क्यों अपनी गलती स्वीकार नहीं करते?

Webdunia
- विशा ल मिश्र ा

प्रि य दोस्त ो
बहुत ही सामान्य बात है। गलतियाँ हर इंसान करता है। सभी से होती हैं। लेकिन इसे स्वीकार हर कोई नहीं कर पाता। आखिर क्यों? कोई न कोई चीज इसके आड़े जरूर आती है। अंतरआत्मा उसकी कहेगी हाँ गलती हुई तो है मुझसे लेकिन वह बात मुँह से नहीं बोल सकता। लाखों तर्क दे देगा अपने पक्ष में।

स्वीकार करेगा तो भी ऊपर से केवल फिर अंतरआत्मा और जुबाँ के बीच एक जगह आ जाती है। जहाँ पर बोलेगा बिना गलती के ही स्वीकार करना पड़ रहा है। पर क्या करो मजबूरी है। अंतरआत्मा कहेगी तुम्हारा दंभ है, झूठा दंभ जिसके चलते तुम जुबान से स्वीकार नहीं कर रहे। फिर ऊपर से बोलेगा नहीं, दंभ नाम की चीज तो मेरे अंदर है ही नहीं। कभी करता ही नहीं। मुझे काहे का दंभ।

शायद ही कभी आपने इस बात को गंभीरता से लिया हो कि गलती हुई इसे स्वीकार कर लेने से क्या हो जाएगा या नहीं करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ेगा। याद रखिए मित्रों गलती होने पर उसे स्वीकार कर लेना आपको आगे ले जाने वाले गुणों में से एक है।

एक बार होमवर् क में बना ए डाइग्राम में मुझसे गड़बड़ हो गई। आनन-फानन में बनाया था सो वह ठीक नहीं बना। टीचर ने बुलाकर ठीक से समझाया देखो, ये आपने इसको किया तो बुरा दिख रहा है। फिर उन्होंने ठीक करके बताया। मैंने भी उनसे कहा हाँ सर मेरे से तो कचरा ही हो गया था इसका। अब उनके चेहरे से झलकने वाली खुशी देखने योग्य थी। शायद उन्होंने सोचा ही नहीं होगा कि यह छात् र बगैर मुँह बनाए अपनी गलती को स्वीकार भी कर सकता है।

टीच र क े द्वारा मिले प्रतिसाद का परिणाम यह हुआ कि आज भी यदि कोई गलती हो जाती है तो बगैर किसी कुतर्क के उसे स्वीकार कर लेता हूँ और गलती बताने वाले को भी संकोच नहीं होता। कहा भी गया है निंदक नियरे राखिए...

मानव स्वभाव है गलतियाँ करने का। गलतियाँ सभी से होती हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी कहते थे भले ही 100 गलतियाँ करो लेकिन उन्हें दोहराओ मत। क्योंकि गलतियों को दोहराना मूर्खता है।

गलती हो उसे पूरी शिद्‍दत के साथ स्वीकार करो। कुछ गलतियाँ होती हैं जो अनजाने में हो जाती हैं और कुछ होती हैं जो आपसे जानबूझकर होती हैं। अनजाने में होने वाली गलतियों पर आपका बस नहीं चलता। उसके लिए तो सिवाय माफी माँगने के कोई चारा नहीं रह जाता। लेकिन जानबूझकर होने वाली गलतियों में आप कमी कर सकते हैं। इसके लिए क्या करें।

सहज बनें : अपने स्वभाव को सहज बनाए रखें। जिससे आपको कई प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ने में मदद मिलेगी। बात-बात में बिगड़ने की आदत छोड़ें।

सकारात्मक सोच रखें : अपनी सोच सकारात्मक रखें। नकारात्मक चीजों से ज्यादा वास्ता न रखें। पढ़ने और देखने में भी नकारात्मकता सामने आए तो उसे केवल इसी रूप में ध्यान रखें कि कहीं यह आदतें मुझमें तो नहीं।

अहंकार से बचें : अहंकार व्यक्ति को देता कुछ नहीं बल्कि उसे तोड़कर रख देता है। अहंकार जिसके जीवन में आया समझो उसकी अव‍नति शुरू हो जाती है।

समस्याओं से लड़ें : प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कई तरह की समस्याएँ होती हैं। नौकरी पेशे संबंधी भी और पारिवारिक भी। घर-परिवार में सामंजस्य बैठाना। नौकरी-पेशे में लोगों से संबंध बनाना आदि अनेक समस्याओं से आदमी को रोज 2-4 होना पड़ता है। इनसे पूरी तरह से जुझारू होकर लड़ें।

साहित्य और संगीत से नाता जोड़ें : अच्छा और सकारात्मक साहित्य पढ़ें। संगीत से संबंध बढ़ाएँ। रेडियो आदि पर गाने सुन सकते हैं। संगीत तनाव को मिटाता है और आपको तरोताजा रखता है।

जो हुआ उसे भूल जाएँ : कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें उसी समय भूल जाना ज्यादा बेहतर होता है बजाय उसे गाँठ बाँधकर रखने के। मानो घर में चार बर्तन होते हैं तो ठनकेंगे तो सही। तो ऐसी छोटी-मोटी बातें सभी दूर चलती रहती हैं। इसलिए ऐसा क्या हुआ जिससे कि यह स्थिति निर्मित हुई। उससे अगली बार बचा जाए। फिर देखिए दुनिया की कोई ताकत आपको दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने से नहीं रोक सकती।

गलती को स्वीकार कर देखिए आपको तरक्की के अवसर तो प्राप्त होंगे ही साथ ही आत्मिक शांति भी मिलेगी और यदि नहीं करते हैं तो कभी ध्यान से सोचिए वह दिन आपका कैसा गुजरा होगा। हर मिनट आप अंतर्द्वंद्व की स्थिति से गुजर रहे होंगे। तो जो चीज आपके लिए लाभदायक है। उसे अपनाने में देर कैसी।

तुम्हारा
विशाल अंकल

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