वॉशिंगटन। अमेरिका के एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन को पाकिस्तान के अंदर मौजूद आतंकवादी गुटों को निशाना बनाना चाहिए, साथ ही उन्होंने पाकिस्तान में मौजूद तालिबान के ठिकानों को अफगानिस्तान के लिए बड़ी समस्या करार दिया है।
पूर्व राजनयिक का यह बयान अफगानिस्तान में आईएस को निशाना बनाने के लिए अमेरिका की ओर से अब तक के सबसे बड़े गैर परमाणु बम से हमला किए जाने के बाद आया है। अमेरिका ने कहा है कि यह बम इस्लामिक स्टेट-खुरासन के सुरंग परिसर को निशाना बनाकर गिराया गया। इस्लामिक स्टेट-खुरासन वास्तव में इस्लामिक स्टेट से संबद्ध क्षेत्रीय समूह है।
बुश प्रशासन के दौरान संयुक्त राष्ट्र और अफगानिस्तान में अमेरिकी राजदूत रह चुके जालमे खलीलजाद ने कहा कि पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी पनाहगाहों को महज आश्रयस्थल नहीं समझा जाना चाहिए। खलीलजाद ने गुरुवार को यहां एक अमेरिकी थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट में चर्चा के दौरान कहा कि इन पनाहगाहों में छिपे आतंकवादियों द्वारा अमेरिकी और नाटो बलों पर हमले किए जा रहे हैं और यदि उन स्थानों से हम पर हमले होते हैं, तो वे प्रतिक्रिया के लिए तर्कसंगत लक्ष्य होंगे।
उन्होंने कहा कि शायद हमें बड़े बदलाव के लिए कुछ करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि विरोधियों को कमजोर करने और सरकार को मजबूत करने, मजबूती केवल सेना के स्तर पर नहीं बल्कि आर्थिक और राजनीतिक तौर पर भी मजबूत करने के संबंध में जो कुछ भी चल रहा है मैं उससे उत्साहित हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि अफगानिस्तान की सबसे बड़ी समस्या पाकिस्तान की नीतियां हैं, पनाहगाह नीतियां।
दक्षिण एवं मध्य एशियाई मामलों के लिए पूर्व सहायक विदेश मंत्री रॉबिन राफेल का मानना है कि अमेरिका को इस वक्त उस क्षेत्र से नहीं हटना चाहिए। बहरहाल, राफेल ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के विचार का विरोध करते हुए कहा कि मेरी राय में, अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान पर बातचीत करना चाहिए जिसमें निश्चित रूप से तालिबान सहित कुछ रूढ़िवादी तत्व होंगे।
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके और हडसन इंस्टीट्यूट में दक्षिण तथा मध्य एशिया क्षेत्र के निदेशक हुसैन हक्कानी ने कहा कि तालिबान अपरिवर्तनीय है। उनके इस विचार का समर्थन करते हुए खलीलजाद ने कहा कि तालिबान और पाकिस्तान के बीच गठजोड़ मुख्य समस्या है।
खलीलजाद ने कहा कि उग्रवाद के समय आप सुलह सहमति नहीं कर सकते। सुरक्षित आश्रय स्थलों के होने पर सफल बातचीत नहीं की जा सकती। इस चर्चा का आयोजन अफगानिस्तान पर गतिरोध को खत्म करने के लिए ट्रंप प्रशासन द्वारा अपनी नीतियों की समीक्षा किए जाने की पृष्ठभूमि में किया गया था।
हक्कानी ने कहा कि अफगानिस्तान के संबंध में नीति पर किए गए निर्णय और आतंकवाद तथा इस्लामिक चरमपंथ को लेकर वैश्विक युद्ध के प्रभावों का अहम प्रभाव पड़ेगा। (भाषा)