भुवनेश्वर (Bhubaneshwar)। ओडिशा के पुरी में बिना किसी औपचारिक शिक्षा या आधुनिक मशीन के शिल्पकारों का एक समूह हर साल पारंपरिक तरीके से भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन बालभद्र व सुभद्रा के लिए एक जैसे विशाल रथ बनाता है। हालांकि शिल्पकारों के इस समूह को कोई औपचारिक प्रशिक्षण हासिल नहीं है। लेकिन इनके पास कला एवं तकनीक का ज्ञान है, जो उन्हें उनके पूर्वजों से मिला है।
वार्षिक रथयात्रा उत्सव के दौरान ये तीन रथ अपनी शाही संरचना और शानदार शिल्प कला के चलते हमेशा चर्चा में रहते हैं। यह रथयात्रा 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से लेकर गुंडिचा मंदिर तक निकाली जाती है।
जगन्नाथ संस्कृति पर अध्ययन करने वाले असित मोहंती ने कहा, हर साल नए रथ बनाए जाते हैं। सदियों से उनकी ऊंचाई, चौड़ाई और अन्य प्रमुख मापदंडों में कोई बदलाव नहीं आया है। हालांकि रथों को अधिक रंगीन और आकर्षक बनाने के लिए उनमें नई-नई चीजें जरूर जोड़ी जाती हैं।
मोहंती के मुताबिक, रथ निर्माण में जुटे शिल्पकारों के इस समूह को कोई औपचारिक प्रशिक्षण हासिल नहीं है। उन्होंने बताया कि इन शिल्पकारों के पास केवल कला एवं तकनीक का ज्ञान है, जो उन्हें उनके पूर्वजों से मिला है।
भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले नंदीघोष रथ का निर्माण करने वाले बिजय महापात्र ने कहा, मैं लगभग चार दशकों से रथ बनाने का काम कर रहा हूं। मुझे मेरे पिता लिंगराज महापात्र ने इसका प्रशिक्षण दिया था। उन्होंने खुद मेरे दादा अनंत महापात्र से यह कला सीखी थी।
महापात्र ने कहा, यह सदियों से चली आ रही एक परंपरा है। हम भाग्यशाली हैं कि हमें भगवान की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने बताया कि रथों के निर्माण में केवल पारंपरिक उपकरण जैसे छेनी आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
एक अन्य शोधकर्ता भास्कर मिश्रा ने बताया कि भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग के कपड़ों से ढंका हुआ है तथा इसका निर्माण लकड़ी के 832 टुकड़ों से किया गया है।
मिश्रा के मुताबिक, भगवान बालभद्र के रथ तजद्वाज में 14 पहिए हैं और वह लाल तथा हरे रंग के कपड़ों से ढंका हुआ है। इसी तरह, देवी सुभद्रा का रथ दर्पदलन, जिसमें 12 पहिए हैं, उसे लाल और काले कपड़े से ढंका गया है।(भाषा)