Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

बांग्‍लादेश की आजादी के नायक शेख़ मुजीबुर रहमान की हत्‍या की खौफनाक कहानी

जब मेजर नूर ने पूरी स्टेन गन शेख़ मुजीबुर रहमान के ऊपर खाली कर दी थी

हमें फॉलो करें Sheikh Mujibur Rahman

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, मंगलवार, 6 अगस्त 2024 (17:27 IST)
Sheikh Mujibur Rahman’s assassination : बांग्‍लादेश में तख्‍ता पलट और प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्‍तीफे के बाद देश छोड़ने की ऐतिहासिक घटना ने उस शेख मुजीबुर रहमान की याद दिला दी है, जिसे बांग्‍लादेश में ‘फादर ऑफ नेशन’ और बंग बंधू कहा जाता है। लेकिन अब उनकी बेटी शेख हसीना के इस्‍तीफे और तख्‍ता पलट के बाद बांग्‍लादेश में शेख मुजीबुर रहमान की मुर्तियों को बुल्‍डोजर और जेसीबी मशीनों से ढहाया जा रहा है।

इस घटना के बाद बांग्‍लादेश की आजादी के साथ ही शेख मुजीबुर रहमान की हत्‍या का वो खौफनाक मंजर भी जेहन में तैर गया है। कैसे शेख मुजीबुर रहमान और उनके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया था। इसी घटना में शेख हसीना विदेश में होने की वजह से बच गईं थी और बाद में आगे चलकर बांग्‍लादेश की प्रधानमंत्री बनी। लेकिन 5 अगस्‍त को तख्‍ता पलट के बाद हसीना को भी बांग्‍लादेश से भागना पड़ा। बता दें कि शेख मुजीबुर रहमान वो शख्‍स हैं जिसने बांग्‍लादेश को पाकिस्‍तान से आजाद कराया और एक नए बांग्‍लादेश की स्‍थापना की। जानते है बांग्‍लादेश की आजादी के नायक की हत्‍या की खौफनाक कहानी।

वह 15 अगस्त 1975 की सुबह थी। बांग्लादेश की राजधानी ‘ढाका’ के धनमंडी की सड़क नंबर 32 पर कुछ हलचल की आवाजें आ रही थीं। अचानक यहां स्‍थि‍त मकान नंबर 677 को बांग्लादेश की बागी सेना के जवानों ने घेर लिया। इस वक्‍त वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। जिस घर की दीवारों पर सैनि‍कों ने बंदूकें तानी थी, उस घर के सभी सदस्‍य गहरी नींद में थे।

कुछ ही पलों में यहां गोलियां चलने की आवाजें आने लगीं। एक-एक कर कई सैनिक घर में दाखिल हो गए। इसके पहले किसी की नींद खुलती या कोई कुछ समझ पाता सैंकडों गोलियां उनके सीने, सिर और पेट में धंस चुकी थीं।

अंत में जो मंजर वहां बचा रह गया था, वो था खून से लथपथ फर्श। पूरे घर में बि‍खरी लाशों के बीच सेना के जवान बेदर्दी के साथ हत्‍याओं का मातम मना रहे थे।

जिस घर में इस घटना को अंजाम दिया गया यह कोई आम घर नहीं, बल्कि बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान का घर था। एक राष्ट्रपति और उनके पूरे परिवार को कुछ ही क्षणों में खत्‍म कर दिया गया।

दरअसल, 7 मार्च 1971 के दिन ढाका में करीब दस लाख लोग अपने हाथों में डंडे लेकर जमा हो रहे थे। ये भीड़ पाकिस्तान से बांग्लादेश के लिए संघर्ष कर आजादी की मांग कर रही थी। इस भीड़ के नायक थे शेख मुजीबुर रहमान। पाकिस्तान की सेना ने ताबड़तोड़ लाठी चार्ज कर आजादी की इस मांग को उस दिन दबा दिया, भीड़ वहां से भागने को मजबूर हो गई।

लेकिन 25 मार्च 1971 को ‘बंगबंधु’के नाम से विख्यात ‘शेख मुज़ीब’ ने फिर से आजादी की मांग को बुलंद किया। उन्होंने कहा कि- मैं बांग्लादेश के लोगों से अपील करता हूं कि वे जहां भी, जैसे भी हों और उनके हाथों में जो भी हो, उससे पाकिस्तानी सेना का विरोध करें। पाकिस्तानी सेना को यहां से पूरी तरह से भगा देने तक हमारी लड़ाई जारी रहनी चाहिए।

गुलामी के एक लंबे दौर के बाद दिसंबर 1971 में भारत के सैन्य हस्तक्षेप के बाद बांग्लादेश को पाकिस्तान से आज़ादी मिल गई।

बांग्लादेश अब आज़ाद हो चुका था। लेकिन इस आज़ादी के नायक शेख मुज़ीब पाकिस्तान की हिरासत में बंदी बना लिए गए। हालांकि 8 जनवरी 1972 को पाकिस्तान ने मुजीबुर रहमान को रिहा कर दिया। मुज़ीब को वहां से लंदन चले गए। बाद में 9 जनवरी को दिल्ली होते हुए ढाका आए। बांग्लादेश पहुंचते ही उन्होंने खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया।

