पछतावा

बाल लघुकथा

Webdunia
डॉ. योगेंद्रनाथ शुक्ल

' ये जूते कितने के हैं?'
' साहब, आठ सौ पचास रुपए के।'
दुकानदार से भाव सुनकर धीरज बाबू ने अपने बेटे को धीरे से समझाया 'पुनीत! मैं तुम्हें दूसरी दुकान लिए चलता हूँ... ये जूते बहुत महँगे हैं।' दोनों उस दुकान से बाहर निकलने लगे।

' अरविंद के पिताजी और मेरे पिताजी एक ही पद पर हैं लेकिन दोनों में कितना अंतर है, उसके पिताजी उसकी हर माँग पूरी करते हैं, उसकी हर चीज कितनी अच्छी होती है और मेरे पिताजी को खरीदते समय कितना सोचते हैं?'

अपने मन पसंद जूतों को न खरीद पाने के कारण पुनीत मन ही मन झल्ला रहा था और अपने पिताजी की कंजूसी पर उसे क्रोध भी आ रहा था।

' मैं जो कपड़े पहनता हूँ, उससे अच्छे तुम्हें पहनाता हूँ। तुम तसल्ली रखो, मैं तुम्हें अच्छे जूते दिलवाऊँगा। बेटा! ईमानदारी के पैसों को फिजूल में खर्च करने की मैं हिम्मत नहीं जुटा पाता हूँ। तुम बड़े होकर समझोगे कि ईमान और बेईमानी के धन में क्या फर्क होता है।' अपनी बात पूरी कर पिताजी ने पुनीत के सिर पर हाथ रख दिया। पुनीत चाहकर भी निगाहें ऊपर नहीं कर पा रहा था।

पिताजी की बात सुनकर पुनीत को अपनी सोच पर पछतावा हो रहा था, शायद इसीलिए उसके मन में अपने और अरविंद के पिताजी अब उसके लिए बुराई और अपने पिताजी श्रद्धा के पात्र बन गए थ े ।

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

दीपावली पर बनाएं ये 5 खास मिठाइयां

10 लाइन नरक चतुर्दशी पर निबंध हिंदी में

पुष्य नक्षत्र पर पत्नी को दें ये उपहार, लक्ष्मी माता की कृपा से कभी नहीं होगी धन की कमी

दीपावली पर 10 लाइन कैसे लिखें? Essay on Diwali in Hindi

क्या प्यूबिक एरिया में शेविंग क्रीम से बढ़ती है डार्कनेस

सभी देखें

नवीनतम

इस दिवाली बस इस एक ब्यूटी सीक्रेट से मिलेगा घर पर ही पार्लर से बढ़कर निखार

फ्यूजन फैशन : इस दिवाली साड़ी से बने लहंगे के साथ करें अपने आउटफिट की खास तैयारियां

दिवाली पर आपके घर की सुन्दरता में चार चांद लगा सकती हैं ये लाइट्स

अपने बेटे को दीजिए ऐसे समृद्धशाली नाम जिनमें समाई है लक्ष्मी जी की कृपा

पेट्रोलियम जेली के फायदे : सिर्फ ड्राय स्किन ही नहीं, जानें इसके छुपे हुए कई ब्यूटी सीक्रेट्स

More