबह भी हुई नहीं थी। यह सपना नहीं था। यह तो अबू बेन आदम की कविता की तरह कोई तिलस्मी माजरा लग रहा था। 'हाँ, तो बताओ हर रात तुम हमारी प्रार्थना क्यों करते हो?' वह आवाज इतनी भारी थी मानो दस हेडमास्टर एक साथ बोल रहे हों।

' अच्छा तो तुम भगवान हो?' पप्पूप्रकाश खुशी से उछल पड़ा। 'नहीं, मैं भगवानदास हूँ। भगवानजी के पास इतना समय नहीं है कि वे हर बच्चे से रूबरू मिले। तुम्हारा मामला निपटाने के लिए उन्होंने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। अदृश्य भगवानदास की आवाज आई। पप्पूप्रकाश ने जल्दी-जल्दी अपनी समस्या भगवानदास को बताई।

' तो तुम इसलिए ऊँचा होना चाहते हो कि सिर से फुटबॉल को...' अभी भगवानदास ने बात पूरी नहीं की थी कि पप्पूप्रकाश ने हड़बड़ी में उसमें जोड़ा कि 'ऊँचा नहीं होगा तो क्लास का मॉनिटर भी नहीं बन पाएगा।'

' ऊँचे-पूरे बनकर तुम सबको डराना चाहते हो?' भगवानदास फिर शुरू हो गया। 'तुम अच्छे बच्चे हो इसलिए मैं तुम्हें सलाह दूँगा कि...' बात काटते हुए पप्पूप्रकाश फिर बोल पड़ा कि 'मुझे सलाह नहीं, ऊँचाई चाहिए सरजी।'

' ठीक है, तुम्हें जो चाहिए वही मिलेगा। लेकिन अक्ल या समझ हमेशा...।' 'अक्ल मैं बाद में समझ लूँगा अभी मुझे सिर्फ कद चाहिए।'

अब भगवानदास भी उकता गया था। तो उसने कहा- 'ठीक है। भगवानजी तुम्हें वही देंगे, जिसकी तुम्हें सबसे ज्यादा जरूरत है।' अगले दिन सुबह जैसे ही पप्पूप्रकाश की नींद खुली, उसने पहला काम अपनी हाइट नापने का किया। 5 फुट 3 इंच। यह तो उतनी की उतनी ही है। अपनी ऊँचाई को बढ़ी हुई न पाकर उसे कुछ निराशा हुई। उसे विश्वास था कि भगवान उसकी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे। यकायक हाइट बढ़ जाए तो सबको संदेह हो जाएगा। शायद इस कारण कद धीरे-धीरे बढ़ेगा। स्कूल जाने के समय पप्पूप्रकाश ने यूनीफॉर्म की नेकर पहनी तो उसे लगा कि वह कुछ छोटी लग रही है यानी वह ऊँचा होना शुरू हो गया है।

अपने इस सनसनीखेज राज के कारण आज पप्पूप्रकाश का मन कक्षा में नहीं लग रहा था। उसे तो इंतजार था स्पोर्ट्‌स पीरियड का। कब वह मैदान में उतरे, कब वह अपने हेडर से सबको चकित कर दे। घंटी बजी और वह उछलते हुए सबसे पहले मैदान में पहुँच गया। पप्पूप्रकाश इतना उत्तेजित था कि उसका उछलना थम ही नहीं रहा था। 'ऐ बेसिरपैर' पंपू ने उसे टोका, 'पहले प्लान समझ ले। तुम गोल के आसपास ही रहना। गेला पेले बाइसिकल किक मारेगा और मैं हेड करूँगा। गफलत में गेंद नीचे गिर गई तो तुम पैरों से उसे गोल के अंदर कर देना।

उनका साथी ललित पेले की तरह अनोखी उल्टी किक मारता था, किंतु पंपू की राय में वह एकदम लल्लू यानी एबला था। पप्पूप्रकाश जानता था कि पंपू की प्लानिंग एकदमसही होती है, परंतु आज वह उसे चौंकाने वाला था। थोड़ी ही देर बाद गेले पेले ने किक लगाई और बॉल पप्पूप्रकाश कीओर आती दिखी। हेड करने के लिए वह तैयार हुआ, लेकिन बीच में अचानक पंपू का सिर आया और उसने फुटबॉल को गोल की तरफ हेड कर दिया। पप्पूप्रकाश निराश होकर पलट गया। तभी उसे हवा में एक सनसनी महसूस हुई। 'गोलऽऽ' की जगह 'हेड... 'हेड...' की आवाजें सुनाई दीं।