नई आजादी के बाद शेख पूरे मुल्क को अपने कब्जे और अधिकार में रखने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन यह उनके लिए घातक बनता जा रहा था। मुज़ीब ने देश में एकदलीय शासन प्रणाली लागू कर दी। उन्होंने सरकारी अख़बारों को छोड़कर दूसरे सभी अख़बारों पर प्रतिबंध लगा दिया। मुज़ीब ने अपनी सीमाएं तो तब लांघ दी, जब 1975 में एक संवैधानिक संशोधन किया गया, जिससे बांग्लादेश में आपातकाल जैसी स्थिति हो गई। यह सब बांग्लादेश के बड़े नेताओं और सेना को रास नहीं आ रहा था। जिसका परिणाम शेख़ को आगे चलकर भुगतना पड़ा।

15 अगस्त 1975 की सुबह ढाका के धनमंडी में राष्ट्रपति शेख़ मुजीबुर रहमान के मकान को बांग्लादेश के कुछ बागी सेना के अफसरों ने सैनिकों के साथ मिलकर घेर लिया। उस समय वह अपने परिवार के सदस्यों के साथ सो रहे थे। उस दिन मुजीब के निजी सचिव एएफएस मोहितुल इस्लाम रात को सोने ही गए थे कि उन्हें मुजीबुर रहमान का फोन आया। उन्होंने उनसे पुलिस कंट्रोल रूम में फोन लगाने को कहा। उन्हें सूचना मिली थी कि उनके साले के घर पर हमला किया गया है। शेख़ वो मामला समझ पाते उसके पहले ही उनके खुद के घर पर गोलियों की बौछार शुरू हो गई। अपनी हुकूमत से बगाबत कर चुके हथियारबंद सैनिक उनके घर में दाखिल हो गए। उन्होंने ऐसा कहर बरपाया कि लोगों की रूह कांप गई। मुजीबुर रहमान को बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि बागी उनकी हत्या के लिए इस तरह साजिश रचेंगे। घर में घुस चुके सैनिक हर कमरे की तलाशी ले रहे थे और जो भी कोई सामने आया, उसे मौत की नींद सुला दिया।

अख़बारों की रिपोर्ट के मुताबिक सेना के मेजर नूर ने पूरी स्टेन गन शेख़ मुजीबुर रहमान के ऊपर खाली कर दी थी।

कहा जाता है कि शेख़ मुज़ीब की हत्या की साजिश रचने के पीछे सबसे बड़ा हाथ खांडेकर मोशताक का था। जो मुज़ीब का करीबी रिश्तेदार था। वो बाद में बांग्लादेश का राष्ट्रपति भी बना। मुज़ीब की हत्या के बाद सैनिक उनकी पत्नी के पास पहुंचे। वे उन्हें दूसरी जगह ले जाना चाहते थे, लेकिन अपने पति की लाश देखकर वो बोली कि उन्हें भी यहीं गोली मार दी जाए। पत्नी की हत्या के बाद सैनिकों ने शेख के 10 साल के बेटे रसेल की भी हत्या कर दी।

घर के सारे सदस्‍य मारे जा चुके थे, लेकिन शेख़ की दो लड़कियां अभी भी जिंदा थीं। जीत का जश्न मनाते बागी सैनिकों को शायद पता नहीं था कि उनकी बेटियों में से एक भविष्‍य में देश की प्रधानमंत्री बनेगी और उन्हें अपने इस नरसंहार का परिणाम भुगतना पड़ेगा।

शेख मुजीबुर रहमान की दो बेटियां शेख हसीना और शेख़ रेहाना संयोगवश घटना के समय देश से बाहर थीं, घटना के तुरंत बाद दोनों जर्मनी पहुंच गई थीं। शेख हसीना पिता की हत्या के बाद ब्रिटेन में रहने लगी। ब्रिटेन से ही उन्होंने बांग्लादेश के नए शासकों के खिलाफ अभियान चलाया और 1981 में बांग्लादेश लौटीं, जहां सर्वसम्मति से अवामी लीग की अध्यक्ष चुनी गई। 1996 में हुए चुनावों में शेख हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद फ़ारूक रहमान और उनके पांच साथियों को शेख मुज़ीबुर रहमान की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार कर किया गया। कई साल चले मुकदमे के बाद आरोपियों को 27 जनवरी 2010 को फांसी दे दी गई।
शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेता और पहले राष्ट्रपति थे। वे बाद में प्रधानमंत्री भी बने।

शेख़ मुजीबुर रहमान के बारे में कुछ खास बातें
  • उन्हें बांग्लादेश का जनक कहा जाता है। वे अवामी लीग के अध्यक्ष भी थे।
  • उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सशस्त्र संग्राम की अगुवाई करते हुए बांग्लादेश को आजादी दिलाई।
  • उन्हें ‘बंगबन्धु’ की पदवी से सम्मानित किया गया। 15 अगस्त 1975 को सैनिक तख़्तापलट के द्वारा उनकी हत्या कर दी गई।
  • उनकी दो बेटियों में एक शेख हसीना ने 1981 के बाद बांग्लादेश की राजनैतिक विरासत को संभाला।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उत्तरी दिल्ली में थाने के अंदर एएसआई ने गोली मारकर आत्महत्या की