कॉलोनी के कुछ लड़के-लड़कियां ढोल की धुन पर नाचते-गाते आ रहे थे। उस शोरगुल से मम्मी-पापा की बहस रुक गई। कुछ देर बाद उन दोनों का ध्यान गैलरी की ओर गया।
जमीन पर चिंटू की पिचकारी पड़ी थी पर वह वहां नहीं था। मम्मी गैलरी की ओर दौड़ पड़ी। उनके पीछे-पीछे पापा भी वहां आ गए।
उन्होंने देखा कि सड़क पर चिंटू मस्ती से झूम रहा है... ढोल की थाप पर नाच रहा है... लड़के-लड़कियां उसके चारों ओर गोला बनाकर खड़े हैं और तालियां बजा रहे हैं। वह दृश्य देखकर उनका मन आनंदित हो उठा था। दोनों एक पल के लिए भूल गए कि पिछले पंद्रह मिनट से उनके बीच बहस छिड़ी हुई थी!
नाचते-नाचते चिंटू का ध्यान गैलरी की ओर चला गया। वहां मम्मी को खड़ा देखकर उसके थिरकते हुए हाथ-पांव एकाएक रुक गए। वह घर की ओर दौड़ पड़ा।
चिंटू घर में प्रवेश करते ही आश्चर्यचकित रह गया। मम्मी के हाथ में उसकी पिचकारी थी। वे पापा को रंग रही थीं और पापा उनके हाथ से पिचकारी छीनने का प्रयास कर रहे थे। पिचकारी जमीन पर गिर पड़ी। चिंटू ने उसे उठाया और मम्मी पर रंग डालने लगा।
पिचकारी का रंग खत्म होते ही पापा बोले- 'बेटा! तुझे धन्यवाद... जो काम मैं वर्षों से नहीं कर पाया, वह आज तुमने कर दिखाया...। तुमने मम्मी को सिखा दिया कि होली कितने आनंद का त्योहार है...!' यह सुनकर मम्मी मुस्कुरा रही थी और चिंटू का चेहरा चमक उठा था।