बाल कविता: भिंडी जैसी मिर्ची

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
भिंडी समझे एक मिर्च को,
खा गए पूरी-पूरी।
जीभ जली तो चिल्लाने की, 
ही थी अब मजबूरी।
 
गए खेत में उस किसान को, 
लगे डांटने भाई।
जिसने भिंडी के जैसे ही, 
मिर्ची वहां उगाई।
 
मिर्ची तो चिकनी होती है, 
भिंडी धारी वाली।
उस किसान ने कहा आपकी, 
मुंडी दिखती खाली।

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