उसने मुड़कर देखा तो पंपू की हेड की हुई बॉल गोलपोस्ट से टकराकर उसकी ओर आती नजर आई। पप्पूप्रकाश लपककर उछला और उसने बॉल को सिर से गोल में दे मारा। उसका सिर भन्ना गया और वह पीठ के बल जमीन पर आ गिरा। टीम के सारे खिलाड़ियों ने उसे हाथ देकर झटके से खड़ा किया और उसकी पीठ ठोंकने लगे। हेडर पर हेडर और वह भी पप्पूप्रकाश ने किया। पंपू ने आकर उसकी पीठ पर धौल जमाई और पहली बार बेसिरपैर की जगह पप्पूप्रकाश नाम से पुकारा।

दूसरा मौका बहुत ही जल्दी आया। पंपू ने उम्मीद नहीं की थी इतनी जल्दी। वह बहुत दूर था और पप्पूप्रकाश एकदम ठीक जगह पर। पप्पूप्रकाश ने बगैर चूके बॉल को फिर गोल में हेड कर दिया। इस बार वह गिरा नहीं और सिर में होने वाली झनझनाहट का उसे मजा आया। समय खत्महोने से कुछ समय पहले दूर जाती हुई बॉल को पप्पूप्रकाश ने तीसरी बार हेड करके एक और गोल बना डाला। साथियों के हैटट्रिक.. हैटट्रिक... चिल्लाने से उसे ध्यान में आया कि आज उसने क्या कारनामा कर डाला है। वह मन ही मन खुश था कि भगवान ने उसकी बात रख लीथी।

शाम को छुट्टी होने के बाद ट्रेनर सर ने पप्पूप्रकाश से कहा कि तुम काफी प्रतिभाशाली हो। अपनी क्लास की स्तर से कहीं अच्छे। तुम्हें तो पंपू की तरह सीनियर बॉइज के साथ ट्रेनिंग पर आना चाहिए। पंपू ने उनकी बात बढ़ाते हुए कहा कि यह मुझसे भी बेहतर है, क्योंकिमैं केवल हेडिंग में अच्छा हूँ, इसका तो फुटवर्क भी अच्छा है। अब पप्पूप्रकाश को लगने लगा कि उसका दोस्त कितना उदार है और वह उसके साथ धोखा कर रहा है।

आज खेल के मैदान में जो भी हुआ उसमें भगवान उसके साथ थे इसलिए हुआ। उनकी सहायता के बगैर वह कुछ नहींकर सकता था। यह रहस्य उसे ट्रेनर सर को बता देना चाहिए। डरते-सहमते पप्पूप्रकाश ने ट्रेनर सर को बताया कि उसकी हैटट्रिक का एक राज है। यह कि आज वह अपना सिर कुछ ऊँचा महसूस कर रहा है। ट्रेनर सर ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा कि बिलकुल ठीक कहते हो। सफलता का यही राज है। तुम जो भी करना चाहते हो उसमें अपने आपको सक्षम और ऊँचा समझो। तुम अपने गोल तक पहुँचकर रहोगे। जो अपना लक्ष्य पहचानकर साधना करता है, भगवान उसकी सहायता करता है।

पप्पूप्रकाश को अचानक सारी बात समझ में आती लगी। ठीक ही तो है। सारा कुछ अपनी समझ का फेर है। भगवान ने उसे वही दिया, जिसकी उसे सबसे अधिक आवश्यकता थी। पप्पूप्रकाश की हैटट्रिक से खुश होकर पापा शाम को एक किलो लड्डू ले आए। उनकी समझ में यह नहीं आरहा था कि पप्पूप्रकाश केवल तीन पाव लड्डू का आग्रह क्यों कर रहा है। बेसिरपैर की जिद करता है यह लड़का, उन्होंने मन ही मन कहा।

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