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यह कैसा मायाजाल है...

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, शुक्रवार, 10 मार्च 2017 (10:00 IST)
तेजश्री पुरंदरे
 
सात समंदर पार। भारत से 13,568 किमी की दूरी। समुंद्री जहाज से पहुंचने में 30—35 दिन। हवाई जहाज से पहुंचने में 17 घंटे। लेकिन पांच इंच के झुनझुने में बसे इंटरनेट से पहुंचने में चंद सेकंड्‍स। इंटरनेट जो शायद हमारे जीवन का छठा तत्व बन चुका है। दरअसल यह वह अलादीन का चिराग है जो हमें पलक झपकते ही स्पीड ऑफ लाइट से भी तेज गति में बहुत आसानी से दुनिया भर में चल रही गतिविधियों की जानकारी दे देता है। 
समंदर की गहराई से लेकर आसमान की ऊंचाई की खबर देने वाले इंटरनेट ने साबित कर दिया कि जहां न पहुंचे रवि द ग्रेट वहां पहुंच गए इंटरनेट। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस मोबाइल के इस दरबार में इंटरनेट राजा का जन्म हुआ कैसे? दरअसल इसका इतिहास बहुत दिलचस्प है।
 
इंटरनेट इस इंटरनेट की दुनिया में एक बडा बदलाव तब आया जब वर्ल्ड वाइड वेब यानी www के जरिए पूरी दुनिया को दुनिया से जोड़ा। सन् 1989 में वर्ल्ड वाइड वेब को टिम बर्नस ली ने जन्म दिया। सन् 1955 में जन्मे टिम बर्नस ली को बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से खेलने का बहुत शौक था। जिस उम्र में बच्चे कागज से हवाई जहाज बनाते थे, उसी उम्र में उन्होंने एक पुराने टीवी सेट से कंप्यूटर बना दिया।
 
ली बताते हैं कि धीरे-धीरे उनकी रुचि इसी काम में लगने लगी और वे स्विट्जरलैंड के सर्न लैब में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में कार्यरत हुए। इस सर्न लैब में दुनियाभर से वैज्ञानिक खोज के लिए आते थे। ली ने यह महसूस किया कि सभी कंप्यूटर्स पर विभिन्न महत्वपूर्ण जानकारी होने के कारण वैज्ञानिकों को एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर पर बार-बार जाना पड़ रहा था। यह ठीक उसी तरह था, जिस तरह किसी तितली को पराग के लिए एक पौधे से दूसरे पौधे पर जाना पड़ता है। टिम ने सोचा कि क्यों न मैं एक गुलदस्ता ही बना दूं जिससे तितली को एक ही जगह से पराग मिल जाएगा। 
 
टिम को ख्याल आया कि इस समस्या को हल करने से करोडों लोगों को एक उभरती हुई प्रौद्योगिकी हाइपरटेक्स्ट के जरिए जोड़ा जा सकता है। इसी सोच के साथ उन्होंने तीन मौलिक प्रौद्योगिकियों के जरिए 1989 में वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार किया। तब से लेकर अब तक इंटरनेट की आकाशगंगा में अब 3,424,971,237 लोग गोते लगा रहे हैं, जिसमे से 462,124,989 यूजर्स भारत के हैं।
 
आज इंटरनेट के इस दरबार में सोशल मीडिया का बडा बोलबाला है, क्योंकि सोशल मीडिया वह माध्मय है जो समाज के आम लोगों के हाथ में आम लोगों को जोड़ता है। यह किसी एक विचारधारा का पालन नहीं करता। यह वो औजार है जिससे हम अपनी बात सोए हुए आकाओं तक पहुंचा सकते हैं। हाल ही में हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में सोशल मीडिया ट्रंप के लिए हुकुम का इक्का साबित हुआ।
 
हिलेरी ने 239 समाचार-पत्रों के जरिए चुनावी प्रचार प्रसार किया और ट्रंप ने महज 9 समाचार पत्रों के जरिए प्रचार किया। वहीं देखा जाए तो सोशल मीडिया पर 1.19 करोड़ ने ट्रंप का फेसबुक पेज फॉलो किया, 1.29 करोड़ लोगों ने ट्विटर पर फॉलो किया। वहीं दूसरी हिलेरी को फेसबुक पेज पर 78 लाख लोगों ने फॉलो किया और 1.1 करोड ने ट्विटर पर फॉलो किया। सोशल मीडिया के साथ साथ गूगल पर भी ट्रंप का बोलबाला रहा। एक सर्वे के मुताबिक चुनाव के दौरान ट्रंप को 44 करोड बार गूगल पर सर्च किया गया।
 
सिर्फ अमेरिका का चुनाव ही सोशल मीडिया के रथ पर सवार नहीं था, बल्कि भारत के चुनाव जिसमें मोदी सरकार पूर्ण बहुमत से जीती वह भी इस रथ पर सवार थी। चुनाव के दौरान 125 करोड़ योग्य मतदाताओं तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया को ब्रह्मास्त्र बनाया और आम लोगों तक आसानी से अपनी बात पहुंचाई। करीब 4 करोड फेसबुक फॉलोअर्स और 2.34 करोड ट्विटर फॉलोअर्स के साथ मोदीजी भी सोशल मीडिया ने सोशल मीडिया को आधार स्तंभ मानते हुए अपना बुनियादी ढांचा मजबूत कर ही दिया है। 
 
इंटरनेट का यूज चुनावी तौर पर सिर्फ फॉलोअर्स तक सीमित नहीं है। यूपी में होने वाले चुनाव से पहले भीम एप का लांच होना भी एक तरह की पॉलिटिकल फंडिंग है। साथ ही आए दिन होने वाली रैलियों को फेसबुक लाइव के जरिए आम जनता तक पहु्ंचाया जा रहा है। दरअसल, अब हमें इस सत्य को स्वीकारना ही होगा की हमारी आधी से ज्यादा दुनिया इस 5 इंच के कुरुक्षेत्र में ही बसती है। इंटरनेट के इस मायाजाल को हम पूरी तरह आत्मसात कर चुके हैं जिसके जरिए नित नए आयाम रच रहे हैं।

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