शहंशाह अकबर ने एक बार सभी दरबारियों को भोज दिया, बीरबल पर उनका प्यार कुछ ज्यादा, उन्होंने विशेष आग्रह करके उन्हें खिलाया। अब बीरबल खा-खाकर हो गए परेशान, तो बोले अब नहीं है मेरे पेट में जगह श्रीमान। अब और नहीं खा सकूँगा, आपकी आज्ञा मान नहीं सकूँगा। तभी एक सेवक आम काटकर एक प्लेट में लाया, देखकर बीरबल का मन ललचाया।
बीरबल ने हाथ बढ़ाकर, आम की फाँकें उतार ली पेट में अंदर। बीरबल को आम खाता देखकर शहंशाह को गुस्सा आया, उन्होंने गरज कर बीरबल को बुलाया। बीरबल खड़े हो गए अकबर के सामने जाकर, फिर बोले हाथ जोड़कर-'जब बहुत भीड़ होती है रास्ते पर, और निकलने की नहीं होती जगह तिल भर। आपकी सवारी को होता है वहाँ से गुजरना, तो अपने आप सबको होता है आपको जगह देना।
उसी तरह महाराज, आम भी करता है सभी फलों पर राज। जिस तरह आप हैं शहंशाह, वैसे ही आम भी है शाहों का शाह, तो कैसे नहीं देगा पेट उसे पनाह? जवाब सुनकर अकबर मान गए बीरबल की बुद्धिमानी का लोहा, मँगवाया उन्होंने मीठे आमों का एक टोकरा। बहुमूल्य भेंट दी बीरबल को उस टोकरे के साथ, बीरबल बहुत खुश थे पाकर यह मीठा उपहार।