हिन्दी कविता : एक अजनबी होता शहर...

सुशील कुमार शर्मा
एक शहर मेरा था...
अपनों का बसेरा था... 


 
चार-छ: मकान थे...
गोपाल की दुकान थी...
 
एक पानी की टंकी थी..
एक बीटीआई स्कूल था...
 
एक पुस्तकालय था...
एक झंडा चौक था...
 
एक रामघाट था...
एक डोल ग्यारस थी...
 
एक श्याम टॉकीज थी...
उछह्व महराज की लोंगलता थी…
 
सब गलियां जानी थीं...
सब चेहरे पहचाने थे...
 
बूढ़ों का सम्मान था...
अपनों का भान था...
 
सुख-दु:ख में साथ होते थे...
साथ हंसते थे, साथ रोते थे...
 
आज भी शहर मेरा है...
अजनबियों का बसेरा है...
 
अनगिनत मकान हैं...
बहुत सारी दुकान हैं...
 
पुस्तकालय आज सूना है...
वो ही पानी की टंकी, बीटीआई स्कूल है...
वो ही, झंडा चौक, रामघाट, श्याम टॉकीज, डोल ग्यारस है...
 
लेकिन सब अजनबी-से चेहरे हैं...
दर्द के सपेरे हैं...
 
सब वही है लेकिन कुछ सरक-सा गया...
परिवर्तन तो सुनिश्चित है...
लेकिन उसकी आड़ में कुछ दरक-सा गया...। 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

आंखों को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो इन 4 चीजों को जरूर करें अपनी डाइट में फॉलो

प्रेगनेंट महिलाओं के लिए गजब हैं शकरकंद के फायदे, ऐसे करें डाइट में शामिल

भारत की Coral Woman उमा मणि, मूंगा चट्टानों के संरक्षण के लिए दादी बनने की उम्र में सीखी डाइविंग

ज्यादा नमक खाने से सेहत को होती हैं ये 7 समस्याएं, शरीर में दिखते हैं ये संकेत

क्या गुस्सा करने से बढ़ जाता है Heart Attack का खतरा? जानिए कैसे रहें शांत

सभी देखें

नवीनतम

20 सितंबर : श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्मदिन आज, जानें उनका जीवन और 25 बहुमूल्य कथन

स्टील, एल्युमीनियम और मिट्टी, कौन सा बर्तन है सबसे अच्छा? जानिए फायदे और नुकसान

मंडे ब्लूज़ से हैं अगर आप भी परेशान, तो ये खाएं ये सुपरफूड्स

आपके खाने में कितनी होनी चाहिए Fiber की मात्रा, जानें फाइबर क्या है और क्यों है ये जरूरी

White Discharge से हैं परेशान तो इस बीज का करें सेवन, तुरंत मिलेगी राहत

अगला लेख
More