jagannath rath yatra 2024: 07 जुलाई को निकलेगी श्रीजगन्नाथ 'रथयात्रा', पोहंडी बिजे से होगी शुरुआत

जानें क्यों कहते हैं इसे श्री गुण्डीचा यात्रा

पं. हेमन्त रिछारिया
बुधवार, 12 जून 2024 (13:56 IST)
Ratha Yatra 2024: जगन्नाथ पुरी में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का शुभारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है। जिसमें भगवान कृष्ण और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर 'श्रीगुण्डीचा' मंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे और अपने भक्तों को दर्शन देंगे। 

ALSO READ: Jagannath Murti: भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के 10 रहस्य जानकर चौंक जाएंगे
 
जगन्नाथ रथयात्रा प्रत्येक वर्ष की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को प्रारंभ होती है। इस वर्ष यह रथयात्रा 07 जुलाई 2024, रविवार से प्रारंभ होगी। जो आषाढ़ शुक्ल दशमी तक नौ दिन चलेगी है। 
 
यह रथयात्रा वर्तमान मंदिर से 'श्रीगुण्डीचा मंदिर' तक जाती है इस कारण इसे 'श्रीगुण्डीचा यात्रा' भी कहते हैं। इस यात्रा हेतु लकड़ी के तीन रथ बनाए जाते हैं- बलराम जी के लिए लाल एवं हरे रंग का 'तालध्वज' नामक रथ; सुभद्रा जी के लिए नीले और लाल रंग का 'दर्पदलना' नामक रथ और भगवान जगन्नाथ के लिए लाल और पीले रंग का 'नन्दीघोष' नामक रथ बनाया जाता है।
 
रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से प्रारंभ होता है। रथों के निर्माण में प्रत्येक वर्ष नई लकड़ी का प्रयोग होता है। लकड़ी चुनने का कार्य बसन्त पंचमी से प्रारंभ होता है। रथों के निर्माण में कहीं भी लोहे व लोहे से बनी कीलों का प्रयोग नहीं किया जाता है। 
 
रथयात्रा के दिन तीनो रथों मुख्य मंदिर के सामने क्रमशः खड़ा किया जाता है। जिसमें सबसे आगे बलरामजी का रथ 'तालध्वज' बीच में सुभद्राजी का रथ 'दर्पदलना' और तीसरे स्थान पर भगवान जगन्नाथ का रथ 'नन्दीघोष' होता है। 
 
'पोहंडी बिजे' से होगी रथयात्रा की शुरुआत-
 
रथयात्रा के दिन प्रात:काल सर्वप्रथम 'पोहंडी बिजे' होती है। भगवान को रथ पर विराजमान करने की क्रिया 'पोहंडी बिजे' कहलाती है। फिर पुरी राजघराने वंशज सोने की झाडू से रथों व उनके मार्ग को बुहारते हैं जिसे 'छेरा पोहरा' कहा जाता है। 
 
'छेरा पोहरा' के बाद रथयात्रा प्रारंभ होती है। रथों को श्रद्धालु अपने हाथों से खींचते हैं जिसे 'रथटण' कहा जाता है। सायंकाल रथयात्रा 'श्रीगुण्डीचा मंदिर' पहुंचती है। जहां भगवान नौ दिनों तक विश्राम करते हैं और अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। 
 
मंदिर से बाहर इन नौ दिनों के दर्शन को 'आड़प-दर्शन' कहा जाता है। दशमी तिथि को यात्रा वापस होती है जिसे 'बहुड़ाजात्रा' कहते हैं। वापस आने पर भगवान एकादशी के दिन मंदिर के बाहर ही दर्शन देते हैं जहां उनका स्वर्णाभूषणों से श्रृंगार किया जाता है जिसे 'सुनाभेस' कहते हैं। द्वादशी के दिन रथों पर  'अधर पणा' (भोग) के पश्चात भगवान को मंदिर में प्रवेश कराया जाता है इसे 'नीलाद्रि बिजे' कहते हैं।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com 
 
ALSO READ: Jagannath ratha yatra: भगवान जगन्नाथ यात्रा के लिए मूर्ति और रथ बनाने का रहस्य जानकर चौंक जाएंगे

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी के दिन या कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन करते हैं?

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

आंवला नवमी कब है, क्या करते हैं इस दिन? महत्व और पूजा का मुहूर्त

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

सभी देखें

धर्म संसार

MahaKumbh : प्रयागराज महाकुंभ में तैनात किए जाएंगे 10000 सफाईकर्मी

10 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

10 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Tulsi vivah 2024: तुलसी विवाह के दिन आजमा सकते हैं ये 12 अचूक उपाय

Dev uthani gyaras 2024 date: देवउठनी देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि

अगला लेख
More