मेहनत से मत घबराना

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दोस्तो,

NDND
आप सभी को क्रिसमस की बधाई। जिस महीने में क्रिसमस आता है उसी में मेरा जन्मदिन भी आता है और मुझे यह बहुत अच्छा लगता है कि सारी दुनिया इस महीने में खुशी मनाती है। मेरा जन्मदिन 28 दिसंबर है और इसके ठीक तीन दिन बाद नए साल की शुरुआत भी होती है तो मेरे सारे दोस्त मुझे जन्मदिन के साथ नए साल की शुभकामना भी देते हैं। दोस्तों, दूसरे सारे लोग आपसे मजेदार बात कहते हैं पर मैं आपको अपने बचपन की कुछ ऐसी बातें बताता हूँ जो आपको मेहनत करने के लिए प्रेरित करेंगी। दोस्तों, मेरा बचपन मुंबई में ही बीता है। हम लोग जिस बड़े विला में रहते थे उससे बिल्‍कुल लगा हुआ ही स्टर्लिंग सिनेमा था पर मैंने कभी सिनेमा में ज्यादा रुचि नहीं ली। मेरा लक्ष्य उस समय पढ़ना था और मैंने उसी तरफ ध्यान देना जरूरी समझा। मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि हमें फिल्म नहीं देखना चाहिए। फिल्में देखना चाहिए पर पहले जरूरी होता है कि हम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें। मैं देखता हूँ कि जिन लोगों के माता-पिता उन्हें कार में घूमने की इजाजत दे देते हैं या मोटर बाइक दिला देते हैं वे बहुत तेजी से मोटर बाइक चलाते हैं। सारा दिन इधर-उधर घूमते रहते हैं और कार या बाइक मिलते ही पढ़ाई की तरफ और भी कम ध्यान देते हैं।

मैं अपनी बात करूँ तो मेरे यहाँ किसी भी चीज की कमी नहीं थी पर फिर भी मुझे हमेशा यह लगता था कि मुझे अपने दम पर कुछ करना है और कुछ बनकर दिखाना है और यह बात लगातार मुझे अच्छा काम करने की प्रेरणा देती थी। अमेरिका में रहने के दौरान मैंने बहुत से काम अपने हाथों से किए ताकि काम करने में कितनी मेहनत करना होती है यह मैं समझ सकूँ। जिंदगी में हमें हर चीज पैसे से नहीं मिलती है और लेना भी नहीं चाहिए। हमें हर काम खुद करने की आदत डालनी चाहिए।

मैंने अपनी पढ़ाई हार्वर्ड (अमरीका) की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट से की थी। आर्किटेक्चर की पढ़ाई के दौरान ही मुझे पता चला कि
  मेरे यहाँ किसी भी चीज की कमी नहीं थी पर फिर भी मुझे हमेशा यह लगता था कि मुझे अपने दम पर कुछ करना है और कुछ बनकर दिखाना है      
मेरी दादी की तबीयत बहुत खराब हो गई है और मैं वापस आ गया। यहाँ कुछ ऐसी बातें हुईं कि मैं फिर से वापस विदेश नहीं जा पाया। पर जो हुआ वह अच्छे के लिए हुआ। इसके बाद भारत आने के बाद मैंने यहाँ अपने कामकाज को देखना और संभालना शुरू किया और इसके बाद हमारी अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों ने तब से अब तक लगातार तरक्की की है। मुझे अपने दादा और पिताजी पर भी नाज है जिन्होंने अपनी मेहनत से देश के लिए बहुत कुछ किया। मैं यह मानता हूँ कि मेरी अकेले आदमी की तरक्की कोई तरक्की नहीं है। यह तरक्की तब पूरी होती है जब उससे बहुत लोगों को फायदा मिले।

दोस्तो, मुंबई में रोजाना बहुत सी पार्टियाँ होती हैं और बहुत सी पार्टियों में मुझे बुलाया जाता है पर मुझे पार्टियों में जाना सुहाता नहीं है। पार्टियों में जाने वाले अपना समय फिजूल बर्बाद करते हैं। वे देर रात को पार्टियों से लौटते हैं और सुबह देर तक सोते हैं जबकि मैं सुबह तय समय पर ऑफिस पहुँचना पसंद करता हूँ। जिंदगी में इस तरह का अनुशासन हमारे बहुत काम आता है। आप भी नियम बनाकर देखो आप जरूर सफलता पाओगे।

तुम्हारा
रतन टाटा

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