ढाका। जिस तरह एशिया में थाईलैंड को इसके एक यौन पर्यटन केन्द्र के लिए जाना जाता है, ठीक उसी तरह से म्यांमार से बांग्लादेश में पहुंचे शरणार्थी बांग्लादेश के कॉक्स बाजार को एक और यौन पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित कर रहे हैं।
चिटगांव के पास बसा यह बंदरगाह पूर्वी पाकिस्तान के दौर में बर्बर कार्रवाई के लिए जाना जाता है। इस समुद्र तट के किनारे स्थित शहर में इन बेसहारा महिलाओं के पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि वे अपनी भूख मिटा सकें और किसी तरह बच्चों का पेट पाल सकें। तिस पर बांग्लादेश एक इस्लामी देश है जहां पर वेश्यावृत्ति के महिलाओं की हत्या तक कर दी जाती है।
म्यांमार में कम से कम से कम छह लाख रोहिंग्या शरणार्थी आ चुके हैं लेकिन बांग्लादेश सरकार के पास मदद के लिए दूसरे देशों के सामने हाथ पसारना पड़ रहा है। जिले के कुटुपालोंग के सबसे बड़े रोहिंग्या शिविर में सेक्स कारोबार पहले से ही उभार पर है और बहुत सी सेक्स वर्कर कई सालों से बांग्लादेश के शिविरों में रहती हैं। लेकिन अचानक लाखों की संख्या में आई महिलाओँ और लड़कियों ने इस कारोबार को विस्तार दे दिया है।
बहुत सी सेक्स वर्कर बच्चियां हैं और उन्हें दिन में एक बार से ज्यादा भोजन भी नहीं मिलता है। वे स्कूल नहीं जातीं और यह काम अपने मां बाप से छिपा कर करती हैं। 18 साल की रीना कैंप में पिछले एक दशक से रह रही है पर शराबी पति से शादी करने पर मजबूर रीना को जानबूझकर यह पेशा अपनाना पड़ा।
सेक्स वर्करों की एक जैसी समस्याएं होती हैं। रोज रोज की गाली गलौज, गरीबी और मारपीट करने वाले परिवार के सदस्य और सुविधाओं के लिए फंड की कमी उन्हें सेक्स कारोबार में उतार देती है। कई महिलाओं को कई दिनों तक भूखी रहने के बाद देह व्यापार में उतरने के अलावा और कोई रास्ता नजर नहीं आया। पर आम तौर पर इन्हें 200 टका मिलते हैं तो इनमें से में आधे पैसे दलाल ले लेता है।
कारोबार मुख्य रूप से फोन पर चलता है और दलाल बता देते हैं कि कहां जाना है और किससे मिलना है। औसतन रोमिदा को हर हफ्ते तीन ग्राहक मिलते हैं और पकड़े जाने के डर के कारण वह इससे ज्यादा ग्राहकों से नहीं मिलती।
कई बार वह इस काम के लिए कॉक्स बाजार तक चली जाती है जहां पहुंचने में गाड़ी से दो घंटे लगते हैं। पर जब भी वह कैंप से बाहर जाती है तो उसके लिए कोई बहाना बनाना पड़ता है। अक्सर वह रिश्तेदारों से मिलने के बहाने बाहर निकलती है। रोहिंग्या महिलाएं हर तरह के पुरुषों से मिलती हैं जिनमें यूनिवर्सिटी के छात्रों से लेकर स्थानीय नेता भी होते हैं।
सुरक्षित यौन संबंध बनाने का कोई सवाल नहीं उठता है। ज्यादातर पुरुष कंडोम का इस्तेमाल नहीं करते और गर्भ रोकने के लिए सेक्स वर्कर इंजेक्शन लेती हैं हालांकि वह हर रोज एचआईवी के खतरे से जूझती हैं। मिट्टी के घरों और आसपास की भीड़भाड़ से आधे घंटे की दूरी पर हरे भरे धान के खेत हैं जहां पर एक स्थानीय समाजसेवी संगठन 'पल्स' ने शरणार्थियों के लिए एक सेफ हाउस सुरक्षित घर बनवाया है।
जहां केवल 30 महिलाएं रह सकती हैं। कहने को यह एक सामूहिक शयनागार है लेकिन इस घर में महिलाएं अपनी जिंदगी के बारे में दूसरों से बात नहीं कर पातीं क्योंकि इससे उन्हें खतरा हो सकता है। कहने के लिए यहां हर तरह की महिला चाहे कोई बलात्कार पीड़ित हो, अकेली मां हो या फिर सेक्स वर्कर, को उसकी मदद करने की कोशिश की जाती है। उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए उन्हें बुनियादी सुविधाएं देने, उन्हें कोई हुनर सिखाने की यहां कोशिश की जाती है लेकिन जो महिलाएं यहां रहती हैं उन्हें इस तरह की सेवाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है।